बांग्लादेश सरकार की ओर से 9 लाख टन चावल आयात की योजना ने भारतीय चावल उद्योग में नई ऊर्जा भर दी है। उद्योग से जुड़े लोगों का मानना है कि इस फैसले से भारत को मांग में उछाल और कीमतों में सुधार का लाभ मिलेगा।
भारत वर्तमान में वैश्विक चावल निर्यात का 46% हिस्सा रखता है, और बांग्लादेश के इस निर्णय से भारत को प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में फायदा मिलने की पूरी उम्मीद है, खासकर नजदीकी, पर्याप्त आपूर्ति और प्रतिस्पर्धी कीमतों के चलते।
Ricevilla Foods के CEO सूरज अग्रवाल ने बताया कि बांग्लादेश सरकार 4 लाख टन चावल अंतरराष्ट्रीय निविदाओं के ज़रिए सीधे खरीदेगी, जबकि 5 लाख टन का आयात निजी व्यापारियों के माध्यम से होगा। उन्होंने कहा, “यह निर्णय सामान्य से पहले लिया गया है, क्योंकि भारी बारिश के कारण ‘अमन’ धान की फसल को नुकसान पहुंचने का खतरा है।”
जय बाबा बक्रेश्वर राइस मिल के निदेशक राहुल अग्रवाल ने बताया कि बंगाल की चावल मिलें और व्यापारी इस योजना से सबसे अधिक लाभान्वित होंगे। उन्होंने कहा कि निजी आयात का 30-40% हिस्सा बंगाल से आ सकता है, और बंगाल की मिलें सरकारी निविदाओं में भी भाग लेंगी। इसके अलावा, झारखंड, ओडिशा, बिहार और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य भी इस निर्यात योजना से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
बांग्लादेश की मांग के चलते भारत में कुछ प्रमुख चावल किस्मों की कीमतों में वृद्धि की संभावना जताई जा रही है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, बांग्लादेश सरकार ने 14 लाख टन चावल खरीद का लक्ष्य रखा है, जिसमें अब तक 9.50 लाख टन चावल और 3.76 लाख टन बोरो धान की खरीद हो चुकी है। यह प्रक्रिया मध्य अगस्त तक पूरी होने की उम्मीद है।
इसके बाद, अगस्त से मार्च तक 55 लाख परिवारों को 30 किलो चावल प्रति माह केवल Tk 15 प्रति किलो की दर से देने की योजना है।
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निर्यातकों का मानना है कि यह निर्णय भारत की भूमिका को बांग्लादेश के प्रमुख चावल आपूर्तिकर्ता के रूप में और मज़बूत करेगा। इससे देश के घरेलू बाजार में लो-टू-मिड रेंज चावल किस्मों की कीमतों में स्थिरता आएगी और किसानों को बेहतर मूल्य मिलेगा। विशाखापत्तनम और पारादीप बंदरगाह भारत से चावल निर्यात के प्रमुख केंद्र बने हुए हैं।
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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