उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) सहित सभी मंजूरियां मिलने के बाद इंडसइंड इंटरनैशनल होल्डिंग्स (आईआईएचएल) द्वारा जनवरी के अंत तक रिलायंस कैपिटल का अधिग्रहण पूरा करने की उम्मीद है। आईआईएचएल के चेयरमैन अशोक हिंदुजा ने इसकी जानकारी दी।
रिलायंस कैपिटल और उसकी सहायक इकाइयों का अधिग्रहण करने के साथ ही आईआईएचएल इन्वेस्को ऐसेट मैनेजमेंट और इनवेस्को ट्रस्टी का अधिग्रहण करने की भी प्रक्रिया में है। इन सौदों के पूरा होने पर आईआईएचएल 2030 तक 50 अरब डॉलर के मूल्यांकन की उम्मीद कर रही है। वर्तमान में आईआईएचएल का मूल्यांकन करीब 15 अरब डॉलर है। आईआईएचएल मॉरीशस की निवेश होल्डिंग कंपनी है और कई बैंकिंग तथा वित्तीय संपत्तियों में इसके निवेश हैं।
डीपीआईआईटी की मंजूरी के बाद आईआईएचएल द्वारा रिलायंस कैपिटल (आरकैप) के अधिग्रहण को पूरा करने के लिए प्रशासक और लेनदारों की समिति आरकैप के इक्विटी शेयरों और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी) की डीलिस्टिंग करेगी और संपत्तियों के हस्तांतरण के लिए एक ट्रस्ट बनाएगी। इस पूरी प्रक्रिया में 4 से 6 सप्ताह के बीच समय लगने की उम्मीद है।
फरवरी 2024 को राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) ने रिलायंस कैपिटल के लिए आईआईएचएल की समाधान योजना को मंजूरी दी थी। आरकैप का अधिग्रहण करने के साथ ही आईआईएचएल को इसकी 42 इकाइयों पर नियंत्रण हो जाएगा, जिनमें रिलायंस निप्पॉन लाइफ इंश्योरेंस, रिलायंस जनरल इंश्योरेंस, रिलायंस सिक्योरिटीज और रिलायंस ऐसेट रीकंस्ट्रक्शन प्रमुख हैं।
रिलायंस कैपिटल के अधिग्रहण पर आईआईएचएल 9,861 करोड़ रुपये खर्च करेगी जिनमें 7,300 करोड़ रुपये बार्कलेज और 360 वन से कर्ज के रूप में जुटाया है और 2,750 करोड़ रुपये इक्विटी से जुटाए हैं। इसके अलावा आईआईएचएल रिलायंस जनरल इंश्योरेंस में अतिरिक्त 200 करोड़ रुपये का पूंजी लगाएगी।
हिंदुजा ने कहा, ‘2,750 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। कर्ज से 3,000 करोड़ रुपये जुटाए जा चुके हैं जिसे अलग खाते में रखा गया है और 4,300 करोड़ रुपये कर्ज का आंवटन रिलायंस कैपिटल को स्टॉक एक्सचेंजों से डीलिस्ट कराने के बाद किया जाएगा।’
हिंदुजा ने कहा कि रिलायंस कैपिटल के अधिग्रहण के बाद आईआईएचएल को आरकैप की कंपनियों में तत्काल पूंजी डालने की जरूरत नहीं होगी। हालांकि वृद्धि के लिए पूंजी की जरूरत पड़ने पर आईआईएचएल उसमें निवेश कर सकती है।
आईआईएचएल रिलायंस कैपिटल की 34 या 35 सहायक इकाइयों को बेच सकती है क्योंकि इनमें से ज्यादातर छोटी और मुखौटा फर्में हैं जिनका कारोबार बहुत सीमित है। इससे आईआईएचएल को करीब 450 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है।
इसके साथ ही रिलायंस कैपिटल की कुछ संपत्तियों की बिक्री से वह 1,000 करोड़ रुपये जुटा सकती है जिसे आरकैप की सहायक इकाइयों में निवेश किया जाएगा। कंपनी प्रबंधन के बारे में हिंदुजा ने कहा कि वह फिलहाल सहायक इकाइयों के प्रबंधन में बदलाव की संभावना नहीं देख रहे हैं।
अशोक हिंदुजा ने कहा, ‘मौजूदा प्रबंधन अच्छा काम कर रहा है और इसे बदलने की जरूरत नहीं है। अगर कंपनी 3-4 साल से मुनाफा कमा रही है तो इसका मतलब है कि प्रबंधन अच्छा कर रहा है।’
हालांकि रिलायंस कैपिटल के बोर्ड में बदलाव होगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने कंपनी के लिए 5 निदेशकों को मंजूरी दी थी जिनमें एम हार्डिंग जोन, अरुण तिवारी, शरदचंद्र जरेगावकर, भूमिका बत्रा और अमर चिंतापंथ शामिल हैं।
कारोबार बढ़ाने के बारे में हिंदुजा ने कहा, ‘इन संस्थाओं के पास वर्तमान में कोई बैंकएश्योरेंस गठजोड़ नहीं है, इसलिए पहला कदम बैंकएश्योरेंस साझेदारी करना होगा। हालांकि अधिग्रहण पूरा होने तक हम किसी भी समझौते को अंतिम रूप नहीं दे सकते। अधिग्रहण के बाद उम्मीद है कि हम इस वित्त वर्ष में मार्च से पहले पॉलिसीधारकों को सेवा में सुधार करने के लिए बैंकएश्योरेंस गठजोड़ कर लेंगे और डिजिटल सुविधा भी शुरू कर देंगे।’
आईआईएचएल ने रिलायंस कैपिटल की विभिन्न सहायक कंपनियों में रणनीतिक साझेदार लाने का विकल्प खुला रखा है लेकिन यह अपनी बहुलांश हिस्सेदारी को कम नहीं करेगा और केवल अल्पांश हिस्सेदारी बेच सकती है। हिंदुजा ने कहा, ‘मुझे आईआईएचएल में अपने शेयरधारकों के हितों को देखना है, इसलिए कोई भी निवेशक जो अल्पांश निवेशक के रूप में आना चाहे, उसका स्वागत है।’ उन्होंने कहा कि मॉरीशस में होल्डिंग कंपनी में अल्पांश शेयरधारक के रूप में निवेश करने के लिए कई कंपनियां इच्छुक हैं।
नवंबर 2021 में भारतीय रिजर्व बैंक ने कंपनी संचालन में खामियां और भुगतान में चूक करने के कारण अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस कैपटल के बोर्ड को निलंबित कर दिया था। केंद्रीय बैंक ने नागेश्वर राव को रिलायंस कैपिटल का प्रशासक नियुक्त किया था, जिन्होंने फरवरी 2022 में रिलायंस कैपिटल के अधिग्रहण के वास्ते बोलियां आमंत्रित की थी।
रिलायंस कैपिटल पर ऋणदाताओं ने 37,744 करोड़ रुपये का दावा किया था जिनमें से 25,345 करोड़ रुपये का दावा स्वीकार किया गया था। चार आवेदकों ने समाधान योजना के साथ बोली लगाई थी। लेकिन ऋणदाताओं की समिति ने सभी चारों बोलियों को खारिज कर दिया था। बाद में आईआईएचएल और टॉरेंट ने बोली में हिस्सा लिया और बाजी आईआईएचएल के हाथ लगी।