क्या इस बार के केंद्रीय बजट में कृषि क्षेत्र के लिए की गईं घोषणाएं भारत के कृषि क्षेत्र को भविष्योन्मुखी और आधुनिक बनाने में मददगार साबित होंगी। इस पर 1 फरवरी से ही बहस जारी है, जब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया था। सही मायने में क्या होगा?
बजट में न सिर्फ कृषि बल्कि इससे जुड़े कुछ अन्य क्षेत्रों के लिए भी घोषणाएं की गई हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र के लिए बजट आवंटन में भारी वृद्धि भी की गई है। इन निर्णयों के कारण ऐसा भी कहा जाने लगा कि यह कुछ हद तक कृषि पर केंद्रित बजट था।
कृषि मंत्रालय के लिए आवंटन वित्त वर्ष 2025 के बजट अनुमानों से करीब 3.88 फीसदी बढ़ा है और संशोधित अनुमानों के मुकाबले यह 6.60 फीसदी बढ़कर 1,27,2901.6 करोड़ रुपये (करीब 1.27 लाख करोड़ रुपये) हो गया है। मगर जब पूरे क्षेत्र की बात है, जिसमें पशुपालन, डेरी और मत्स्यपालन के साथ-साथ खेती के साथ अन्य आवंटन भी शामिल हों तो वृद्धि काफी अधिक है। बजट दस्तावेज से पता चलता है कि कुल मिलाकर कृषि और सहायक क्षेत्रों को इस बार 1,71,437 करोड़ रुपये (1.7 लाख करोड़ रुपये) दिए गए हैं, जो बीते वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों के मुकाबले 22 फीसदी और बजट अनुमानों के मुकाबले 13 फीसदी ज्यादा है।
यह पिछले कई वर्षों में कृषि और सहायक क्षेत्र के बजट आवंटन में भारी इजाफा है। सिंचाई वैसा ही एक सहायक क्षेत्र है जिसके लिए सरकार ने सबसे ज्यादा धन दिया है। जल शक्ति मंत्रालय की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत चल रहे अभियान हर खेत को पानी को इस बार के बजट अनुमानों में बीते वित्त वर्ष के संशोधित और बजट अनुमानों के मुकाबले करीब 83 फीसदी ज्यादा रकम दी गई है। वित्त वर्ष 2024 में इस मद में करीब 811 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। वित्त वर्ष 2024 के संशोधित अनुमानों में इस मद में खर्च 600 करोड़ रुपये था और वित्त वर्ष 2026 के बजट अनुमानों में इसे बढ़ाकर 1,100 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
हर खेत को पानी के तहत मरम्मत परियोजनाओं को लागू करने, जलस्रोतों के नवीकरण, सतह लघु सिंचाई योजनाओं और भूजल सिंचाई कार्यक्रमों के लिए खर्च किया जाता है। इसके अलावा प्रमुख घोषणाओं में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) की सीमा तीन लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दी गई है। उम्मीद की जा रही है इसका सीधा फायदा करीब 80 लाख खाताधारकों और कपास, सब्जी, दलहन और संकर बीजों के लिए चल रहे अभियानों को मिलेगा। हालांकि, ऐसे ऋण के लिए ब्याज पर छूट देने के लिए रकम नहीं दी गई है क्योंकि इसके तहत जो लाभार्थी होंगे उनकी संख्या कुल केसीसी खातों का करीब 10 फीसदी होने की ही उम्मीद है।
पीएम-किसान पर अनिवार्य बड़े खर्च और अल्पकालीन फसल ऋण, पीएम-आशा एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना जैसी योजनाओं के लिए ब्याज छूट में या तो उनके बजट अनुमान स्तर या फिर उससे थोड़ी वृद्धि की गई है। बावजूद इसके जानकारों का मानना है कि इस बजट से भारत का कृषि क्षेत्र तेजी से आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
उदाहरण के लिए, सिंचाई पर खर्च के साथ-साथ दलहन, कपास, सब्जियां और संकट बीजों के अभियान का उद्देश्य उत्पादन बढ़ाना है और गिरती पैदावार जैसी प्रमुख चिंताओं का समाधान करना है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि हालांकि, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में पहले की तरह उम्मीदों से कम रहा, लेकिन सहायक क्षेत्रों पर जोर देना स्वागत योग्य कदम है।
