प्रणव मुखर्जी द्वारा पेश किए गए अंतरिम बजट में आज एकमात्र आर्थिक प्रोत्साहन उपाय की घोषणा की गई।
इसके अंतर्गत कुछ मजदूर बहुल क्षेत्र में काम करने वाले निर्यातकों के लिए ब्याज दरों में मिलने वाली छूट की योजना को छह महीनों के लिए बढ़ा दिया गया है। यह योजना, जिसके तहत निर्यात संबंधी ऋणों की ब्याज दरों में दो प्रतिशत की राहत दी जाती है, 31 मार्च 2009 को समाप्त होने वाली थी।
हालांकि, इस घोषणा से निर्यातकों की मांग आंशिक रूप से पूरी हुई है। निर्यातक चाहते थे कि इस योजना की अवधि दिसंबर 2009 तक के लिए बढ़ा दी जाए।
मुखर्जी ने कहा, ‘वैश्विक आर्थिक संकट के कारण निर्यात पर पड़े विपरीत प्रभावों से निपटने के लिए मैं कुछ रोजगारोन्मुख क्षेत्र जैसे टेक्सटाइल (हैंडलूम और हैंडिक्राफ्ट सहित), कालीन, चमड़ा, रत्न एवं आभूषण, समुद्री उत्पादों और लघु तथा मध्यम उद्योगों के लदाई से पहले और बाद के ऋण की ब्याज दरों में दो फीसदी की राहत की अवधि को बढ़ाने का प्रस्ताव रखता हूं। इसकी अवधि 31 मार्च 2009 से बढ़ा कर 30 सितंबर 2009 कर दी गई है।’
घरेलू मांगों में तेजी लाने तथा वैश्विक आर्थिक संकट से बुरी तरह प्रभावित हुए कुछ क्षेत्रों के लिए दूसरे आर्थिक उपायों की जरूरत पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि नई सरकार को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए।
ब्याज दरों में राहत की योजना की अवधि आगे बढ़ाने में राजकोषीय लागत 500 करोड़ रुपये होगी। दिसंबर 2008 से जनवरी 2009 के बीच सरकार दो आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा कर चुकी है।
पहले प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा दिसंबर में की गई थी जिसके अंतर्गत उत्पाद शुल्क में चार प्रतिशत की कटौती की गई थी। इसकी राजकोषीय लागत 32,000 करोड़ रुपये की थी। दूसरे प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा जनवरी के पहले सप्ताह में की गई।
इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय कंपनियों के लिए कर्ज की राह को आसान बनाना था। आज मुखर्जी के बजट भाषण से उद्योग जगत को सरकार द्वारा कुछ और आर्थिक कदम उठाए जाने की अपेक्षा थी।
निर्यात ऋणों के ब्याज दरों में राहत देने की शुरुआत साल 2007 के मध्य में हुई थी क्योंकि अल्पावधि में डॉलर के मुकाबले रूपये के मजबूत होने से निर्यातकों की कमाई पर पानी फिर गया था।
साल 2008 के मध्य में इस योजना की अवधि को बढ़ा कर 31 मार्च 2009 कर दिया गया लेकिन रुपये में अवमूल्यन होने के साथ ही सितंबर 2008 में इस योजना के लाभों को समाप्त कर दिया गया था। प्रणब मुखर्जी ने आश्वासन दिया कि ऐसे समय में जब नकदी के स्रोत समाप्त होते नजर आएंगे तो सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सहायता करना जारी रखेगी।
उन्होंने कहा, ‘अगले दो वर्षों में सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पुनर्पूंजीकरण करेगी ताकि वे 12 प्रतिशत का ‘कैपिटल टु रिस्क वेटेड ऐसेट रेशियो’ बरकरार रख पाएं और आर्थिक विकास के साथ कर्ज में बढ़ोतरी जारी रहना सुनिश्चित हो सके।’
बाद में एक संवाददाता सम्मेलन में वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 1,900 करोड़ रुपये उपलब्ध कराएगी। इसके अलावा अगले दो वर्षों में 17 से 18 सरकारी बैंकों को लगभग 14,400 रुपये दिए जाने का अनुमान है।
हालांकि, आज की घोषणा से निर्यातक नाखुश ही रहे। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष ए शक्तिवेल ने कहा, ‘ब्याज दरों में राहत की अवधि बढ़ाए जाने से हमें उसी खास अवधि तक मदद मिल पाएगी जबकि वैश्विक आर्थिक मंदी उसके बाद भी जारी रह सकती है।’
वाणिज्य मंत्रालय के आरंभिक आकलन के अनुसार जनवरी में भारतीय निर्यात में 22 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आने के आसार हैं।
खास बातें
अंतरिम बजट में एकमात्र प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा। निर्यातकों को ब्याज दरों में मिलने वाली राहत की अवधि 31 मार्च 2009 से बढ़ा कर 10 सितंबर 2009 की गई। बैंकों का भी किया जाएगा पुनर्पूंजीकरण।
राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दिल्ली को मिले अधिक पैसे। इस बाबत दिल्ली को 2360 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है जो पिछले साल की अपेक्षा 1600 करोड़ रुपये ज्यादा है।
अंतरिम बजट में राजधानी दिल्ली को राष्ट्रमंडल खेलों के ढांचागत सुविधा की बाबत 1000 करोड़ रुपये मिले हैं।
यूनिक आईडेंटिटी के लिए 100 करोड़ रुपये का प्रस्ताव। सुरक्षा की दृष्टि से देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में इसे लागू करने पर दिया जाएगा खास ध्यान।
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए किए गए आवंटन में 9 फीसदी का इजाफा किया गया है।
राज्यों के लिए वर्ष 2008-09 के संशोधित आकलन के 301460 करोड़ रुपये के मुकाबले अगले वित्तीय वर्ष 2009-10 मं् बजट अनुमान 329614 करोड़ रुपये कर दिया गया है।