पिछले वित्त वर्ष में बिजली की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने और खरीद लागत बढ़ने के कारण बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की कार्यशील पूंजी की जरूरत बढ़ने से उनके कर्ज में वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2021 और 2023 के बीच बिजली की मांग 8.9 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 2020 के बीच 4.3 प्रतिशत बढ़ी थी।
बिजली मंत्रालय द्वारा डिस्कॉम की ताजा एकीकृत रेटिंग और रैंकिंग में कहा गया है कि बिजली की मांग में वृद्धि और वैश्विक भू राजनीतिक चुनौतियों के कारण वित्त वर्ष 2023 में राष्ट्रीय स्तर पर बिजली खरीद की लागत में प्रति यूनिट 71 पैसे की वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बिजली की कीमत दो वजहों- मात्रा में वृद्धि और आयातित कोयले में वृद्धि से बढ़ी है। इसमें कहा गया है कि बिजली संयंत्रों पर कोयले का भंडार घटने पर सरकार ने बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए कदम उठाए और इसकी वजह से कोयले के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
वित्त वर्ष 2023 में कोयले का आयात बढ़कर 5.6 करोड़ टन सालाना हो गया, जो वित्त वर्ष 22 के 2.7 करोड़ टन सालाना की तुलना में दोगुने से ज्यादा है। वित्त वर्ष 22 और वित्त वर्ष 23 के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत उल्लेखनीय रूप से बढ़ी, जिसकी वजह रूस यूक्रेन युद्ध और भारत और चीन जैसे देशों में कोयले की मांग में वृद्धि है।
रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2023 में आयातित कोयले की औसत लागत बढ़कर 12,500 रुपये प्रति टन हो गई, जो वित्त वर्ष 22 में 8,300 रुपये प्रति टन और वित्त वर्ष 21 में 4,300 रुपये प्रति टन थी। मुख्य रूप से इंडोनेशिया के कोयले की कीमत में बढ़ोतरी के कारण ऐसा हुआ है जहां से ज्यादातर कोयले का आयात होता है।
बिजली की मांग में बढ़ोतरी से भी पॉवर ट्रेडिंग प्लेटफॉर्मों पर बिजली की कीमत बढ़ी। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एक्सचेंज में बिजली की औसत कीमत वित्त वर्ष 2023 में बढ़कर 6.06 रुपये प्रति यूनिट हो गई, जो वित्त वर्ष 2022 में 4.69 रुपये प्रति यूनिट थी। गर्मी के मौसम में कीमत ज्यादा बढ़ी। वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही में कीमत 3.14 रुपये प्रति यूनिट थी, जो वित्त वर्ष 23 में बढ़कर 7.86 रुपये प्रति यूनिट पर पहुंच गई।’
वितरण कंपनियों ने मांग पूरी करने के लिए हर संभव कवायद की, ऐसे में पूंजीगत व्यय, कार्यशील पूंजी की जरूरतों और परिचालन हानि की भरपाई करने में उनका कुल कर्ज 70,000 करोड़ रुपये बड़ा। रिपोर्ट के मुताबिक 5 राज्यों आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और तेलंगाना की कर्ज में बढ़ोतरी में कुल हिस्सेदारी 89 प्रतिशत से ज्यादा है।