मार्च 2008 को खत्म हुई तिमाही में फार्मास्यूटिकल्स कंपनियों के नतीजे साधारण ही रहेंगे और इनकी ग्रोथ बहुत अच्छी नहीं रहेगी।
इसकी सबसे बड़ी वजह है कि रुपए की कीमत बढ़ने का इन कंपनियों के एक्सपोर्ट पर असर पड़ना तय है। इसके अलावा अमेरिका के जेनेरिक्स बाजार में कंपटीशन काफी तगड़ा है और इन कंपनियों के अपने जेनेरिक प्रोडक्ट वहां बेचने में मुश्किल आ रही है और उतने अवसर भी नहीं मिल रहे हैं।
रैनबैक्सी लैबोरेटरीज और डॉ. रेड्डी जैसी जेनेरिक्स कंपनियों की कमाई में बहुत ज्यादा फर्क आने की उम्मीद नहीं है बल्कि इसमें कुछ गिरावट देखने को मिल सकती है। लेकिन बाकी कंपनियों की बिक्री में 25 फीसदी की ग्रोथ दिख सकती है। ऑफ पेटेन्ट दवाओं की कीमतों में अमेरिकी बाजारों में आई गिरावट ने करीब करीब उन सभी भारतीय फार्मा कंपनियों की अमेरिका में बिक्री पर असर डाला है।
रैनबैक्सी और डॉ. रेड्डी जैसी कंपनियों ने ऑथराइज्ड जेनेरिक्स और कुछ दवाओं की बिक्री केवल कुछ समय तक ही करने से 2007 में भारी लाभ कमाया है। लेकिन पिछले कारोबारी साल की आखिरी तिमाही में डॉ. रेड्डी की बिक्री में गिरावट देखी जा सकती है।
रैनबैक्सी की कमाई सबसे ज्यादा सेमी रेगुलेटेड बाजारों की भारी ग्रोथ की वजह से हो सकती है। सन फार्मा का प्रदर्शन भी मार्च 2008 की तिमाही में बेहतर होने की उम्मीद है। सन फार्मा की जेनेरिक दवा प्रोटोनिक्स टैबलेट की शुरुआत से उसके प्रदर्शन सुधरने की उम्मीद है जिसके लिए उसे फॉरेस्ट लैब से अच्छी खासी रकम मिली थी ।