केंद्रीय बजट में लगातार दूसरे वर्ष खाद्य सब्सिडी के मद में लगभग 2 लाख करोड़ रुपये आवंटित हुए हैं। यह सब्सिडी के मोर्चे पर सरकार के अधिक सधे दृष्टिकोण की तरफ इशारा कर रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 के बजट अनुमान में खाद्य सब्सिडी 2.05 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान व्यक्त किया गया था जबकि उसी वर्ष संशोधित अनुमान लगभग 1.97 लाख करोड़ रुपये था। वित्त वर्ष 2026 के बजट में सब्सिडी के मद में 2.03 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो पिछले साल के अनुमान से मामूली कम है।
केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के अंतर्गत खाद्यान्न आवंटन का प्रावधान समाप्त कर दिया और इसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना (एनएफएसए) में शामिल कर दिया, जिसके बाद अतिरिक्त 5 किलोग्राम चावल, गेहूं या मोटे अनाज का वितरण बंद कर दिया गया (कोविड महामारी के दौरान लोगों को राहत देने के लिए सरकार ने इसकी शुरुआत की थी)। सरकार के इस कदम के बाद भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) पर सब्सिडी का बोझ लगभग 2 लाख करोड़ रुपये से कम होकर 1.35 लाख करोड़ रुपये रह गया।
अतिरिक्त खाद्यान्न का वितरण बंद होना ही खाद्य सब्सिडी में कमी का एक मात्र कारण नहीं है। सब्सिडी व्यय पर नियंत्रण रखने में कई कारकों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। एफसीआई के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि हाल के वर्षों में, खासकर कोविड महामारी के बाद केंद्र सरकार ने खाद्य सब्सिडी का समय रहते भुगतान किया है। इससे एफसीआई को बाजार से उधारी लेने की जरूरत नहीं रह गई जिससे ब्याज पर होने वाला भुगतान भी नियंत्रण में ही रहा।
वास्तव में वित्त वर्ष 2024 में एफसीआई ने अल्प अवधि के लिए बाजार से शून्य उधारी ली। पहले इस उधारी का इस्तेमाल रोजमर्रा के व्यय के लिए होता था। सरकार ने कितनी तत्परता के साथ सब्सिडी का आवंटन किया है इसका जिक्र करते हुए एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि वित्त वर्ष 2025 में 2.05 लाख करोड़ रुपये आवंटित सब्सिडी में लगभग 1.34 लाख करोड़ रुपये एफसीआई के लिए बचाकर रखी गई जबकि शेष विकेंद्रीकृत खरीदारी (जो एक अलग खाते में रखी जाती है) के लिए आवंटित कर दी गई। दिसंबर 2024 तक लगभग 1.26 लाख करोड़ रुपये (एफसीआई के हिस्से का लगभग 94 प्रतिशत) पहले ही आवंटित किए जा चुके हैं।
अधिकारी ने कहा, ‘बाकी 8,000 करोड़ रुपये जारी होने ही वाले हैं।‘ इसके अलावा, सरकार ने एफसीआई के लिए सालाना आर्थिक संसाधन भी 10,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये कर दिया है। इससे एफसीआई को वित्त वर्ष की शुरुआत में ही कामकाजी व्यय के लिए एक बड़ी रकम मिल गई है। अधिकारी ने कहा, ‘अग्रिम रकम मिलने से अब रोजमर्रा के खर्च के लिए एफसीआई को इधर-उधर नहीं देखना होगा क्योंकि उसे वित्त वर्ष की शुरुआत से पहले ही यह राशि मिल गई है।‘ वित्त वर्ष में एफसीआई का पूंजीगत व्यय भी लगभग दोगुना होकर 10,157 करोड़ रुपये से 21,000 करोड़ रुपये हो गया है। इस तरह, बाजार से उधारी एवं ब्याज दरों पर लागत कम करने में और मदद मिलेगी।
