बफर स्टॉक से 20 लाख टन चीनी बेचने का आदेश देने के बावजूद ऐसा न करने पर 250 चीनी मिलों को सरकार ने नोटिस जारी किया है।
इस नोटिस में चीनी मिलों से पूछा गया है कि उसने बफर स्टॉक से कितनी चीनी बेची है। बताया जाता है कि चीनी की कीमतें ऊंची रखने की कोशिशों में शामिल तकरीबन 250 मिलों ने सरकार के आदेश की अनदेखी की है।
एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक, सरकार की ओर से इन मिलों को संबंधित जानकारी देने के लिए 10 दिन का समय दिया गया है। इन्हें 22 अगस्त तक अपना जवाब सरकार के पास जमा कर देना होगा। इस अधिकारी ने बताया कि सरकार के इस निर्देश का पालन न करने वाले मिलों के खिलाफ कड़े कदम उठाये जाएंगे।
मालूम हो कि बफर स्टॉक अप्रैल 2007 से एक साल के लिए बनाया गया था। अप्रैल 2008 में सरकार ने तय किया कि चीनी मिलों को मई से सितंबर के बीच बफर स्टॉक से 20 लाख टन चीनी बेचने की छूट दी जाएगी। लेकिन आशंका व्यक्त की जा रही है कि इस छूट के बावजूद कीमतें ऊंची रखने की लालच में चीनी मिलों ने पर्याप्त चीनी नहीं बेची।
उल्लेखनीय है कि इस बफर स्टॉक का प्रबंधन चीनी मिलों द्वारा किया जाता है। लेकिन इसका प्रबंधन खर्च मसलन किराया, बीमा, विभिन्न कर, कर्मचारियों का मेहनताना और ब्याज आदि सरकार के द्वारा वहन किया जाता है। तब सरकार ने मिलों को दिए निर्देश में कहा था कि वो हरेक महीने की 10 महीने तारीख तक बफर स्टॉक से बेचे जाने वाली चीनी का विस्तृत विवरण उन्हें दे दें।
लेकिन तकरीबन 250 चीनी मिलों ने सरकार के इस निर्देश को नहीं माना। उद्योग जगत के अनुसार, हो सकता है सरकार शेष बची चीनी को बफर स्टॉक की बजाय लेवी स्टॉक में तब्दील कर दे। ऐसा करने से चीनी के बचे भंडार को जन वितरण प्रणाली के जरिए कम कीमत पर बेचा जा सकेगा।
गौरतलब है कि मौजूदा तिमाही में घरेलू कोटा के तहत चीनी मिलों को 48 लाख टन चीनी बाजार में बेचने की इजाजत सरकार ने दी थी। इसके बावजूद, मध्य जुलाई के बाद चीनी की कीमतों में तकरीबन 25 फीसदी की वृद्धि होकर 1,800 रुपये प्रति क्विंटल तक जा पहुंची । इसके बाद सरकार ने कीमतों को कम करने की कोशिशों के तहत 5 लाख टन चीनी का अतिरिक्त कोटा जारी किया।
पहले ही अनुमान जताया जा चुका है कि अगले सीजन यानी 2008-2009 में चीनी के उत्पादन में कमी होगी। ऐसा गन्ने के रकबे में कमी होने की वजह से होगा। खाद्य मंत्रालय और विभिन्न राज्यों के गन्ना विभाग द्वारा एकत्रित आंकड़ों के आधार पर इस सीजन में चीनी उत्पादन का अनुमान जहां 2.65 करोड़ टन का है, वहीं अगले सीजन के लिए उत्पादन अनुमान महज 2.2 करोड़ टन रखा गया है।
इसके अलावा अनुमान लगाया जा रहा है कि मौजूदा सीजन का कैरी फॉरवर्ड स्टॉक तकरीबन 1.1 करोड़ टन का होगा। इस तरह अगले सीजन में कुल 3.3 करोड़ टन चीनी बाजार में उपलब्ध हो सकेगी। जबकि उस दौरान चीनी की मांग 2.2 करोड़ टन रहने की उम्मीद जतायी जा रही है।
जानकारों के मुताबिक, ऐसे में जब महंगाई 12.44 फीसदी की रेकॉर्ड ऊंचाई तक जा पहुंची हो तब चीनी जैसे महत्वपूर्ण उत्पाद की बढ़ती कीमतें सरकार के लिए चिंता का सबब हो सकती है। थोक मूल्य सूचकांक में चीनी की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी होने के चलते सरकार चीनी की कीमतों में थोड़ा बहुत उतार-चढ़ाव होते ही सतर्क हो जाती है।
आंकड़े बताते हैं कि थोक मूल्य सूचकांक में चीनी की हिस्सेदारी जहां 3.62 फीसदी की है वहीं सीमेंट जैसे महत्वपूर्ण उत्पाद का इसमें केवल 1.73 फीसदी की हिस्सेदारी होती है। लोहे और इस्पात दोनों की संयुक्त हिस्सेदारी जो 3.64 फीसदी की होती है, से चीनी का हिस्सा थोड़ा ही कम होता है। गेहूं जैसा संवेदनशील अनाज भी थोक मूल्य सूचकांक में केवल 1.38 फीसदी का योगदान करता है।