कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए 2018 में लाई गई केंद्र सरकार की योजना पीएम-कुसुम अब राज्यों के हवाले की जाएगी, जिससे वे अपनी जरूरतों के मुताबिक इसका इस्तेमाल कर सकें। कोविड महामारी, धन की कमी और जागरुकता के अभाव के कारण 1.4 लाख करोड़ रुपये की प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान योजना (पीएम-कुसुम) की प्रगति सुस्त रही है। सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि इस साल के बजट में योजना के लिए धन मिलने की संभावना नहीं है।
कई फर्जी एजेंसियों द्वारा नकली योजनाएं लाने और फर्जी वेबसाइटों के माध्यम से किसानों को लूटने की वजह से भी इस योजना पर असर पड़ा और इसे लेकर किसानों की स्वीकार्यता प्रभावित हुई।
कंपोनेंट-ए के तहत नवंबर 2023 तक खेतों में 0.14 गीगावॉट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए जा सके, जबकि स्वीकृत क्षमता 4.7 गीगावॉट थी।
कंपोनेंट-बी के तहत सौर ऊर्जा से संचालित 2,72,000 सिंचाई के पंप स्थापित किए जा सके, जबकि 9,46,000 सोलर पंप स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था।
कंपोनेंट-सी के तहत ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों को सौर ऊर्जा से जोड़ने की योजना बनाई गई। इस योजना के तहत 1,22,930 पंप स्वीकृत किए गए थे, जिनमें से 1,894 को ही सौर ऊर्जा से जोड़ा जा सका। वहीं 29 लाख फीडर लेवल सोलर की जगह 4,572 ही स्थापित किए जा सके।
योजना के दिशानिर्देशों के मुताबिक 2022 तक 30 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता विकसित की जानी थी। इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से 34,422 करोड़ रुपये का वित्तीय समर्थन था, जिसमें इसे लागू करने वाली एजेंसियों का सेवा शुल्क शामिल है।
इन 3 कंपोनेंट में कंपोनेंट-ए के तहत 10 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता, कंपोनेंट-बी के तहत 20 लाख एकल सौर संचालित कृषि पंप स्थापित करने और कंपोनेंट सी के तहत 15 लाख ग्रिड कनेक्टेड कृषि पंपों को सौर ऊर्जा से चलाए जाने का लक्ष्य 2026 तक के लिए रखा गया था।
सूत्रों ने कहा कि केंद्र सरकार का विचार यह है कि पीएम-कुसुम योजना से एक प्रारूप तैयार हुआ है, एक मानक बोली दस्तावेज और एक मानक मूल्य तय हुआ है, जिसे राज्य अपना सकते हैं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘केंद्र के शुरुआती समर्थन ने राज्यों को राह दिखाई है। तमाम राज्यों ने कुसुम जैसी योजनाएं चलाई हैं और केंद्र से कहा है कि इस योजना को राज्य की जरूरतों के मुताबिक बनाया जाना चाहिए।’
उद्योग से जुड़े लोगों और राज्य के स्तर के अधिकारियों ने कहा कि कुसुम की स्वीकार्यता महामारी के बाद बढ़ी है, लेकिन राज्यों को अपनी जरूरत के मुताबिक योजना में बदलाव करने में दिक्कतें आ रही हैं।
कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा के प्रसार की योजना चला रहे एक राज्य के अधिकारी ने कहा, ‘अब कुसुम वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की रिवैंप्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (आरडीएसएस) का भी हिस्सा है। इसके तहत हासिल किया गया लक्ष्य राज्य के बिजली विभाग की सेहत के लिए मानक होगा। राज्य सरकारें कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा की स्वीकार्यता में तेजी लाने को इच्छुक हैं।’
राज्य सभा में हाल में एक सवाल के जबाव में केंद्रीय बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कहा, ‘पीएम-कुसुम मांग से संचालित योजना है। राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से आई मांग के आधार पर क्षमता का आवंटन किया गया है। कुछ निश्चित लक्ष्य हासिल करने के लिए राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को धन जारी किया गया है।’
कृषक समुदाय को सौर ऊर्जा सॉल्यूशंस की पेशकश करने के लिए 19 राज्यों ने अपने पोर्टल स्थापित किए हैं। गुजरात और महाराष्ट्र की पहले से ही कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा के प्रसार की योजना है। ज्यादातर राज्य अपनी योजनाओं का विलय कुसुम के साथ करने को लेकर अनिच्छुक थे, क्योंकि वे पहले से ही अपने बजट से इसके लिए सब्सिडी और पूंजीगत समर्थन मुहैया करा रहे थे।
जब 2018 में कुसुम योजना की घोषणा की गई, इसके लिए कुल आवंटन 1.4 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें 10 साल के लिए 48,000 करोड़ रुपये का बजट समर्थन शामिल था। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक इस योजना के लिए 28,000 करोड़ रुपये के शुरुआती वित्तपोषण की जरूरत थी। बहरहाल वित्त मंत्रालय ने इतनी बड़ी राशि देने से इनकार कर दिया और कुसुम योजना के लिए वित्तपोषण के अन्य विकल्पों पर विचार करने को कहा। इस योजना का उल्लेख एक बार फिर जुलाई 2019 के बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किया और कहा कि कुसुम योजना अन्नदाता को ऊर्जादाता बनाने की पहल है।
2020 में वित्त मंत्रालय ने योजना में फिर बदलाव किया। सीतारमण ने घोषणा की कि 20 लाख किसानों को एकल सोलर पंप देने के साथ 15 लाख किसानों के ग्रिड कनेक्टेड पंप को सौर ऊर्जा से जोड़ा जाएगा। किसानों को सौर ऊर्जा उत्पादन में सक्षम बनाया जाएगा और वहां से उत्पादित बिजली ग्रिड को बेची जाएगी। इस योजना के तहत काम सुस्त था, जिसे देखते हुए नवंबर 2020 में केंद्र सरकार ने राज्यों द्वारा किसानों से सौर ऊर्जा खरीदने का प्रावधान हटा दिया।
केंद्र ने 2022 में एक बार फिर कुसुम में बदलाव किया और इसे आरडीएसएस का हिस्सा बना दिया। राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों के लिए यह नई सुधार योजना है। योजना के तहत 3 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो सभी मौजूदा बिजली सुधार योजनाओं के लिए है, जिसमें दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, एकीकृत बिजली विकास योजना, पीएम-कुसुम को शामिल कर दिया गया।
केंद्रीय बजट 2023 के दस्तावेजों के मुताबिक 2023-24 में कुसुम के लिए 1,994 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो सॉवरेन ग्रीन फंड से आने हैं, यह एक मात्र बजट अनुदान है। 2022-23 में कुसुम को कोई बजट अनुदान नहीं मिला, जबकि एक साल पहले 221 करोड़ रुपये मिले थे।