केंद्र सरकार इस बार के बजट में नया खाका पेश कर सकती है, जिसमें राजकोषीय घाटे को 2025-26 तक घटाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4 फीसदी पर लाने की योजना होगी। इसका मतलब है कि सरकार राजकोषीय दायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम) में संशोधन के जरिये निर्धारित किए गए उस लक्ष्य से भटक सकती है, जिसमें राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 2.5 से 3 फीसदी रखने की बात कही गई है।
सरकार ने खजाने को मजबूत बनाने की एनके सिंह समिति की सिफारिशों में थोड़ा बदलाव कर राजकोषीय घाटे को 2022-23 तक 3.1 फीसदी पर समेटने का लक्ष्य रखा था। लेकिन घाटे को मौजूदा विधान में तय की गई सीमा से पार जाने देने के लिए सरकार को वित्त विधेयक में एफआरबीएम कानून में संशोधन का प्रस्ताव करना पड़ सकता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘खजाने का पूरा गणित और पहली तीन तिमाहियों के आंकड़े देखकर यही लगता है कि चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 3.5 फीसदी के बजट अनुमान से ज्यादा रह सकता है। इसलिए मध्यम अवधि में 3 फीसदी का लक्ष्य हासिल होना करना मुश्किल है। अगले पांच वर्षों में हम 4 फीसदी के आसपास लक्ष्य लेकर चलेंगे, जो सही रहेगा। हमारा मकसद अर्थव्यवस्था में सुधार लाना है, जो संरचनात्मक सुधारों और खर्च से ही मुमकिन होगा।’
राजकोषीय खाके में बदलाव की वजह महामारी के कारण जीडीपी में संकुचन और राजस्व संग्रह तथा व्यय के बीच अंतर बढऩा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी दूसरी तिमाही के राष्ट्रीय लेखा आंकड़ों के हिसाब से चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 10.71 फीसदी पर पहुंच गया है। नवंबर तक घाटा बजट अनुमान से 35.1 फीसदी आगे पहुंच चुका था।
अर्थव्यवस्था में संकुचन के साथ ही राजकोषीय घाटा बजट अनुमान की तुलना में कहीं ज्यादा होगा। वर्तमान मूल्य पर वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी 4.2 फीसदी घटकर 194.82 लाख करोड़ रुपये रहने का आधिकारिक अनुमान जताया गया है। ऐसे में राजकोषीय घाटा 12 लाख करोड़ रुपये की बाजार उधारी से पार नहीं गया तो भी वह जीडीपी का 6.1 फीसदी होगा।
इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, ‘पिछले तीन वित्त वर्षों से अर्थव्यवस्था में नरमी है, कर वृद्घि घटी है और व्यय उसी स्तर पर है। ऐसे में राजस्व घाटा होने का मतलब है कि सरकार चालू घाटे की भरपाई कर रही है, जो एफआरबीएम के अनुरूप नहीं है।’ उन्होंने कहा कि जब तक राजकोषीय घाटे में राजस्व घाटे की हिस्सेदारी घटती रहेगी, आसार अच्छे रहेंगे क्योंकि इसका मतलब है कि अतिरिक्त उधारी का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे में हो रहा है, जो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद करेगा। चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीने में राजस्व घाटा बजट अनुमान से करीब 40 फीसदी अधिक था। 2019-20 के दौरान राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3 फीसदी पर रहने का अनुमान लगाया गया था, जिसे संशोधित अनुमान में 3.8 फीसदी कर दिया गया था। लेकिन वास्तविक घाटा 4.6 फीसदी रहा था।