सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि बैंक की एकमुश्त निपटान (ओटीएस) योजना को अधिकार के तौर पर लागू नहीं किया जा सकता है। फैसले में कहा गया है कि उधारकर्ताओं को इसका लाभ उठाने के लिए अनिवार्य शर्तों का सख्ती से पालन करना होगा, जिसमें बकाया रकम के एक निश्चित हिस्से का अग्रिम भुगतान भी शामिल है।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और एजी मसीह के पीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को एक उधारकर्ता के ओटीएस आवेदन पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया गया था, जबकि वह उधारकर्ता आवश्यक अग्रिम जमा करने में विफल रहा था। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल पात्रता से ही कोई निहित अधिकार नहीं मिल सकता है।
न्यायमूर्ति दत्ता ने पीठ के फैसले में कहा, ‘यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ओटीएस का लाभ उठाने के लिए आवेदन पर विचार तभी किया जाएगा जब उसके साथ 5 फीसदी बकाये रकम का अग्रिम भुगतान किया जाए। मगर इस मामले में वादी ने एक पैसा भी जमा नहीं कराया जिससे उसका आवेदन अधूरा और विचार करने लायक नहीं रहा।’ शीर्ष न्यायालय ने दोहराया कि ओटीएस तंत्र एक रियायत है न कि लागू करने लायक कोई अधिकार। पीठ ने कहा कि एसबीआई द्वारा प्रस्ताव को खारिज किया जाना बिल्कुल सही था क्योंकि प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए 5 फीसदी ओटीएस रकम जमा करने की पूर्व शर्त पूरी नहीं हुई थी। यह विवाद उस समय पैदा हुआ जब उधारकर्ता तान्या एनर्जी अपनी 7 गिरवी परिसंपत्तियों के बदले लिये गए ऋण की अदायगी में डिफॉल्ट कर गई।
एसबीआई ने खाते को गैर-निष्पादित आस्ति (NPA) के रूप में वर्गीकृत किए जाने के बाद सरफेसी कानून के तहत वसूली की प्रक्रिया शुरू की और गिरवी रखी गई परिसंपत्तियों की नीलामी करने की कोशिश की। मगर इसके साथ-साथ उधारकर्ता ने एसबीआई की 2020 की ओटीएस योजना के तहत आवेदन कर दिया। हालांकि बैंक ने गैर-अनुपालन, पिछली चूक, तथ्यों को छिपाने और ऋण वसूली ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित मामले के मद्देनजर आवेदन को खारिज कर दिया।
इसके बावजूद उच्च न्यायालय के एक एकल पीठ और बाद में एक खंडपीठ ने एसबीआई को उधारकर्ता के प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया। एसबीआई ने उस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी।
सर्वोच्च न्यायालय ने एसबीआई की अपील को स्वीकार करते हुए माना कि बैंक कानून के तहत वसूली उपायों को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है। उसने उधारकर्ता के लिए 2020 की योजना से इतर एक नए समझौता प्रस्ताव के लिए सीमित गुंजाइश छोड़ी।
न्यायालय ने कहा कि यदि प्रस्तावित शर्तें उचित एवं व्यावहारिक पाई जाती हैं तो एसबीआई ऐसे प्रस्ताव पर विचार कर सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले का व्यापक प्रभाव यह होगा कि बैंक अब बातचीत के लिए मजबूत स्थिति में होंगे।