डीसीएम श्रीराम के चेयरमैन और वरिष्ठ प्रबंध निदेशक अजय एस श्रीराम ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हर केंद्रीय बजट में कृषि को आधुनिक बनाने की दिशा में थोड़ी बहुत घोषणाएं की जाती हैं और 2026 के केंद्रीय बजट में भी ऐसा किया गया है। मगर इस बार जो बातें अलग थीं उनमें कमजोर किसानों को बड़े स्तर पर फायदा हो सकता है।’
श्रीराम ने ऐसी तीन कदमों का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि इसके तहत 100 विकासशील कृषि जिलों में तकनीकी और वित्तीय सहायता के साथ-साथ दुनिया में चली आ रही बेहतरीन प्रथाओं को पेश किया जाएगा। इसके अलावा जलवायु अनुकूल बीजों के विकास और प्रसार की भी सरकार ने योजना बनाई है तथा कपास की खेती करने वाले किसानों को सरकार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सहायता देने वाली है। श्रीराम ने कहा, ‘सभी तीन श्रेणियों के किसानों को काफी जोखिमों का सामना करना पड़ता है और जिन उपायों की घोषणा की गई है उससे लाखों किसानों को मदद मिलनी चाहिए।’
जानकारों ने सब्जियों एवं फलों पर चल रहे अभियानों जैसी अन्य बजट पहलों के बारे में भी बात की है, जिसका उद्देश्य किसानों को फायदेमंद कीमत हासिल करने में मदद करने के लिए उत्पादन, कुशल आपूर्ति श्रृंखला और प्रसंस्करण को बढ़ावा देना है। इसी तरह, संकर बीजों पर राष्ट्रीय अभियान का उद्देश्य उच्च उपज और कीट प्रतिरोध के साथ-साथ अनुसंधान परिवेश और संकरों का प्रसार करना है। इस अभियान के लिए सरकार ने करीब 100 से 1,000 करोड़ रुपया का आवंटन किया था, जिसमें सर्वाधिक आवंटन दलहन अभियान (1,000 करोड़ रुपये) के लिए रखा गया था।
मगर जानकारों को शोध के लिए अधिक आवंटन होने की उम्मीद थी। बजट में घोषणा की गई है कि संकर बीजों पर राष्ट्रीय अभियान की स्थापना की जाएगी, लेकिन इसके लिए केवल 100 करोड़ रुपये दिए गए हैं। साथ ही कृषि अनुसंधान एवं विकास विभाग के लिए भी बजट को सिर्फ 3 फीसदी बढ़ाकर 10,466.49 करोड़ रुपये किया गया है। इसके अलावा जानकारों ने कहा कि इस बार के बजट में खेती में मशीन पर ध्यान नहीं दिया गया है। जहां तक खाद्य एवं उर्वरक की बात है वे भी अपने मौजूदा स्तर पर ही है।
कृषि प्रसंस्करण उद्योग में बीटुबी प्लेटफॉर्म एग्रीजी के सह-संस्थापक साकेत चिरानिया कहते हैं कि पारंपरिक उत्पादकता उपायों और बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इसके अलावा सरकार को प्रौद्योगिकी को शामिल करने पर भी नए सिरे से जोर देना चाहिए था। उन्होंने कहा, ‘कार्यशील पूंजी तक पहुंच, परिचालन के प्रबंधन और बाजार तक बेहतर पहुंच हासिल करने में किसानों और कृषि खाद्य प्रसंस्करण एमएसएमई को मदद के लिए प्रौद्योगिकी का फायदा मिलने से कृषि और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए वृद्धि के नए रास्ते खुलेंगे। साथ ही दक्षता और स्थिरता भी बढ़ेगी।’
तकनीकी मुद्दों के अलावा इस बार के बजट में कृषि क्षेत्र की कुछ अन्य समस्याओं का भी समाधान नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए हालिया आर्थिक समीक्षा में अध्ययनों के हवाले से कहा गया है कि साल 2099 तक सालाना तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की आशंका है और सालाना बारिश में 7 फीसदी इजाफा होने से भारत की कृषि उत्पादकता में 8 से 12 फीसदी तक की गिरावट आने के आसार हैं। मगर बजट में इसके लिए कुछ नहीं किया गया है।