मारुति सुजूकी के चेयरमैन आरसी भार्गव ने भारत में कॉरपोरेट औसत ईंधन दक्षता 3 (कैफे 3) मानदंडों को लागू किए जाने के विवाद में एक नया आयाम जोड़ते हुए कहा है कि यह नियम बड़ी कारों के पक्ष में है। उन्होंने कहा कि छोटी कारें प्रति यात्री कम उत्सर्जन करती हैं। इतना ही नहीं छोटी कारों के निर्माण में कम सामग्रियों का इस्तेमाल होता है और उनमें ईंधन की खपत भी कम होती है।
कैफे नियमों के तहत सरकार ने ईंधन खपत मानकों के पालन को अनिवार्य बनाया है। ऑटो कंपनियों को वाहन के वजन और बिक्री मात्रा के हिसाब से समूचे बेड़े में औसत कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन लक्ष्य का पालन करना है। यह नियम इस हिसाब से बनाए गए हैं कि देश में तेल आयात कम हो और सड़कों पर कार्बन उत्सर्जन में कमी आए।
बिज़नेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए भार्गव ने कहा, ‘कैफे नियम यूरोपीय कार बाजार पर आधारित थे। वहां अधिक छोटी कारें नहीं हैं क्योंकि कीमतें अधिक होने के कारण बिक्री घट गई है। मैं समझता हूं कि यह नियम बड़ी कारों के पक्ष में हैं। यह एक वास्तविकता है कि छोटी कारें प्रति यात्री कम उत्सर्जन करती हैं और कम सामग्री एवं कम ईंधन का उपयोग करती हैं।’
भार्गव का यह रुख छोटी कारों के पक्ष मगर कई अन्य वैश्विक कार विनिर्माताओं के खिलाफ है। इन कंपनियों ने कार के आकार के आधार पर नियमों में किसी भी तरह की ढील दिए जाने पर आपत्ति जताई है।
भार्गव ने इस बात पर जोर दिया कि देश की अनूठी परिवहन जरूरतों को देखते हुए इस तरह का भेद करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि कैफे मानदंड भारत में कारों की कीमत निर्धारित करने वाला एक घटक है। हालांकि, यह भारत में कार उत्पादन और बिक्री की संरचना के बारे में सरकार द्वारा तय किए गए निर्णय के अनुरूप होना चाहिए।
भार्गव ने कहा ‘भारत में करीब दो-तिहाई आबादी व्यक्तिगत परिवहन के लिए अभी भी स्कूटर और मोटरसाइकिल पर निर्भर है। यह एक बड़ा तबका है जिसे परिवहन के सुरक्षित, आरामदायक और किफायती साधन की आवश्यकता है। जाहिर तौर पर छोटी कार उनकी जरूरत है। इसलिए न केवल कैफे मानदंड बल्कि अन्य सभी नियमों एवं करों के मामले में भी इस श्रेणी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। सिर्फ अमीरों के प्रीमियम वाहनों पर जोर नहीं होना चाहिए।’
भार्गव ने अपने प्रतिस्पर्धियों की ओर इशारा करते हुए अफसोस जताया कि कार कंपनियां प्रस्तावित नियमों को संकीर्ण नजरिये से देख रही हैं। उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से कार विनिर्माता देश की जरूरतों के लिहाज से गौर नहीं कर रहे हैं। वे केवल इतना देख रहे हैं कि उनकी कंपनियां क्या चाहती हैं। ऐसे में सरकार को यह अवश्य देखना चाहिए कि देश क्या चाहता है।’
कई कार विनिर्माता कैफे 3 मानदंडों को लागू किए जाने के खिलाफ पहले से ही आवाज उठा रहे हैं। इन नियमों के अनुसार 1 अप्रैल, 2027 से कार उत्सर्जन में एक तिहाई कमी लाना आवश्यक है। टाटा मोटर्स, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा और टोयोटा किर्लोस्कर जैसे वाहन विनिर्माताओं ने इस तरह के सख्त विनियमन पर चिंता जताई है।
खास तौर पर उन्होंने छोटी कारों के लिए प्रस्तावित छूट का विरोध किया है जिस पर सरकार फिलहाल चर्चा कर रही है। भारी उद्योग मंत्रालय कैफे 3 मानदंडों को वाहन के आकार के साथ जोड़ने पर विचार कर रहा है। वाहन विनिर्माताओं के संगठन सायम ने आशंका जताई है कि इन नियमों के लागू होने से वाहन कीमतों में इजाफा होगा। उसने कहा कि चिंता की बात यह है कि कीमतों में वृद्धि ऐसे समय में होगी जब उद्योग नरमी से जूझ रहा है।