खाद्य पदार्थों की कीमत कम होने से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की अगली बैठक में कम सख्ती की उम्मीद की जा रही है, लेकिन पिछले कुछ सप्ताह की गतिविधियों से पता चलता है कि यह गिरावट सभी जिंसों में एक समान नहीं है। खासकर गेहूं और चावल इससे बाहर हैं।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थानीय गेहूं की कीमत बुधवार को रिकॉर्ड 23,547 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई। यह हाल के न्यूनतम स्तर की तुलना में 12 प्रतिशत ज्यादा है, जब सरकार ने 14 मई को निर्यात पर अचानक प्रतिबंध लगा दिया था। रॉयटर्स ने कहा कि यह तेजी गर्म हवा के थपेड़ों से फसल खराब होने के कारण आपूर्ति घटने और मांग में तेजी की वजह से आई है।
अगर धान की स्थिति देखें तो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के मुख्य धान उत्पादक इलाकों में जून से ही असमान व मामूली बारिश हुई है। इसकी वजह से जुलाई महीने के मध्य तक धान का रकबा पिछले साल की तुलना में 17 प्रतिशत कम
हो गया है।
कुछ दिन पहले एक नोट में बैंक आफ बड़ौदा की अर्थशास्त्री जाह्नवी प्रभाकर ने कहा, ’25 जुलाई तक 36 सब डिवीजन में से सिर्फ 7 में इस अवधि के दौरान कम बारिश हुई है। बहरहाल बारिश का वितरण असमान रहा है और चिंता बढ़ रही है कि इसकी वजह से बुआई में कमी आ सकती है और उत्पादन कम हो सकता है। इससे खाद्य महंगाई पर भी बुरा असर पड़ सकता है।’
हालांकि इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में मॉनसूनी बारिश बहाल होने की उम्मीद है, जिससे उम्मीद है कि धान की रोपाई गति पकड़ेगी और यह पिछले साल के स्तर से पार चली जाएगी, लेकिन उल्लेखनीय मात्रा में रोपाई तब होगी, जब इसकी प्रमुख अवधि बीत चुकी होगी। ऐसे में फसल के उत्पादन को लेकर सवाल उठता है।
आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक विनोद कौल ने कहा, ‘हां, कुछ सप्ताह पहले तक स्थिति खराब थी। लेकिन जुलाई के मध्य से बारिश बहाल हुई है, जिसकी वजह से अंतिम विश्लेषण को लेकर हमारी उम्मीद बढ़ी है। कुल मिलाकर धान का रकबा पिछले साल की तुलना में बहुत ज्यादा कम नहीं रहेगा।’
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों में चावल के दाम बढ़े हैं, क्योंकि कुछ प्रमुख धान उत्पादक इलाकों में बारिश कम हुई है। कौल ने कहा, ‘निर्यात के मामले में हमें भरोसा है कि भारत 2 से 3 करोड़ टन चावल निर्यात करने में इस साल सफल रहेगा, जिसमें 45 लाख टन बासमती चावल शामिल है।’
हालांकि सभी लोग इस तरह आशान्वित नहीं हैं। आईग्रेन इंडिया में जिंस विश्लेषक राहुल चौहान ने कहा कि चावल का बाजार बढ़ा है, क्योंकि भारत के पूर्वी इलाकों में बारिश पर्याप्त मात्रा में नहीं हुई है, साथ ही चावल सहित सभी अनाज की वैश्विक कमी है।
चौहान ने कहा, ‘प्रमुख धान निर्यातक देशों में या तो कम स्टॉक है या वहां कीमत भारत की तुलना में ज्यादा है। यही वजह है कि भारत से निर्यात की पूछताछ ज्यादा है।’ उन्होंने कहा कि चावल निर्यातक भी जल्दबाजी में हैं क्योंकि उन्हें डर है कि गेहूं की तरह चावल के निर्यात पर भी सरकार रोक लगा सकती है।
1 जुलाई, 2022 तक केंद्रीय पूल में चावल का भंडार बफर और रणनीतिक स्टॉक जरूरतों की तुलना में करीब 134 प्रतिशत ज्यादा था और चावल की कुल मात्रा करीब 315 लाख टन है, जो 135 लाख टन की जरूरत की तुलना में बहुत ज्यादा है। चावल के इस स्टॉक में मिलर्स के पास पड़ा 231.5 लाख टन धान शामिल नहीं है। इससे राहत के संकेत मिलते हैं।
वहीं इसके विपरीत गेहूं का स्टॉक 1 जुलाई 2022 को करीब 285.1 लाख टन था, जो जरूरी बफर की तुलना में महज 10 लाख टन अधिक है। इससे पहले करीब 14 साल पहले 2008 में गेहूं का स्टॉक इस स्तर पर था, जब यह 249.1 लाख टन पहुंच गया था। वित्त वर्ष 23 में गेहूं की खरीद में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में करीब 59 प्रतिशत की गिरावट आई है।