बढ़ते कारोबार के मद्देनजर ग्राहकों के करीब पहुंचने में बीमा कंपनियां न तो कोताही बरत रही हैं और न ही कंजूसी कर रही हैं।
यही वजह है कि प्रचार के लिए इन कंपनियों ने पिछले साल विज्ञापनों पर लगभग 900 करोड़ रुपये खर्च किए।
दिलचस्प है कि बीमा उत्पादों के प्रचार पर 2002 में महज 200 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
मीडिया के जरिये प्रचार पर खर्च राशि का 53 फीसदी हिस्सा टेलीविजन में और बाकी का हिस्सा प्रिंट मीडिया में लगाया गया। सबसे मजेदार तथ्य तो यह है कि इस कुल खर्च का 70 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ जीवन बीमा कंपनियों ने ही खर्च किया।
विज्ञापन की इस दौड़ में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) सबसे आगे है।
कंपनी ने वर्तमान और आगामी वित्तीय वर्ष में अकेले ही 100 करोड़ रुपये मार्केटिंग और प्रचार में लगाने का निर्णय लिया है।
एलआईसी के प्रचार के तरीकों में भी जबर्दस्त बदलाव आया है। निजी बीमा कंपनियों के आने के बाद बदलाव के महत्त्वपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं।
उदाहरण के लिए पहले एलआईसी अधेड़ उम्र के लोगों और बुजुर्गों को लक्षित करता था, लेकिन निजी बीमा कंपनियां महिलाओं के साथ, सभी आयु वर्ग के लोगों को ध्यान में रखती हैं।
सूत्रों के अनुसार, ‘एलआईसी अपने विज्ञापन अभियान को बदलने के बारे में ध्यान दे रही है और साथ ही सभी आयु वर्गों की पसंका भीख्याल रख रही है।’
दूसरी ओर निजी बीमा कंपनियां लोगों के बीच रक्तदान कैम्प, प्रतियोगिताओं और सामाजिक गतिविधियों के जरिये अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रही हैं।
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मार्केटिंग प्रमुख, सुजित गांगुली का कहना है कि शुरुआत में निजी क्षेत्र की कंपनियों के प्रचार अभियान में ग्राहकों को उत्पाद शुरू करने की सूचना ही दी जाती, लेकिन धीरे-धीरे इनका मकसद ग्राहक में विश्वास और जागरुकता पैदा करवाना हो गया है।
इसके बाद निजी कंपनियों की रणनीति कंपनी और उसके उत्पाद की खासियत से ग्राहकों को रू-ब-रू कराना है।
कस्बाई बाजारों के बारे में भारती एक्सा लाइफ के वितरण और मार्केटिंग प्रमुख श्यामल सक्सेना का कहना है कि व्यापार और नियामक नजरिये से कस्बाई क्षेत्रों में ब्रांड को ले जाना काफी चुनौतीपूर्ण काम है और वहां लोगों के दिलों में जीवन बीमा के प्रति विश्वास बनाना काफी जरूरी भी है।
जीवन बीमा कंपनियों के ब्रांड संदेशों का लक्ष्य भी ग्राहकों का भरोसा जीतना और उनके साथ भावनात्मक रिश्ता बनाना होता है। उनके मुताबिक ये दोनों ही चीजें ग्राहकों को निवेश करने के लिए उचित ब्रांड चुनने में मदद करती हैं।