इस्पात कंपनियों ने तीन महीने के बाद अक्टूबर में कीमतें बढ़ाई थीं, लेकिन लागत बढऩे की वजह से अगले कुछ महीनों में कई बार कीमतें बढ़ाई जा सकती हैं। क्रिसिल रिसर्च के मुताबिक पिछले पांच महीनों के दौरान कोकिंग कोल के दाम तिगुने हो गए। ये अक्टूबर के पहले हफ्ते में 390 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गए। भारतीय इस्पात मिलों के कच्चे माल पर होने वाले खर्च में बड़ा हिस्सा कोकिंग कोल का है।
उद्योग के सूत्रों ने कहा कि अप्रैल से ताप कोयले (एफओबी ऑस्ट्रेलिया) की कीमतें 150 फीसदी से अधिक बढ़ चुकी हैं। इसके अलावा फेरोअलॉय, प्राकृतिक गैस, जस्ते के दामों में भी इजाफा हुआ है, जिससे कंपनियों की कुल लागत बढ़ रही है।
भारतीय इस्पात की कीमतें अब भी अंतरराष्ट्रीय कीमतों से कम हैं। लागत बढऩे और सितंबर के दूसरे पखवाड़े से घरेलू मांग में सुधार होने से कीमतों में और बढ़ोतरी के आसार हैं।
लागत का दबाव
फ्लैट इस्पात के बेंचमार्क हॉट रोल्ड कॉइल (एचआरसी) की कीमतें अक्टूबर के पहले सप्ताह में 1,200 से 1,500 रुपये प्रति टन बढ़ी हैं, जबकि इस्पात के लंबे उत्पादों के दाम में 3,000 रुपये प्रति टन का इजाफा हुआ है। इस्पात का इस्तेमाल मुख्य रूप से वाहनों और घरेलू उपकरणों में होता है, जबकि लंबे इस्पात का इस्तेमाल मुख्य रूप से निर्माण और रेलवे में होता है।
जेएसडब्ल्यू स्टील के निदेशक (वाणिज्यिक एवं विपणन) जयंत आचार्य ने कहा, ‘लंबे उत्पादों की कीमतों में 6-7 फीसदी और फ्लैट उत्पादों में 2 फीसदी इजाफा था। इस्पात उत्पादों की कीमतें अप्रैल और अक्टूबर में एकसमान रही हैं और लौह अयस्क, कोकिंग कोल तथा अन्य कच्चे माल की मौजूदा कीमतों ने उत्पादों के लिए काम चालू रखना मुश्किल बना दिया है।’
लागत के दबाव से वित्त वर्ष 2022 की दूसरी छमाही में परिचालन लागत पहली छमाही के मुकाबले दोगुनी से अधिक रहने के आसार हैं। इससे कंपनियां कीमतों में इजाफा करने का फैसला ले सकती हैं।
हालांकि इस्पात के एक प्रमुख कच्चे माल लौह अयस्क की कीमतें घटी हैं, लेकिन अन्य लागतों में तेजी से इजाफा हुआ है। आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया (एएम/एनएस इंडिया) के मुख्य विपणन अधिकारी रंजन धर ने कहा, ‘घरेलू बाजार में लौह अयस्क की कीमतें करीब 1,000 रुपये प्रति टन कम हुई हैं, लेकिन कोकिंग कोल के दाम 10,000 रुपये प्रति टन बढ़े हैं।’