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कोविड के बाद बढ़े मुनाफे का पूंजीगत खर्च में नहीं दिखा असर, कंपनियों का फोकस कर्ज घटाने और लाभांश बढ़ाने पर

मुनाफा बढ़ने के बाद भी इन कंपनियों ने स्थायी संपत्तियों (फिक्स्ड ऐसेट) जैसे संयंत्रों एवं मशीन-उपकरण आदि में निवेश करने में उत्साह नहीं दिखाया है।

Last Updated- September 09, 2024 | 11:23 PM IST
Capex

पिछले चार वर्षों में कंपनियों ने मुनाफा कमाने के मोर्चे पर बाजी मारी है मगर पूंजीगत व्यय के मामले में वे पीछे रही हैं। भारत की शीर्ष सूचीबद्ध कंपनियों (बैंक, वित्त एवं बीमा कंपनियों को छोड़कर) का संयुक्त शुद्ध मुनाफा वित्त वर्ष 2024 के बाद 32.4 प्रतिशत चक्रवृद्धि ब्याज दर (सीएजीआर) से बढ़ा है।

वित्त वर्ष 2014-19 के बीच इन कंपनियों का संयुक्त शुद्ध मुनाफा महज 7.5 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ा था। मगर मुनाफा बढ़ने के बाद भी इन कंपनियों ने स्थायी संपत्तियों (फिक्स्ड ऐसेट) जैसे संयंत्रों एवं मशीन-उपकरण आदि में निवेश करने में उत्साह नहीं दिखाया है।

वित्त वर्ष 2020-24 के दौरान हमारे नमूने में शामिल इन कंपनियों की संयुक्त शुद्ध स्थायी परिसंपत्तियों(जारी पूंजीगत कार्य सहित) में वृद्धि 8.6 प्रतिशत (सीएजीआर) हुई है। यानी वित्त वर्ष 2014-19 के बीच दर्ज 8.5 प्रतिशत के मुकाबले इसमें बहुत फर्क नहीं आया है।

बिज़नेस स्टैंडर्ड ने जिन 898 कंपनियों के आंकड़े खंगाले हैं उनका सालाना शुद्ध मुनाफा पिछले चार वर्षों में वित्त वर्ष 2019-20 में दर्ज 3 लाख करोड़ रुपये से तीन गुना बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 9.17 लाख करोड़ रुपये हो गया। इस दौरान इनकी संयुक्त शुद्ध स्थायी परिसंपत्तियां वित्त वर्ष 2020 के अंत में दर्ज 51 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 के अंत में लगभग 71 लाख करोड़ रुपये हो गईं।

विश्लेषकों की नजर में आय में बढ़ोतरी और पूंजीगत व्यय में अंतर की वजह राजस्व में नरमी है। सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटी में सह-प्रमुख धनंजय सिन्हा कहते हैं, ‘हाल के वर्षों में आय में उछाल के बावजूद अर्थव्यवस्था में मांग मजबूत नहीं हुई है। इससे राजस्व बढ़ने की दर कमजोर हुई है। एक और कारण यह नजर आ रहा है कि पिछले कुछ वर्षों में राजस्व एवं मुनाफे में वृद्धि एक समान नहीं रही है। इससे कंपनियों के लिए राजस्व का अनुमान लगा पाना मुश्किल हो गया है। ऐसे में कंपनियां नई परियोजनाओं में बड़े निवेश की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं।’

इन कंपनियों की शुद्ध बिक्री वित्त वर्ष 2024 में मात्र 2.9 प्रतिशत बढ़ी, जो वित्त वर्ष 2023 की 24.4 प्रतिशत वृद्धि से कहीं कम है। इन कंपनियों में परिसंपत्ति उपयोगिता अनुपात (शुद्ध बिक्री और परिसंपत्ति का अनुपात) भी पिछले वित्त वर्ष कम हो गया। इस नमूने में शामिल 898 कंपनियां बीएसई 500, बीएसई मिड-कैप और बीएसई स्मॉल कैप सूचकांक में शामिल 1021 कंपनियों से ली गई हैं।

हमारे साझा नमूने में शामिल कंपनियों का संयुक्त बाजार पूंजीकरण 6 सितंबर तक 430 लाख करोड़ रुपये था। बीएसई पर सक्रिय कारोबार करने वाली सभी 4,192 कंपनियों के संयुक्त बाजार पूंजीकरण में इनकी हिस्सेदारी 93.5 प्रतिशत थी। शुक्रवार को बीएसई में कारोबार करने वाली सभी कंपनियों का संयुक्त बाजार पूंजीकरण 460 लाख करोड़ रुपये था।

ये आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि कोविड महामारी के बाद आय उछाल का इस्तेमाल कंपनियों ने अपने बहीखाते मजबूत बनाने और कर्ज कम करने के लिए किया है। इनके अलावा उन्होंने अपने शेयरधारकों को अधिक लाभांश दिए हैं और शेयरों की पुनर्खरीद की है। शेष बची रकम उन्होंने अपने पास जमा रखी हैं।

वित्त वर्ष 2020-24 के दौरान इन कंपनियों की सकल उधारी 4.8 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ी है। यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2014-19 के दरम्यान दर्ज 7.5 प्रतिशत सालाना वृद्धि दर से काफी कम है। इसकी तुलना में इन कंपनियों की संयुक्त हैसियत वित्त वर्ष 2020-24 के दौरान12.5 प्रतिशत सीएजीआर के साथ बढ़ी, जो वित्त वर्ष 2014-19 की 9.5 प्रतिशत तुलना में अधिक रही।

इसका नतीजा यह हुआ कि वित्त वर्ष 2024 के अंत में इन कंपनियों का सकल ऋण एवं इ​क्विटी अनुपात घट कर 0.67 रह गया, जो पिछले 14 वर्षों में सबसे कम है। वर्ष 2024 के अंत में शुद्ध ऋण एवं पूंजी अनुपात कम होकर 0.4 रह गया।

First Published - September 9, 2024 | 10:51 PM IST

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