दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉरपोरेशन (डीएचएफएल) के लेनदारों को चार संशोधित पेशकशें मिली हैं लेकिन लेनदार इन पेशकशों को अभी तक खोलकर देखा नहीं है और आपसी आम सहमति चाह रहे हैं कि कैसे बोली प्रक्रिया पर आगे बढ़ा जाए। कंपनी की तरफ से स्टॉक एक्सचेंज को भेजी सूचना में ये बातेंं कही गई है।
बयान में कहा गया है, दिलचस्प रूप से सीओसी को एक बोलीदाता से ईमेल में अटैचमेंट मिला है, जिसे अभी तक खोला नहीं गया है। एक्सचेंज को भेजी सूचना में कहा गया है, प्रशासक को कुछ निश्चित अटैचमेंट के साथ एक आवेदक का ईमेल मिला है, जिसके बारे में कोई जानकारी नहीं है क्योंकि इसे अभी इसे खोला नहीं गया है। बैठक में सीओसी ने अंतिम समाधान योजना और ईमेल को तब तक नहींं खोलने का फैसला लिया जब तक कि सीओसी इस मामले पर सामूहिक रूप से किसी आमसहमति पर न पहुंच जाएं।
एक बैंंकिंग सूत्र ने कहा, ईमेल में संशोधित पासवर्ड संरक्षित पेशकश है, जिसे पीरामल एंटरप्राइजेज ने भेजा है क्योंंकि वह नहींं चाहती कि उसकी पेशकश लीक हो जाए। पीरामल ने दूसरे दौर में खुदरा लोनबुक के लिए बोली संशोधित कर 25,000 करोड़ रुपये किया था, जिसमें सात साल तक भुगतान करना शामिल है और इसके साथ 3,000 करोड़ रुपये का ब्याज भी है। यह पेशकश अमेरिकी फंड ओकट्री की तरफ से डीएचएफएल की पूरी परिसंपत्ति की पेशकश के समान है, जिसने सात साल तक भुगतान की पेशकश की है।
पीरामल समूह के लिए डीएचएफएल की खुदरा लोनबुक को खरीदना अहम है क्योंंकि उसका स्थायी नकदी प्रवाह होलसेल बुक का पूरक बनेगा, जो रियल एस्टेट क्षेत्र में मंदी से मुश्किलों का सामना कर रहा है।
पीरामल व ओकट्री की पेशकश में 12,000 करोड़ रुपये देने की बात है, जो उनकी पेशकश का हिस्सा है। बैंकर चाहते हैं कि बोलीदाताओं से और अग्रिम नकदी मिले। ओकट्री ने भी लेनदारों से कहा है कि वह प्रक्रिया से बाहर निकल जाएगी अगर उसे डीएचएफएल में किसी अन्य तरह की कमियां नजर आएंगी। बैंंकिंग सूत्र ने कहा, आईबीसी प्रक्रिया में शामिल होने वाले प्राइवेज इक्विटीज को लेकर लेनदारों का अनुभव खराब रहा है क्योंकि पेशकश कर वे बाद में उसे वापस ले लेते हैं जब उन्हें ऊंची बोलीदाता घोषित किया जाता है। ओकट्री की शर्तों पर वे कानूनी सलाह ले रहे हैं। ओकट्री, पीरामल और अदाणी के प्रवक्ताओं ने टिप्पणी करने से मना कर दिया।
लेनदार डीएचएफएल के स्वामित्व वाले बीमा उद्यम की बिक्री सबसे पहले पूरा करने की योजना बना रहे हैं ताकि यह मूल कंपनी की बिक्री पर असर न डाले। अगर कोई विदेशी कंपनी डीएचएफएल की हिस्सेदारी खरीदती है तो उसे बीमा नियामक की मंजूरी शायद नहीं मिलेगी क्योंंकि यह बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा का उल्लंधन करेगा। प्रामेरिका लाइफ इंश्योरेंस में डीएचएफएल की हिस्सेदारी 49 फीसदी है जबकि बाकी विदेशी साझेदार के पास है। अदाणी समूह ने प्रतिस्पर्धी बोलीदाताओं को तब चौंका दिया जब उसने थोक परिसंपत्ति की बजाय पूरे डीएचएफएल के लिए बोली लगाने का फैसला लिया। हालांकि पहले दौर में उसने सिर्फ थोक परिसंपत्ति के लिए ही बोली लगाई थी। अदाणी समूह ने बैंकों को 31,250 करोड़ रुपये की पेशकश की है जबकि ओकट्री ने 31,000 करोड़ रुपये की। चौथी बोलीदाता एससी लोवी की बोली थोक बुक के लिए कई शर्तों के साथ है। तीसरे दौर में उसकी बोली की जानकारी नहींं मिल पाई है।
कंपनी के खिलाफ 95,000 करोड़ रुपये का दावा करने वाले डीएचएफएल के लेनदार जल्द से जल्द प्रक्रिया समाप्त करना चाहते हैं क्योंकि बोर्ड पर आरबीआई के नियंत्रण और प्रशासक की नियुक्ति का करीब एक साल पूरा हो चुका है।
