जिन विदेशी कंपनियों की भारत में स्थायी मौजूदगी नहीं है या कहें जिनके स्थायी प्रतिष्ठान भारत में नहीं हैं, इस वित्त वर्ष में बढ़े हुए अनुपालन बोझ (Compliance Burden) को लेकर परेशान हैं, क्योंकि उन्हें दोहरे कराधान से बचाव समझौते (डीटीएए/double tax avoidance agreements) के तहत टैक्स बेनिफिट का दावा करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक रूप में फॉर्म दाखिल करना होगा।
बिना स्थायी प्रतिष्ठान वाली विदेशी फर्मों को अपनी सेवाओं के बदले भारतीय वेंडरों से मिले पेमेंट पर टैक्स बेनिफिट हासिल करने के लिए फॉर्म 10F भरकर जमा करने की आवश्यकता होती है। भारतीय वेंडर ऐसे पेमेंट पर विदहोल्डिंग टैक्स या टीडीएस काटते हैं। यदि संधि (डीटीएए) का लाभ इन विदेशी कंपनियों को नहीं दिया जाता है, तो ऐसे लेनदेन पर अधिक टैक्स का बोझ पड़ेगा।
इनकम टैक्स एक्ट, 1961 में फाइनैंस एक्ट, 2012 के तहत सेक्शन 90 (4) सिर्फ इसलिए जोड़ा गया कि ऐसी कंपनियां डीटीएए लाभ की हकदार तब तक न हो, जब तक कि वह उस देश की सरकार से टैक्स रेजीडेंसी सर्टिफिकेट (टीआरसी) प्राप्त नहीं करती हैं, जहां वह सर्विस दे रही है।
ठीक इसके एक साल बाद, इनकम टैक्स एक्ट, 2013 के तहत इनकम टैक्स एक्ट, 1961 में, नियम 21AB के साथ एक और सेक्शन-90(5) शामिल किया गया जो ऐसे कंपनियों के लिए फॉर्म 10F में एक स्व-घोषणा (self-declaration) देने/प्रस्तुत करने का प्रावधान करता है।
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट (टैक्स अधिकारियों) से प्राप्त टीआरसी में आम तौर पर अधिकांश आवश्यक जानकारी होती है जैसे कि कंपनी का विवरण, टैक्सेशन का वर्ष, टैक्स आइडेंटिफिकेशन नंबर आदि, फिर भी नॉन-रेजिडेंट टैक्स पेयर द्वारा फॉर्म 10F बची हुई जानकारी जैसे पैन नंबर देने या एहतियात के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है।
इससे पहले, फॉर्म 10F पर विदेशी कंपनियों द्वारा भौतिक रूप से हस्ताक्षर किए जाते थे और टीआरसी के साथ रेजिडेंट ( निवासी) टैक्स पेयर को विदहोल्डिंग टैक्स को समझने के लिए दिए जाते थे या जरूरत पड़ने पर जांच कार्यवाही के दौरान इनकम टैक्स अधिकारियों को दिए जाते थे।
हालांकि, आयकर महानिदेशक (सिस्टम) ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की मंजूरी के साथ इस साल 16 जुलाई को एक अधिसूचना जारी की कि इस फॉर्म को केवल इनकम टैक्स पोर्टल पर इलेक्ट्रॉनिक रूप से जमा किया जा सकता है।
फॉर्म 10F इलेक्ट्रॉनिक रूप से दाखिल करने के लिए पोर्टल पर एक लंबी आईडी और पासवर्ड बनाने की आवश्यकता होती है। इसके लिए स्थायी खाता संख्या (पैन) प्राप्त करना अनिवार्य है। दूसरे शब्दों में, पोर्टल ऐसे टैक्स पेयर (करदाता) को फॉर्म 10F दाखिल करने की अनुमति नहीं देता है जिसके पास पैन नहीं है।
कंपनियां अब कहती हैं कि भारत में पैन प्राप्त करना एक अनावश्यक अनुपालन बोझ (Compliance Burden) पैदा करता है, खासकर जब रेजिडेंट ( निवासी) टैक्स पेयर टीडीएस चुकाते हों, तो उनके लिए कोई और Compliance Burden उठाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
एकेएम ग्लोबल के टैक्स मार्केट प्रमुख प्रमुख येशु सहगल कहते हैं, "पैन के लिए मजबूर करना एक तरह से नॉन-रेजिडेंट टैक्स पेयर पर अनावश्यक Compliance Burden डालना है।"
सहगल ने कहा कि एक अन्य चुनौती डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र (डीएससी) के माध्यम से फॉर्म पर हस्ताक्षर करने को लेकर है। इसका मतलब है कि विदेशी कंपनियों को भी डीएससी के लिए आवेदन करना होगा, जो Compliance Burden को और बढ़ाता है। इनकम टैक्स पोर्टल को नॉन -रेजिडेंट टैक्स पेयर्स को पैन-आधारित लॉगिन किए बिना फॉर्म 10F दाखिल करने की अनुमति देनी चाहिए।
बॉम्बे चार्टर्ड अकाउंटेंट्स सोसाइटी ने सीबीडीटी को लिखा है कि कम से कम जिनके पास पैन नहीं है, उनके लिए इलेक्ट्रॉनिक रूप से फॉर्म 10F जमा करने की अनिवार्यता समाप्त होनी चाहिए। सोसाइटी ने सीबीडीटी को सुझाव दिया है कि वह नॉन-रेजिडेंट टैक्स पेयर्स को पैन-आधारित लॉगिन के बिना फॉर्म की इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग की अनुमति दे। पत्र में कहा गया है कि नॉन रेजिडेंट टैक्स पेयर्स के बजाय रेजिडेंट टैक्स पेयर्स को इसका पालन करने के लिए कहा जाना चाहिए।