पिछले दिनों हुई बेमौसम बारिश से रबी की फसल चौपट हुई है तो अक्टूबर-नवंबर की अनचाही बारिश ने गन्ना, प्याज, कपास जैसी नकदी फसलों को तगड़ी चोट दी थी
मौसम की अटपटी चाल और जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा नुकसान कृषि उपज को हुआ है। पिछले दिनों हुई बेमौसम बारिश से रबी की फसल चौपट हुई है तो अक्टूबर-नवंबर की अनचाही बारिश ने गन्ना, प्याज, कपास जैसी नकदी फसलों को तगड़ी चोट दी थी। इसका असर अब उनके उत्पादन पर दिख रहा है और उपज कम होने के कारण ग्राहकों को इन फसलों की ज्यादा कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए।
भीगे प्याज ने निकाले आंसू
रसोई में खास रुतबा रखने वाले प्याज पर मौसम की मार पड़ना नई बात नहीं है। देश के कई हिस्सों में प्याज की फसल तैयार है मगर बारिश के कारण पसरी नमी को देखते हुए कृषि विभाग फिलहाल प्याज की खुदाई नहीं करने की सलाह दे रहा है। कृषि जानकारों का कहना है कि नुकसान का सही पता तो खुदाई के बाद ही चल पाएगा। मगर हाल की बारिश से प्याज का करीब 30 फीसदी तक उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है।
देश में सबसे ज्यादा प्याज उत्पादन करने वाले राज्य महाराष्ट्र में तो पिछले छह महीनों में प्याज ने किसानों को हर दिन रोने पर मजबूर किया है। महाराष्ट्र में अक्टूबर-नबंवर में हुई बारिश के कारण सर्दियों में प्याज खेतों में ही खराब हो गया। जो फसल हुई, उसे भी किसानों को फौरन औने-पौने दामों पर बेचना पड़ा क्योंकि पानी लगने से प्याज सड़ने का डर था।
फरवरी में फसल तैयार हुई तो बारिश ने फिर कहर बरपाना शुरू कर दिया। मार्च में मंडियों में आवक तो जोरदार हुई मगर भाव सुनकर ही किसानों के होश उड़ गए। देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव में प्याज के दाम गिरकर 1 रुपये प्रति किलोग्राम तक चले गए। हालांकि देश में 43 फीसदी तक प्याज उत्पादन महाराष्ट्र से ही होता है मगर दूसरे राज्यों में भी अच्छी फसल होने के कारण प्याज की कीमत गिर गई थी। प्याज में न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं है।
ऐसे में महाराष्ट्र की इस अहम नकदी फसल का भाव सुनकर बौखलाए किसानों ने हड़ताल कर दी और लासलगांव तथा नाशिक मंडियों में कारोबार ठप हो गया। इसके बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने प्याज किसानों को 300 रुपये प्रति क्विंटल सब्सिडी देने का ऐलान किया।
महंगी होगी मिठास
इस साल भारी बारिश के कारण महाराष्ट्र में गन्ने की फसल खराब हुई है, जिसका असर चीनी उत्पादन पर पड़ा है। प्रतिकूल मौसम के कारण गन्ने की उपलब्धता घटी है और महाराष्ट्र में गन्ना पेराई का काम लगभग बंद हो चुका है।
राज्य में पिछले साल इस समय तक 167 मिलें पेराई कर रही थीं मगर इस साल महज 18 मिलों में पेराई हो रही है, जो जल्दी बंद होने वाली है। महाराष्ट्र के चीनी आयुक्त शेखर गायकवाड़ के मुताबिक महाराष्ट्र में गन्नेी की बोआई पिछले साल जितने रकबे में ही हुई थी। मगर बारिश में फसल खराब होने के कारण मराठवाड़ा क्षेत्र में गन्ने की प्रति एकड़ उपज करीब 20 फीसदी घटी है।
देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में फसल खराब की वजह से देश के कुल चीनी उत्पादन में 10 लाख टन की कमी आई है। चीनी विपणन वर्ष (अक्टूबर से सितंबर) 2022-23 के दौरान 31 मार्च तक कुल चीनी उत्पादन घटकर 299.9 लाख टन रह गया है। विपणन वर्ष 2021-22 में 31 मार्च तक 309.9 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
चीनी उद्योग के शीर्ष संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के आंकड़े बताते हैं कि महाराष्ट्र में 31 मार्च तक चीनी उत्पादन घटकर 104.2 लाख टन रह गया है, जो पिछले साल की समान अवधि में 118.8 लाख टन था। उत्तर प्रदेश में पिछले साल की इसी अवधि तक 87.5 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था, जो इस साल बढ़कर 89 लाख टन पर पहुंच गया है।
कर्नाटक में पिछले साल के 57.2 लाख टन के मुकाबले इस अवधि तक उत्पादन घटकर 55.2 लाख टन ही रह गया है। देश के बाकी राज्यों का कुल उत्पादन 46.4 लाख टन से बढ़कर 51.2 लाख टन हो गया है।
जीरे का तड़का महंगा
बेमौसम बारिश से जीरे की फसल को भारी नुकसान हुआ है और पिछले एक महीने में जीरा 15-16 फीसदी महंगा हो चुका है। कम आपूर्ति के कारण जीरे के दाम और भी बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। फसल खराब होने की वजह से पिछले एक महीने में इसके दाम करीब 16 फीसदी बढ़ गए हैं। इस समय हाजिर बाजार में जीरा बढ़कर 30-32 हजार रुपये प्रति क्विंटल और वायदा बाजार में 35,300 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच चुका है।
बीकानेर व्यापारी संघ के पंकज चोपड़ा कहते हैं कि हाल ही बारिश और ओले की जीरे पर बड़ी मार पड़ी है। ओले से करीब 40 फीसदी और तेज बारिश से करीब 20-30 फीसदी फसल नष्ट हो गई है। इस कारण जीरा उत्पादन घटकर 50 लाख बोरी रह जाने का अनुमान है, जबकि पहले 70 लाख बोरी जीरा होने की उम्मीद लगाई जा थी।
जिंस अनुसंधान एजेंसियों का कहना है कि गुजरात में इस बार जीरे की बोआई 6 फीसदी कम हुई थी। जिंस विश्लेषकों के मुताबिक इस साल 5.80 लाख टन जीरा होने का अनुमान है, जो पिछले साल के 6.29 लाख टन उत्पादन से 7.79 फीसदी कम है।