भारतीय अर्थव्यवस्था पर बाहरी झटकों की मार जैसे ही कम होगी वैसे ही उसे नरेंद्र मोदी सरकार के दो कार्यकाल में अब तक किए गए सुधारों का फायदा मिलने लगेगा।
वित्त वर्ष 2022-23 की आर्थिक समीक्षा (Economic Survey) में यह भरोसा जताया गया है। मगर समीक्षा में आगाह किया गया है कि वैश्विक मांग घटने से निर्यात प्रभावित हो सकता है और जिंसों की कीमतें ऊंची रहने से चालू खाते का घाटा भी बढ़ सकता है।
समीक्षा में कहा गया कि नीति निर्माताओं को ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिनसे नए देशों में दाखिल होने और कदम जमाने की इच्छुक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत अनुकूल ठिकाना बन सके। ऐसा हुआ तो अर्थव्यवस्था मध्यम अवधि में 7 से 8 फीसदी सालाना दर से बढ़ सकती है।
बजट पेश होने से एक दिन पहले आज आई आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि सब्सिडी बढ़ाए जाने और पेट्रोल-डीजल तथा कुछ आयातित वस्तुओं पर कर घटाए जाने के बावजूद सरकार चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.4 फीसदी पर समेटने का लक्ष्य हासिल कर लेगी।
समीक्षा में कहा गया कि 2022-23 के बजट में पूंजीगत व्यय आधारित वृद्धि पर जोर दिया गया था, जिससे भारत को वृद्धि दर और ब्याज दर का अंतर धनात्मक रखने में मदद मिलेगी और मध्यम अवधि में सरकार का कर्ज जीडीपी की तुलना में सहज सीमा में रहेगा।
इसमें सुझाव दिया गया कि बुधवार को पेश होने वाले आम बजट में सरकार को पूंजीगत व्यय पर जोर देना जारी रखना चाहिए। आर्थिक समीक्षा में राजकोषीय घाटा कम रखने की याद दिलाई गई और कहा गया कि इससे ब्याज दरें कम रहेंगी और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को प्रोत्साहन मिलेगा।
स्टार्टअप को विदेशों से भारत लौटने में मदद करने के लिए कर्मचारी शेयर विकल्प (ईसॉप्स) सरल बनाने, कराधान के कई स्तरों को सुगम बनाने तथा मुकदमों के कारण होने वाली अनिश्चितता दूर करने के उपाय अपनाने की सलाह दी गई।
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन और उनकी टीम द्वारा तैयार की गई समीक्षा में ऐसा कोई बड़ा या धमाकेदार विचार नहीं था, जिससे नीति निर्माण पर चर्चा छिड़े।
पिछली आर्थिक समीक्षाओं में जनधन-आधार-मोबाइल (जैम) तिकड़ी, सार्वभौम मूलभूत आय, फंसे कर्ज के लिए बैंक या इकाई बनाने और ज्यादा नोट छापे जाने के विचार दिए गए थे। हालांकि सरकार ने इनमें से हरेक विचार स्वीकार नहीं किया था मगर इनसे नीति निर्माण पर चर्चा जरूर छिड़ी थी।
समीक्षा में भरोसा जताया गया कि अगले वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सामान्य परिस्थितियों में 6.5 फीसदी रह सकती है। मगर वैश्विक जोखिमों के हिसाब से यह 6 से 6.8 फीसदी के दायरे में रह सकती है।
समीक्षा में कहा गया कि मोदी सरकार द्वारा किए गए सुधारों जैसे बुनियादी ढांचे पर जोर, जैम तिकड़ी, डिजिटलीकरण, रेरा, आईबीसी के माध्यम से नियामकीय ढांचे को सरल बनाना, वस्तु एवं सेवा कर के जरिये कर सुधार और कॉरपोरेट कर की दरों में बदलाव तथा कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के उपायों से पूर्ववर्ती राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकारों के कार्यकाल में 1998 से 2002 के बीच किए गए व्यापक सुधारों की याद आती है। इनका फायदा 2003 से 2008 के बीच मिला था।
समीक्षा में वित्तीय क्षेत्र और कंपनियों के बहीखाते पहले से ज्यादा मजबूत बताए गए। उधार लेने-लौटाने का सिलसिला फिर शुरू होने से देश की अर्थव्यवस्था मध्यम अवधि यानी 2023 से 2030 के बीच सालाना 6.5 फीसदी वृद्धि कर सकती है।
समीक्षा में कहा गया है, ‘जीवन की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए आगे और सुधार की आवश्यकता है। इससे आर्थिक वृद्धि को रफ्तार मिलेगी और उसे उच्च स्तर पर बरकरार रखा जा सकेगा।’ जिन सुधारों का उल्लेख किया गया है उनमें राज्य सरकारों द्वारा बिजली और श्रम सुधारों के अलावा लाइसेंसिंग, निरीक्षण एवं अनुपालन व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त करना शामिल है।
हालांकि चार श्रम संहिताएं अभी भी लागू नहीं हुई हैं जबकि उनके लिए नियमों के मसौदे अधिकतर राज्यों ने तैयार किए थे। समीक्षा में शिक्षा और कौशल विकास पर जोर जरूरी बताया गया है ताकि उन्हें आधुनिक उद्योग एवं तकनीक की जरूरतों के अनुरूप बनाया जा सके।
समीक्षा में यह भी कहा गया है कि परिसंपत्तियों से कमाई के जरिये सार्वजनिक क्षेत्र का ऋण घटाना जरूरी है। इससे सॉवरिन क्रेडिट रेटिंग बेहतर करने और पूंजी लागत घटाने में मदद मिलेगी।
मगर समीक्षा में कहा गया कि मुद्रास्फीति लंबे अरसे पर ऊंची बनी रह सकती है, जिससे कर्ज भी महंगा रह सकता है। समीक्षा में कहा गया है कि यदि 2023 में वैश्विक वृद्धि को रफ्तार नहीं मिली तो अगले वित्त वर्ष में निर्यात में शायद कोई वृद्धि नहीं हो। मगर मुक्त व्यापार समझौतों के तहत उत्पाद बास्केट एवं बाजारों में आई विविधता से मदद मिलेगी।
समीक्षा में चालू खाते के घाटे पर करीब से नजर रखने की जरूरत बताई गई। जिंसों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेजी के कारण इसमें लगातार वृद्धि होने की आशंका है। समीक्षा में रुपये में गिरावट की आशंका को खारिज नहीं किया गया है।