करीब 30 साल तक पूरे समय दफ्तर में बैठकर काम करने के बाद 2019 से गिग अथवा फ्रीलांस अर्थव्यवस्था में बतौर ब्रांड कंसल्टेंट काम करने वाली अमृता आहूजा कहती हैं, ‘अगर मैं मौजूदा दौर के इस रुझान के लिए खुद को तैयार नहीं करती तो नई पीढ़ी के कर्मचारियों के बीच मैं अपनी प्रासंगिकता खो देती।’
आहूजा तमाम वैश्विक कंपनियों के लिए काम कर चुकी हैं जिनमें मेटा इंडिया भी शामिल है। मेटा इंडिया में वह बतौर संचार निदेशक थीं। साल 2023 में उनके पास इतने ज्यादा काम थे कि उन्हें देखना पड़ा कि कौन सा काम अधिक फायदेमंद रहेगा।
नियुक्ति एजेंसी सीआईईएल एचआर की ओर से जून 2023 में भारत के गिग क्षेत्र में रोजगार के रुझान पर जारी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि सर्वेक्षण में शामिल विभिन्न क्षेत्रों की 400 से अधिक कंपनियों में 55 फीसदी ने अपने कामकाज में गिग कर्मियों को शामिल करना शुरू कर दिया है। कुछ मामलों में कंपनी के कुल कार्यबल में गिग कर्मियों की तादाद 20 फीसदी तक है। साथ ही 57 फीसदी कंपनियों ने कहा कि वे 2024 तक अपने कार्यबल में गिग कर्मियों की तादाद बढ़ाना चाहती हैं।
जॉब एग्रीगेटिंग प्लेटफॉर्म पर खुद को पंजीकृत करने वाले गिग कर्मियों की तादाद में साल 2023 के दौरान भारी वृद्धि दर्ज की गई। फ्रीलांसिंग साइट वर्कफ्लेक्सी पर पंजीकृत गिग कर्मियों की संख्या 2022 में 11,000 और 2021 में महज 3,000 थी। मगर 2023 में वर्कफ्लेक्सी पर 34,000 गिग कर्मी पंजीकरण हुए। एक अन्य प्लेटफॉर्म फाउंडइट पर ह्वाइट कॉलर गिग अर्थव्यवस्था में एक साल पहले के मुकाबले करीब 163 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।
फाउंडइट (पूर्व में मॉन्सटर जॉब्स) के सीईओ शेखर गरिसा ने कहा, ‘गिग कर्मी कंपनियों को अपने कार्यबल को जरूरत के हिसाब से समायोजित करने की सुविधा प्रदान करते हैं। ऐसे में परियोजना की मांग और काम के बोझ में उतार-चढ़ाव के हिसाब से कर्मचारियों की तैनाती में आसानी के अलावा लागत में भी बचत होती है।’
साल 2023 में गिग कर्मियों की तादाद बढ़ गई और ह्वाइट कॉलर यानी प्रबंधन के कामकाज में लगे फ्रीलांस कर्मचारियों ने भी अच्छी कमाई की। गिग प्लेटफॉर्म पिकमायवर्क के अनुसार, साल 2023 में उनकी आय 2022 के मुकाबले 294 फीसदी बढ़ गई।
गिग बाजार में कुशल एवं अनुभवी रोजगार प्रोफाइल वालों की जबरदस्त मांग है। सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग बाजार पर ध्यान केंद्रित करने वाले ऑनलाइन एग्रीगेटर फ्लेसिपल पर गिग कर्मियों का पंजीकरण 2023 में बढ़कर करीब दोगुना हो गया। फ्लेक्सिपल के मुख्य कार्याधिकारी कार्तिक श्रीधरन ने कहा, ‘2023 में सबसे अधिक मांग वाली श्रेणियों में कृत्रिम मेधा/मशीन लर्निंग और इससे संबंधित कौशल वाली डेटा इंजीनियरिंग शामिल हैं।’
एक वास्तविकता यह भी है कि आईटी कंपनियों ने गिग उद्योग के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। सीआईईएल एचर के आंकड़ों से पता चलता है कि 10 आईटी कंपनियों में से 6 फ्रीलांस कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं। इनमें टीसीएस, इन्फोसिस और एलटीआई माइंडट्री भी शामिल हैं। साल 2022 में 10 में से महज 2 आईटी कंपनियां ही फ्रीलांस कर्मियों से काम लेती थीं।
एलटीआई माइंडट्री के मुख्य मानव संसाधन अधिकारी मनोज शिकारखाने ने कहा, ‘हमारा अपना गिग प्लेटफॉर्म गिगस्पेस है जिसमें जबरदस्त वृद्धि हो रही है।’
गिग उद्योग उन अनुभवी पेशेवरों के लिए भी रोजगार पाने की जगह बन गया है जो अपने कामकाज में संतुलन के साथ कौशल बढ़ाना चाहते हैं। विभिन्न क्षेत्रों के लिए काम करने वाली रिदिमा वली ने कहा, ‘यह लंबी अवधि के रिटर्न के लिए उपयुक्त है। यहां आप पर्याप्त अनुभव हासिल करने के बाद अपना कौशल बढ़ाने और समय का प्रबंधन करने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।’
फाउंडइट के अनुसार, इस प्लेटफॉर्म पर 47 फीसदी लोगों को 0 से 3 साल का अनुभव है जबकि 18 फीसदी लोगों को अपने क्षेत्र में 15 साल से अधिक का अुनभव प्राप्त है। अब परियोजना के लिहाज से उपयुक्त गिग कर्मियों के चयन के लिए गिग प्लेटफॉर्म में एआई का उपयोग किया जा रहा है।
साल 2023 के दौरान गिग उद्योग मुख्यधारा में आ गया मगर इस दौरान केवल गिग कर्मियों की तैनाती करने वाली नई कंपनियों का उभार 2014 के बाद सबसे कम रहा। मार्केट इंटेलीजेंस प्लेटफॉर्म ट्रैक्शन के आंकड़ों के अनुसार, साल 2023 के दौरान गिग क्षेत्र में 56 कंपनियां स्थापित हुईं जबकि एक साल पहले यह आंकड़ा करीब 100 रहा था। साल 2015 में सबसे अधिक 1,234 कंपनियां इस क्षेत्र में उतरी थीं।
जहां तक भारतीय गिग अर्थव्यवस्था का सवाल है तो इस साल अब तक कुल 12 अरब डॉलर का वित्तपोषण हुआ है। साल 2021 में 10 करोड़ डॉलर से अधिक के पांच दौर में वित्तपोषण हुआ था। सरकारी मान्यता और कानूनी ढांचे इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौतियां हैं।
भारत के गिग क्षेत्र में 4,500 से अधिक स्टार्टअप मौजूद हैं जो अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। मगर इस क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा एवं जवाबदेही का अभाव एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में हरेक कंपनी अपने तरीके से भुगतान एवं प्रोत्साहन ढांचा तैयार करती है।