सरकार काफी ज्यादा इस्तेमाल होने वाली दवाओं पर कारोबारी मार्जिन वाजिब रखने की दिशा में काम कर रही है ताकि इनकी कीमतें घटाई जा सकें। इस बारे में जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि 100 रुपये या उससे महंगी दवाओं के लिए भी ऐसा ही किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि कारोबारी मार्जिन को वाजिब सीमा में लाने के पहले चरण में उन दवाओं को भी शामिल किया जा सकता है, जो मूल्य नियंत्रण के दायरे से बाहर हैं।
इस सप्ताह सरकारी विभागों के साथ भागीदारों की बैठक का हिस्सा रहे एक व्यक्ति ने कहा, ‘वजह यह है कि जो दवाएं आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल हैं, उनकी पहले ही अधिकतम कीमत सीमा तय है। ऐसे उत्पादों में कंपनियां मनमाना कारोबारी मार्जिन शायद ही दे पाएं क्योंकि प्रतिस्पर्द्धी कीमतों के कारण ज्यादा मार्जिन की गुंजाइश ही नहीं रहती।’
एक अन्य सूत्र ने कहा कि पहले चरण में 100 रुपये से अधिक कीमत की दवाओं को शामिल करने के लिए औषधि विभाग, राष्ट्रीय औषध मूल्य प्राधिकरण (एनपीपीए) आदि के साथ बातचीत जारी है। उद्योग के सूत्र ने बताया, ‘दवाओं की सूची तय नहीं हुई है और अभी इसमें फेरबदल हो रहे हैं। एक संभावित सूची विचार करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजी गई है। मगर आम सहमति इसी बात पर बनती दिख रही है कि 100 रुपये से अधिक कीमत की दवाओं को मार्जिन वाजिब बनाने के पहले चरण में लाया जाए।’ गुर्दे की पुरानी बीमारियों आदि की दवाओं, कुछ महंगे एंटीबायोटिक्स, एंटी-वायरल और कैंसर की कुछ दवाओं को सबसे पहले इस कवायद के दायरे में लाए जाने की संभावना है। असल में इसका मकसद थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं के लिए मार्जिन की सीमा तय करना है। दवा विनिर्माता अपने उत्पाद थोक विक्रेता को बेचते हैं, जो उसे स्टॉकिस्टों और खुदरा विक्रेताओं को बेचता है। कंपनी थोक विक्रेता को जिस कीमत पर दवा देती है और आम ग्राहक उसका जो अधिकतम खुदरा मूल्य अदा करता है, उनके बीच का अंतर ही व्यापार मार्जिन होता है। सूत्रों ने दावा किया कि सरकार यह मार्जिन 33 से 50 फीसदी रखने की सोच रही है।
भारतीय औषधि विनिर्माता संघ के अध्यक्ष विरंचि शाह ने कहा कि उन्होंने सुझाव दिया है कि यदि सरराकर व्यापार मार्जिन की कोई उचित सीमा तय करना चाहती है तो यह काम चरणबद्ध तरीके से किया जाए और आगे की तारीख से लागू किया जाए। एमएसएमई दवा कंपनियां आम तौर पर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव या बिक्री कर्मचारियों को नहीं रखतीं। वे किसी चैनल साझेदार से करार करती हैं और उन्हें दवा बेचने के लिए छूट या अधिक मार्जिन देती हैं। ये कंपनियां आम तौर पर सस्ती दवाएं बनाती हैं और उनका कुल कारोबार भारत के 1.6 लाख करोड़ रुपये के दवा बाजार के 10 फीसदी से अधिक नहीं है।
दवा उद्योग के एक पुराने उद्यमी ने स्वीकार किया, ‘कई बार महंगी दवाओं पर कंपनियां 200 फीसदी तक मार्जिन दे देती हैं। ऐसा आम तौर पर अस्पतालों के जरिये होता है।’