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BluSmart बंद होने से ड्राइवरों का फूटा गुस्सा: जंतर मंतर पर प्रदर्शन, मांगा मुआवजा और नौकरी की गारंटी

ब्लूस्मार्ट मुख्य रूप से भारत के तीन शहरों—दिल्ली-एनसीआर, मुंबई और बेंगलुरु—में चलती है। कंपनी के पास 10,000 से ज्यादा ड्राइवरों की वर्कफोर्स थी।

Last Updated- May 05, 2025 | 7:33 AM IST
BluSmart

ऑल-इलेक्ट्रिक राइड-हेलिंग कंपनी ब्लूस्मार्ट (BluSmart) के ड्राइवरों ने रविवार को जंतर मंतर पर जोरदार प्रदर्शन किया। यह विरोध उस समय हुआ जब कुछ हफ्ते पहले कंपनी ने अचानक अपना ऑपरेशन बंद कर दिया था, जिससे सैकड़ों ड्राइवर बिना किसी चेतावनी के बेरोजगार हो गए। प्रदर्शन कर रहे ड्राइवरों की मुख्य मांगों में तीन महीने की सैलरी के बराबर मुआवजा (severance package) और यह सुनिश्चित करने के लिए एक बाध्यकारी प्रतिबद्धता शामिल है कि ब्लूस्मार्ट या उसकी संपत्तियों को भविष्य में खरीदने वाला कोई भी खरीदार मौजूदा ड्राइवर वर्कफोर्स को बरकरार रखे ताकि उनकी नौकरी जारी रह सके। जंतर मंतर पर हुआ यह प्रदर्शन परिवहन मोर्चा (Parivahan Morcha) के नेतृत्व में हुआ, जिसे गिग वर्कर्स एसोसिएशन का समर्थन मिला।

बेसहारा महसूस कर रहे ड्राइवर्स

ब्लूस्मार्ट का ऑपरेशन बंद होने के बाद से कंपनी की ओर से अब तक कोई सीधी और साफ-सुथरी बातचीत न होने के कारण ड्राइवरों का कहना है कि वे खुद को बेसहारा महसूस कर रहे हैं। ब्लूस्मार्ट के एक ड्राइवर बबलू ने कहा, “अब हमारा भविष्य अंधकारमय लग रहा है। हमें सड़क पर छोड़ दिया गया है, कमाई का कोई जरिया नहीं बचा।”

अपनी आपबीती सुनाते हुए उन्होंने बताया कि जब उन्होंने किसी दूसरी राइड-शेयरिंग कंपनी में काम तलाशने की कोशिश की, तो वहां भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि उनके पास अपनी कार नहीं थी। “मैं एक फ्लीट मैनेजमेंट कंपनी के पास गया ताकि किराए पर कार मिल सके। उन्होंने ₹10,000 सिक्योरिटी मांगी और ₹700 प्रतिदिन किराया। अब आप ही बताइए, हम ये खर्च कैसे उठाएं?” बबलू ने सवाल किया।

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महिला ड्राइवरों पर सबसे ज्यादा असर

ब्लूस्मार्ट के बंद होने का सबसे ज्यादा असर महिला ड्राइवरों पर पड़ा है। आमदनी खोने के साथ-साथ उन्हें उस सच्चाई का भी सामना करना पड़ रहा है कि नौकरी का बाजार अब भी महिला ड्राइवरों के लिए भेदभाव से भरा है। बुराड़ी की रहने वाली 28 साल की जूली जनवरी 2025 में ब्लूस्मार्ट से जुड़ी थीं और हर महीने ₹20,000 से ₹22,000 की कमाई कर रही थीं। लेकिन अब, जब वह अपनी मां और छोटी बहन सहित तीन लोगों के परिवार में अकेली कमाने वाली सदस्य हैं, तो उन्हें नई नौकरी पाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

जूली ने बताया, “मैंने अक्टूबर 2024 में ड्राइविंग लाइसेंस लिया था। लेकिन ज़्यादातर कंपनियों की मांग होती है कि लाइसेंस कम से कम 2-3 साल पुराना होना चाहिए। फिलहाल मैं इस लाइसेंस वाली शर्त में फंस गई हूं, ऊपर से महिला ड्राइवरों को कंपनियां वैसे भी आसानी से मौका नहीं देतीं।”

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एक अन्य महिला ड्राइवर सुमन सिंह ने कहा कि वह अपनी EMI चुकाने में कठिनाई का सामना कर रही हैं। उन्होंने कहा, “मुझे समझ नहीं आ रहा कि अपने स्मार्टफोन की बची हुई EMI कैसे चुकाऊं। अगर कहीं नौकरी तलाशने जाती हूं, तो महिला ड्राइवरों के लिए मौके ही बहुत कम हैं।” सुमन दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग की छात्रा हैं और पढ़ाई के साथ-साथ काम भी संभाल रही थीं।

10,000 से ज्यादा ड्राइवरों की नौकरी जाने का डर

वहीं, परिवहन मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तजिंदर सिंह ने कहा, “कंपनी ने रातोंरात ऑपरेशन बंद कर दिया और ड्राइवरों को बिना काम के छोड़ दिया। हमारी मांग है कि कोई भी कंपनी बिना पूर्व सूचना के किसी कर्मचारी को अचानक बाहर न निकाल सके। और इस मामले में, ड्राइवरों को आजीविका कमाने का कोई न कोई साधन जरूर मुहैया कराया जाए।”

ब्लूस्मार्ट मुख्य रूप से भारत के तीन शहरों—दिल्ली-एनसीआर, मुंबई और बेंगलुरु—में चलती है। कंपनी के पास 10,000 से ज्यादा ड्राइवरों की वर्कफोर्स थी।

गिग वर्कर्स एसोसिएशन के संगठन सचिव नितेश कुमार दास ने कहा, “कोई भी कंपनी ऐसे ही मजदूरों को छोड़ कर नहीं जा सकती। इनमें से कई ड्राइवर प्रवासी हैं और अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं। इन ड्राइवरों को तीन महीने की सैलरी के बराबर मुआवजा और वैकल्पिक रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए।”

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2022 में ब्लूस्मार्ट से जुड़े संजय सागर ने कहा, “जब भी कोई दुर्घटना होती थी, तो नुकसान की भरपाई हमें ही करनी पड़ती थी। मैंने एक बार ₹25,000 चुकाए थे। लेकिन अब हम बिना किसी गलती के बेरोजगार हो गए हैं। इस बार गलती कंपनी की है, इसलिए मुआवजा भी उन्हें ही देना चाहिए।”

ड्राइवरों ने यह मांग भी उठाई कि उन्हें यूनियन बनाने का अधिकार मिलना चाहिए ताकि वे मिलकर उचित वेतन, नौकरी की सुरक्षा और बेहतर कामकाजी हालात के लिए बातचीत कर सकें। फिलहाल गिग वर्कर्स पारंपरिक श्रम कानूनों के दायरे में नहीं आते, इसलिए उन्हें यूनियन बनाने का कानूनी अधिकार नहीं है।

First Published - May 5, 2025 | 7:33 AM IST

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