भारत के पास खाद्य तेल आयात के शुल्क पर दीर्घावधि 3 से 5 नीतिगत योजना होनी चाहिए। भारत के पास घरेलू प्रसंस्करण उद्योग की सुरक्षा के लिए कच्चे और रिफाइंड खाद्य तेल पर न्यूनतम कम से कम 7.5 से 10 अंतर हो।
हालिया शोध पत्र, ‘भारत में खाद्य तेल क्षेत्र के शुल्क में उतार-चढ़ाव और साझेदारों के परिदृश्य’ में कहा गया कि खाद्य तेल के आयात शुल्क में अचानक से आयात शुल्क में बदलाव होने से थोक व खुदरा मूल्य प्रभावित होते हैं। इससे मूल्य श्रृंखला में हरेक प्रभावित होता है। यह शोध पत्र संयुक्त रूप से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के सेंटर फॉर इकनॉमिक स्टडीज ऐंड प्लानिंग (सीईएसपी, वेईके पॉलिसी एडवाइजरी ऐंड रिसर्च और एसोचैम ने प्रकाशित किया।
इस शोध पत्र के अनुसार वर्ष 2011 से 2021 के दौरान भारत में कच्चे पाम ऑयल, रिफाइंड पाम ऑयल, सोयाबीन तेल और सूरजमुखी के तेल पर शुल्क में 25 से अधिक बार बदलाव किया गया। यह शुल्क संरक्षणवाद के दौर में करीब शून्य से लेकर 50 से 70 प्रतिशत से अधिक रहा था। शोधपत्र में कहा गया, ‘पिछले एक दशक में खाद्य तेलों पर आयात शुल्क ने असाधारण अस्थिरता दिखाई है।’
शोधपत्र में पाम तेल पर आयात शुल्क को संदर्भ बिंदु के रूप में इस्तेमाल किया गया। इसका कारण यह है कि पाम ऑयल भारत के वार्षिक खाद्य तेल आयात का लगभग 60 प्रतिशत है।