खरीफ सीजन की बुआई संपन्न होने की ओर है और फसल की स्थिति अब पहले से ज्यादा स्पष्ट होने लगी है।
यह बात तो अब लगभग तय है कि धान की फसल के क्षेत्र में बढ़ोतरी होगी और संभवत: उत्पादन में भी भले ही संचयी मानसूनी बारिश 24 अगस्त तक सामान्य से एक प्रतिशत कम हुई है। तिलहन उत्पादन की चिंताएं अब लगभग समाप्त हो गई हैं और सामान्य उत्पादन की उम्मीद की जा रही है।
यही बात कपास के साथ भी लागू होती है, यद्यपि मक्के को छोड़ कर दलहन और अन्य मोटे अनाजों से संबंधित चिंताएं अभी भी बनी हुई हैं। प्रमुख जलाशयों में कुल मिलाकर सामान्य से अधिक पानी है लेकिन यह पिछले वर्ष की तुलना में 16 प्रतिशत कम है। यह कमी लगभग पूरी तरह देश के आधे दक्षिणी क्षेत्र के बांधो से संबध्द है, खास तौर से प्रायद्वीपीय क्षेत्र के।
गोदावरी और तापि नदी की घाटी में जाकर मिलने वाले बांधों में पानी की कमी खास तौर से चिंताजनक है क्योंकि इनमें सामान्य से क्रमश: 40 प्रतिशत और 22 प्रतिशत कम पानी है। माही और कच्छ की घाटियों में भी 10 से 15 प्रतिशत पानी के कमी की खबर है।
भारतीय मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और बिहार में 31 अगस्त के बाद बारिश उतनी अधिक नहीं होगी। कोसी नदी के बांध टूटने और रास्ता बदलने के कारण अभी बिहार बाढ़ की भीषण त्रासदी से गुजर रहा है।
मौसम विभाग के अनुसार, बिहार में 31 अगस्त तक बारिश हो सकती है, संभावना मूसलाधार बारिश होने की भी है जिससे बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में चल रहे राहत एवं बचाव के काम में बाधा आ सकती है। मौसम विभाग ने बिहार के साथ-साथ तमिलनाडु और दक्षिणी कर्नाटक में भी अगले दो दिनों में भारी बारिश होने की भविष्यवाणी की है। मध्य भारत में छिटपुट बारिश होने की संभावना है।
फसल की तरफ से आश्वस्त करने की बात यह है कि मुख्य खरीफ फसल चावल, बुआई के समय जुलाई में लंबे समय तक मानसूनी बारिश नहीं होने के बावजूद, अच्छी हालत में है, खास तौर से दक्षिणी प्रायद्वीप के अंतवर्ती हिस्से में। धान की बुआई पिछले साल की तुलना में 20 लाख हेक्टेयर से अधिक या 7 प्र्रतिशत अधिक क्षेत्र में की गई है।
इस आंकड़े में भविष्य में और बढ़ोतरी हो सकती है क्योंकि बुआई अभी भी जारी है। चावल के कृषि-क्षेत्र में उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में महत्वपूर्ण विस्तार, लगभग 45 प्रतिशत का, हुआ है। कर्नाटक, खासतौर से जटीय कर्नाटक और राजस्थान में भी धान की खेती के रकबे में लगभग 17 प्रतिशत का विस्तार हुआ है। पंजाब और हरियाणा में भी धान की खेती के क्षेत्र में 2-3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
इस साल उन्नत किस्मों के बीजों का प्रयोग अधिक किया गया है जिससे चावल के अधिक उत्पादन होने की आशा है। हालांकि, मक्के को छोड़ कर मोटे अनाजों के उत्पादन में महत्वपूर्ण गिरावट आ सकती है। सौभाग्यवश, मक्के की खेती के क्षेत्र में इजाफा हुआ है लेकिन यह पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में अभी भी लगभग 7 प्रतिशत कम है।
लेकिन जुलाई के तीसरे सप्ताह से खेती के अधिकांश क्षेत्रों में अनुकूल बारिश हुई है जिससे उत्पादन सामान्य होने की उम्मीद की जा सकती है। ज्वार, बाजरा और अन्य मोटे अनाजों के उत्पादन में काफी कमी आ सकती है क्योंकि इनकी खेती के कुल क्षेत्र में 10 प्रतिशत की कमी आई है।
तिलहन का उत्पादन अब अगर अधिक नहीं तो सामान्य के आस पास होने की आशा की जा रही है क्योंकि बुआई के क्षेत्र में आई कमी को पिछले महीने लगभग पूरा कर लिया गया है। वास्तव में, कृषि मंत्रालय के नवीनतम रिपार्ट के अनुसार 21 अगस्त को तिलहन की फसल का कुल रकबा पिछले वर्ष के 167.5 लाख हेक्टेयर को पार कर 168.7 लाख हेक्टेयर हो गया है।
एक तरफ जहां सोयाबीन की खेती का रकबा 8 प्रतिशत बढ़ कर 94.1 लाख हेक्टेयर हो गया है (पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 86.8 लाख हेक्टेयर था) वहीं मंगफली की खेती का रकबा पिछले वर्ष के 50 लाख हेक्टेयर के करीब पहुंच गया है। फसलों की स्थिति सामान्य है।
वास्तव में चिंता का विषय तो दलहन है जिसके खेती के क्षेत्र में लगभग 17 लाख हेक्टेयर या 15 प्रतिशत की कमी आई है और इसके बढ़ने के आसार भी वर्तमान सिथति में कम हैं। कुछ महत्वपूर्ण दलहन उत्पादक राज्य जैसे महाराष्ट्र और कर्नाटक में खेती के रकबे में 30 से 40 प्रतिशत की कमी होने की खबर है जिसकी वजह बुआई की प्रमुख अवधि के दौरान नमी की कमी रही है।
दूसरी तरफ, दलहन के एक अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान में दलहन की खेती के रकबे में 12 प्रतिशत की वृध्दि हुई है। इसकी वजह बाजार की जगह किसानों द्वारा मूंग और मेथी की खेती का रुख किया जाना है। लेकिन राजस्थान अन्य जगहों के उत्पादन में संभावित कमी की भरपाई शायद नहीं कर सके।
वाणिज्यिक फसलों में कपास की बुआई में पिछले एक महीने के दौरान जबर्दस्त सुधार हुआ है। खेती के रकबे में आई कमी में काफी सुधार हुआ है और बड़े पैमाने पर ट्रांसजेनिक बीटी कॉटन हाइब्रिड बीजों के प्रयुक्त होने से बेहतर उत्पादन की आशा की जाती है।