एफसीआई पिछले दो वर्षों से खुले बाजार में बिक्री योजना (ओमएसएस) के माध्यम से खाद्यान्न की बिक्री कर रही है। ओएमएसएस का एफसीआई की वित्तीय स्थिरता में बिक्री में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वित्त वर्ष 2024 में एफसीआई को खुले बाजार में गेहूं और चावल की बिक्री से कम से कम 25,000 करोड़ रुपये हासिल हुए। वित्त वर्ष 2025 में इस बिक्री से लक्षित राजस्व 17,000 करोड़ रुपये रहा था। ओएमएसएस के अंतर्गत खाद्यान्न की बिक्री आर्थिक लागत से कम कीमतों पर की जाती है (यानी सब्सिडी की जरूरत पड़ती है) मगर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अंतर्गत अनाज निःशुल्क वितरित करने की तुलना में यह विकल्प फिर भी बेहतर है।
उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2024 में गेहूं की आर्थिक लागत 27 रुपये प्रति किलोग्राम थी जबकि एफसीआई ने खुले बाजार में 1 करोड़ टन गेहूं 22-23 रुपये प्रति किलोग्राम के दर से बेचा। यानी प्रति किलोग्राम 5-6 रुपये का अंतर (सब्सिडी) रह गया। अगर इतनी ही मात्रा में गेहूं की बिक्री पीडीएस के माध्यम से हुई होती तो प्रति किलोग्राम 27 रुपये सब्सिडी आई होती क्योंकि नए नियमों के अनुसार पीएमजीकेएवाई के अंतर्गत अगले पांच वर्षों के लिए निःशुल्क अनाज वितरण का प्रावधान किया गया है। चावल के मामले में भी यही रणनीति अपनाई गई है। चावल के मामले में आर्थिक लागत वित्त वर्ष 2024 में 38.83 रुपये प्रति किलोग्राम आई थी। मगर ओएमएसएस के माध्यम से यह कम दरों पर बेची गई। एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘कुछ हद तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी की भरपाई खुले बाजार में बिक्री से हो गई।‘
सब्सिडी के कुशल प्रबंधन के साथ ही एफसीआई ने हाल के वर्षों में कामकाजी क्षमता में भी सुधार किया है। इनमें विभागीय श्रमिकों की संख्या में कमी और क्रय समितियों के कमीशन की सीमा तय करना शामिल हैं। इसके अलावा, खाद्य सब्सिडी का एक महत्त्वूपर्ण हिस्सा विकेंद्रीकृत खरीद (डीसीपी) राज्यों को जाता है। ये राज्य एफसीआई की तरफ से केंद्रीय भंडार के लिए खाद्यान्न खरीदते हैं और इनमें जो अंतर रहता है वह उन्हें सब्सिडी के रूप में मिलता है।
उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2024 में कुल 2.11 लाख करोड़ रुपये की खाद्य सब्सिडी में लगभग 1.4 लाख करोड़ रुपये एफसीआई को आवंटित की गई जबकि शेष रकम डीसीपी राज्यों को गई। वित्त वर्ष 2025 से उन्हें एक मद में ही रखा गया है और बजट दस्तावेज में उन्हें अलग-अलग मदों में नहीं दिखाया जाता है, यद्यपि व्यय जरूर बंटे हुए हैं। अधिकारियों ने डीसीपी राज्यों को सब्सिडी के आवंटन में सुधार का भी जिक्र किया।
उन्होंने कहा कि पिछला बकाया चुकता होने के बाद ही रकम निर्गत हो रही है और लागत पर्ची तैयार की जा रही है। एक अधिकारी ने कहा, ‘इससे अनावश्यक या बेकार व्यय पर अंकुश लगाने में मदद मिली है। ‘ कुल मिलाकर, सब्सिडी का समय पर भुगतान, खुले बाजार में अधिक बिक्री, ऊंची अग्रिम रकम और कामकाजी क्षमता में सुधार के दम पर सरकार को सब्सिडी स्थिर स्तरों पर रखने में मदद मिली है। अब पीएमजीकेएवाई के अंतर्गत अतिरिक्त अनाज का आवंटन रुकना ही सब्सिडी कम रहने का अकेला कारण नहीं रह गया है।