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मंदी का डंक शहद कारोबार पर भी लगा

Last Updated- December 09, 2022 | 5:54 PM IST

यूरोप और दुनिया के दूसरे हिस्सों में चल रही वैश्विक मंदी के चलते क्रिसमस का त्यौहारी मौसम भी भारतीय शहद उत्पादकों के चेहरे पर कोई खास खुशी नहीं ला पाया।
गौरतलब है कि भारत में उत्पादित कुल शहद में से 50 फीसदी निर्यात यूरोप, पश्चिम एशिया और अमेरिका को किया जाता है। देश के कुल शहद उत्पादन का 25 फीसदी हिस्सा पंजाब का है।
जालंधर के रामपुर झाजोवाल गांव में शहद का उत्पादन करने वाले मंजीत सिंह का कहना है कि डेढ़ महीने पहले ही शहद की आपूर्ति करने पर हमें 76 रुपये प्रति किलोग्राम मिलते थे। लेकिन अब कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई है। 
निर्यातकों का कहना है कि उन्हें शहद के नए आर्डर नहीं मिल रहे हैं। इसलिए कीमतों में कमी आ गई है। शहद का निर्यात करने वाले देश के प्रमुख कारोबारी और निर्यातक कश्मीर के जगजीत सिंह ने बताया कि पिछले कई महीनों से नए आर्डरों की कीमतों में काफी कमी आई है।
उन्होंने बताया कि वैसे तो भारत में शहद के कुल उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है। लेकिन वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण शहद की मांग में कमी आ गई है। इसलिए हमारी योजना अंतरराष्ट्रीय बाजार में शहद की कीमतों को कम करना है, ताकि मांग में बढ़ोतरी की जा सके। कीमतों में कमी करने का सारा भार शहद  उत्पादकों पर डाला जाएगा।
मंजीत सिंह ने बताया कि पिछले कुछ वर्षो के दौरान शहद के उत्पादन की लागत में काफी बढ़ोतरी हो चुकी है, जबकि प्रति डिब्बा शहद के उत्पादन में उसी अनुपात में कमी आई है। इसका सबसे बड़ा कारण पिछले चार-पांच सालों में राज्य में वैरोरा माइट नाम की बीमारी के फैल जाने से मधुमक्खियों के छत्तों में कमी आना है। इसके लिए जब हम डॉक्टरी उपाय शुरू करते है तो निर्यातकों की तरफ से हमें शहद की गुणवत्ता को लेकर शिकायतें मिलने लगती है।
शहद निर्यातकों का कहना है कि कुछ सप्ताह से शहद की कीमतों में जहां गिरावट आ गई है, वहीं वैरोरा बीमारी के होने से शहद उत्पाद की कुल लागत में भी बढ़ोतरी हो गई है। ऐसे में हम पर दोहरी मार पड़ रही है।

First Published - January 6, 2009 | 3:04 PM IST

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