दुनिया भर में बाजार के खुलने के साथ ही इस्पात बनाने वाली भारतीय कंपनियां निर्यात के लिए चीन पर अपनी निर्भरता घटाने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि भारत से कच्चे इस्पात के निर्यात में चीन की हिस्सेदारी अभी भी काफी अधिक है लेकिन लॉकडाउन के मुकाबले अब उसमें थोड़ी नरमी दिख रही है।
संयुक्त संयंत्र समिति (जेपीसी) के आंकड़़ों के अनुसार, अप्रैल और मई के दौरान भारत से करीब 10 लाख टन कच्चे इस्पात का निर्यात चीन को किया गया जबकि कुल कच्चे इस्पात के निर्यात 13 लाख टन रहा। हालांकि जून और जुलाई में चीन की हिस्सेदारी क्रमश: 45.7 फीसदी और 55.47 फीसदी रही।
मई में कच्चे इस्पात के निर्यात में चीन की हिस्सेदारी 84 फीसदी पर सबसे अधिक रही। तैयार इस्पात के मामले में भी चीन की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। अप्रैल से जून की अवधि में तैयार इस्पात के कुल निर्यात में चीन की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी थी जो घटकर जुलाई में 24 फीसदी रह गई। जिंदल स्टील ऐंड पावर के प्रबंध निदेशक वीआर शर्मा ने कहा कि अगस्त में कंपनी के कुल निर्यात में चीन का योगदान करीब 30 फीसदी रहा लेकिन सितंबर में वह घटकर शून्य रह गया। उन्होंने कहा, ‘यह शुद्ध रूप से वाणिज्यिक कारणों से हुआ। कीमत के मोर्चे पर चीन और अन्य देशों में 4 से 5 फीसदी का अंतर दिखने से ऐसा हुआ।’
हालांकि चीन से आयात को लेकर आमतौर पर चिंता जताई जाती है लेकिन लॉकडाउन के दौरान स्थिति बदल गई थी क्योंकि मांग में अंतर को पाटने के लिए कंपनियों के बीच होड़ मच गई थी।
इस्पात का उत्पादन करने वाली एक अन्य प्रमुख कंपनी ने पुष्टि की कि उसके निर्यात में चीन की हिस्सेदारी घट रही है। कंपनी ने कहा, ‘पश्चिम एशिया, ताइवान और यहां तक कि यूरोप तैयार इस्पात के लिए प्रमुख गंतव्य के तौर पर उभरे हैं।’ जहां तक कच्चे इस्पात का सवाल है तो इंडोनेशिया, नेपाल, थाइनैंड, फिलिपींस आदि जून और जुलाई के दौरान अन्य प्रमुख बाजार रहे। हालांकि चीन के मुकाबले इन देशों को होने वाले निर्यात की मात्रा काफी कम रही। लेकिन पिछले चार महीनों के आंकड़ों पर गौर करने से पता चलता है कि निर्यात विभिन्न देशों में वितरित हो रहा है।
इक्रा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जयंत रॉय ने कहा, ‘कुल मिलाकर देखा जाए तो चीन से आयातित इस्पात की कीमत घरेलू बाजार की मौजूदा कीमत के लगभग बराबर है। दिलचस्प है कि फिलहाल भारतीय हॉट रोल्ड कॉइल (एचआरसी) की घरेलू और निर्यात की कीमतें लगभग बराबर हैं।’
इस्पात विनिर्माताओं ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी, घरेलू बाजार की मांग में सुधार और लौह अयस्क जैसे कच्चे माल की कीमतों में तेजी को देखते हुए जुलाई और अगस्त में इस्पात की कीमतों में 3,000 रुपये प्रति टन का इजाफा किया है। यदि निर्यात और घरेलू बाजार में कीमतें लगभग बराबर होंगी तो कंपनियां घरेलू बाजार को ही प्राथमिकता देंगी।
