सर्वोच्च न्यायालय ने अदाणी समूह की कंपनियों के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने के बाद निवेशकों को करोड़ों रुपये की चपत लगने और इस मामले में किसी नियामकीय विफलता की जांच करने के लिए आज पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अभय मनोहन सप्रे की अध्यक्षता वाली समिति में ओपी भट्ट, सेवानिवृत्त न्यायाधीश जेपी देवधर, नंदन नीलेकणी, केवी कामत और सोमशेखर सुंदरेशन शामिल हैं।
समिति को दो महीने के अंदर सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपने का निर्देश दिया गया है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने आदेश में कहा, ‘अदालत को लगता है कि निवेशकों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करने के वास्ते नियामकीय तंत्र के लिए एक समिति गठित करने की जरूरत है।’ अदालत ने कहा कि समिति यह भी जांचेगी कि अदाणी समूह या अन्य कंपनियों पर प्रतिभूति बाजार से संबंधित आरोपों का मामला निपटाने में किसी तरह की नियामकीय चूक तो नहीं हुई।
फैसले में कहा गया है, ‘समिति समूची स्थिति का मूल्यांकन करेगी और यह भी देखेगी कि शेयर बाजार में हाल में अस्थिरता किन वजहों से आई। वह निवेशकों में जागरूकता बढ़ाने के उपाय सुझाएगी और यह भी देखेगी कि अदाणी समूह या अन्य कंपनियों के मामले में शेयर बाजार से जुड़े किसी नियम के कथित उल्लंघन से निपटने में नियामक की नाकामी तो नहीं रही। समिति निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए नियामकीय ढांचे को मजबूत करने और मौजूदा ढांचे के तहत अनुपालन सुनिश्चित करने पर भी सुझाव देगी।’
अदालत ने उल्लेख किया कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) अदाणी समूह की कंपनियों पर हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच पहले ही शुरू कर चुका है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘सेबी ने बताया है कि वह रिपोर्ट प्रकाशित होने के पहले और उसके बाद की बाजार गतिविधियों की पड़ताल कर रहा है ताकि पता लगाया जा सके कि नियमों का किसी तरह से उल्लंघन तो नहीं हुआ है।’
मामले की सुनवाई करने वाले पीठ में न्यायमूर्ति पीएस नरसिंह और न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि अदाणी समूह की कंपनियों के खिलाफ हिंडनबर्ग के आरोपों पर चल रही जांच के साथ ही सेबी को यह भी देखना चाहिए कि प्रतिभूति अनुबंध (नियमन) नियम, 1957 के नियम 19ए का उल्लंघन तो नहीं हुआ है, संबंधित पक्षों के साथ लेनदेन और अन्य प्रकार की जानकारी देने में कोताही तो नहीं बरती गई है। इसके साथ ही शेयरों की कीमतों में हेराफेरी की आशंका भी जांची जानी चाहिए।
प्रतिभूति अनुबंध (नियमन) नियम, 1957 का नियम 19ए न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता बनाए रखने तथा तय समय में इसे हासिल करने से संबंधित है। पनाग ऐंड बाबू में पार्टनर समुद्र सारंगी ने कहा, ‘शीर्ष अदालत ने उम्मीद जताई कि सेबी इस मामले में गहनता से जांच करेगा और लंबी जांच में अहम मुद्दों से भटक नहीं जाएगा।
इसके साथ ही अदालत ने सेबी को तय मियाद के भीतर जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। इससे पता चलता है कि शीर्ष अदालत प्रमुख समस्याओं की तत्काल पहचान तो चाहती ही है, साथ ही यह भी चाहती है कि भविष्य में बाजार को इस तरह की अस्थिरता से बचाने के लिए समाधान खोज लिया जाए।’ आदेश लिखे जाने के अंत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से अपने आदेश में यह भी लिखवाए जाने का अनुरोध किया कि विशेषज्ञ समिति का गठन किसी भी नियामक निकाय के कामकाज को प्रतिबिंबित नहीं करता है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आदेश में स्पष्ट किया गया है कि विशेषज्ञ समिति का गठन सेबी को प्रतिभूति बाजार में हालिया अस्थिरता की जांच जारी रखने की शक्तियों या जिम्मेदारियों से वंचित नहीं करता है। अदालत ने बाजार नियामक को विशेषज्ञ सामिति की मदद करने का भी निर्देश दिया। अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए अदाणी समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी ने ट्वीट किया, ‘अदाणी समूह सर्वोच्च अदालत के फैसले का स्वागत करता है। इससे तय समय में इससे सारी चीजें साफ हो जाएंगी और सच्चाई की जीत होगी।’