देश में पाम आयल का उत्पादन (Palm Oil Production) बढ़ाने के लिए विभिन्न कंपनियां मिलकर काम करना शुरु किया है। भारत सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन -ऑयल पाम (एनएमईओ-ओपी) के तहत 25 जुलाई से 5 अगस्त 2023 तक पाम ऑयल वृक्षारोपण (palm oil plantation) का विशाल अभियान शुरू किया है।
इसमें गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयल पाम रिसर्च, सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और सॉलिडेरिडाड नेटवर्क ने मिलकर पूर्वोत्तर के लिए ऑयल पाम की खेती के महत्व और इस क्षेत्र के किसानों का उत्थान में योगदान के लिए मिलकर काम करने में सहमति व्यक्त की है।
देश में फिलहाल मात्र 3,00,000 टन पाम आयल का उत्पादन
इस पहल के संबंध में विभिन्न सरकारी निकायों और कंपनियों ने गुवाहाटी में एक गोलमेज़ सम्मेलन का आयोजन किया। भारत, वैश्विक स्तर पर, पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक और इसका दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
देश में फिलहाल मात्र 3,00,000 टन का उत्पादन होता होता है, जबकि आयात 7,500,000 टन का होता है। उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि पाम ऑयल दुनिया की सबसे अधिक उपज देने वाली तिलहन फसल है। इसका उत्पादन, प्रति हेक्टेयर 5-10 गुना बढ़ाया जा सकता है।
सरकार ने अगस्त 2021 में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन लॉन्च किया था
अगस्त 2021 में, भारत सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन -ऑयल पाम (एनएमईओ-ओपी) लॉन्च किया था। एनएमईओ-ओपी, एक केंद्रीय योजना है और इसके तहत लागत का वहन केंद्र और राज्य मिलकर करेंगे।
सामान्य राज्यों के लिए केंद्र 60 फीसदी और राज्य सरकार 40 फीसदी, जबकि पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10 और केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय एजेंसियों के लिए 100 फीसदी लागत का वहन किया जाएगा। इस पूरी व्यवस्था में, भूमि का स्वामित्व किसान के पास ही रहेगा, न कि किसी कॉरपोरेट का, जिसे ऑयल पाम की खेती के लिए क्षेत्र का आवंटन किया गया है।
गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक बलराम सिंह यादव ने कहा कि एनएमईओ-ओपी देश के लिए सही दिशा में उठाया गया कदम है। हम इसे लागू करने और पूर्वोत्तर राज्यों का विशेष ध्यान रखने के लिए सरकार को धन्यवाद देते हैं।
कंपनी 2006 से इस क्षेत्र में ऑयल पाम वृक्षारोपण कर रही है। यह एक मात्र कंपनी है जो 2014 से मिजोरम में एक मिल का परिचालन कर रही है। कंपनी ने एनएमईओ-ओपी योजना के तहत इस क्षेत्र में ऑयल पाम की खेती के विकास और प्रचार के लिए असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा राज्य की सरकारों के साथ समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं।
ऑयल पाम व्यवसाय में तीन दशक से अधिक की हमारी विशेषज्ञता है। हम किसानों को स्थायी ऑयल पाम वृक्षारोपण प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी देने के साथ कई तरह के संसाधन भी प्रदान करने में मदद करते हैं। इस क्षेत्र की चुनौतियों के बावजूद हम अपनी क्षमता के मद्देनज़र, असम और अरुणाचल प्रदेश में अपनी सफलता दोहरा सकेंगे। इससे कम जोत वाले किसानों के उत्थान साथ क्षेत्र में रोज़गार भी पैदा होगे।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी. वी. मेहता ने कहा कि हमारे देश को मांग और आपूर्ति के बीच काफी अंतर है, जिसकी वजह से करीब 140 लाख टन विभिन्न खाद्य तेलों का वार्षिक आयात होता है। पाम और अन्य तेलों पर होने वाला यह आयात व्यय आश्चर्यजनक रूप से 1,20,000 करोड़ रुपये है। इस चुनौती से निपटने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस उपाय करना अनिवार्य है।
ऑयल पाम क्षेत्रों की क्षमता का पूरी तरह दोहन कर, नए क्षेत्रों में तेजी से विस्तार कर और क्रूड पाम ऑयल का उत्पादन बढ़ाकर किया जा सकता है। इस तरह हम न केवल खाद्य तेल के आयात के बोझ को कम कर सकेंगे, बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव को भी कम कर पाएंगे।
आईसीएआर-आईआईओपीआर के निदेशक डॉ. के. सुरेश ने कहा कि जब आईसीएआर-आईआईओपीआर और डीए एंड एफडब्ल्यू ने 2020 के दौरान ऑयल पाम की खेती सी जुड़े संभावित क्षेत्रों का आकलन किया, तो भारत में कुल 27.99 लाख हेक्टेयर भूमि पाम ऑयल की खेती के लिए उपयुक्त पाई गई, जिसमें से 9.62 लाख हेक्टेयर इलाके की पहचान पूर्वोत्तर राज्यों में की गई है। फिलहाल, एनईआर में इसकी खेती 38,992 हेक्टेयर के दायरे में की जा रही है, जिसके विस्तार की काफी गुंजाइश है।
भारत में सॉलिडेरिडाड नेटवर्क के वनस्पति तेल कार्यक्रम के प्रमुख डॉ. सुरेश मोटवानी ने कहा कि इस क्षेत्र में राज्य सरकारों को आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना की प्रक्रिया में तेज़ी लाने और ऑयल पाम की खेती के लिए भूमि आवंटन में तेज़ी लाना चाहिए, ताकि छोटी जोत वाले किसानों का उत्थान हो और वे समृद्धि हो सकें।