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Editorial: सऊदी अरब और अमेरिकी दबाव – क्या तेल उत्पादन की नीति में बड़ा बदलाव आएगा?

ओपेक प्लस देशों के प्रतिनिधियों की बैठक से मीडिया में जानकारी आई कि सऊदी अरब ने समूह के ‘अत्यधिक उत्पादन’ करने वाले देशों को चेतावनी दी है।

Last Updated- May 05, 2025 | 10:18 PM IST
Crude Oil
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

सप्ताहांत पर एक ऑनलाइन बैठक में पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन और उनके रूस जैसे सहयोगी देश, जिन्हें ओपेक प्लस के नाम से जाना जाता है,  इस बात पर सहमत हुए कि तेल उत्पादन तेजी से बढ़ाया जाए। समूह के मुताबिक जून में तेल उत्पादन रोजाना 4,00,000  बैरल से अधिक बढ़ाया जाएगा। यह लगातार दूसरा महीना है जब ओपेक प्लस ने ऐसा किया है और इस प्रकार अप्रैल से जून तिमाही के दौरान ही रोजाना तेल उत्पादन में 10 लाख बैरल से अधिक का इजाफा हो जाएगा। ब्रेंट क्रूड तेल वायदा इस घोषणा के पहले ही 61  डॉलर प्रति बैरल तक के स्तर पर गिर चुका था और आने वाले दिनों में जब कारोबारी इस खबर को हजम करने लायक होंगे तब तक कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे जा सकती हैं।

कई नीति निर्माता ऐसे में सवाल करेंगे कि क्या यह एक अस्थायी बदलाव है या फिर हाल के वर्षों में उत्पादन कटौती के निर्णय से आंशिक रूप से पीछे हटा जा रहा है। या फिर क्या समूह ने अब एक अलग मूल्य दायरे को लक्षित करना आरंभ कर दिया है?

इस इजाफे की मुख्य वजह सऊदी अरब है और उसने अपने इरादे एकदम साफ रखे हैं। ओपेक प्लस देशों के प्रतिनिधियों की बैठक से मीडिया में जानकारी आई कि सऊदी अरब ने समूह के ‘अत्यधिक उत्पादन’ करने वाले देशों को चेतावनी दी कि आगे और ‘धोखाधड़ी’ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उसने यह भी कहा कि अगर वे इसके लिए तैयार नहीं हुए तो उत्पादन में और अधिक वृद्धि की जा सकती है। ऐसा लगता है कि उसका इशारा कजाकस्तान और इराक की ओर था। कजाकस्तान में बहुराष्ट्रीय कंपनी शेवरॉन द्वारा संचालित एक बड़ी इकाई मोटे तौर पर इस अत्यधिक उत्पादन के लिए जिम्मेदार है और सरकार का दावा है कि उसका इसके उत्पादन पर कोई नियंत्रण नहीं है।

बहरहाल, तथ्य यह है कि ओपेक ने हमेशा अपने सदस्य देशों के सहयोग और घरेलू तेल कुओं से होने वाले उत्पादन के नियंत्रण पर विश्वास किया है। ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि जिसके जरिये उन्हें उत्पादन को तय कोटे तक सीमित करने को लेकर विवश किया जाए। अतीत में भी धोखाधड़ी होती रही है। 1995 से 2007 के बीच अकेले कतर ने हर वर्ष 18.5 फीसदी तक अतिरिक्त उत्पादन किया। अल्जीरिया जैसे देश भी कई मौकों पर अत्यधिक उत्पादन करते रहे हैं। सऊदी अरब समूह को संचालित रखने के लिए केवल एक अनुशासन लागू कर सकता है और वह यह कि उसके पास खनन के लिए बहुत अधिक अतिरिक्त क्षमता मौजद है। ऐसे में जरूरत पड़ने पर वह कीमतों में भारी गिरावट करके उन्हें एक साथ दंडित कर सकता है। बीते दशक में वह कम से कम दो बार ऐसा कर चुका है।

यह विश्लेषण बताता है कि कीमतें केवल तभी तक कम रह सकती हैं जब तक कि कजाकस्तान, इराक और अन्य देश सबक नहीं सीख लेते और अत्यधिक उत्पादन कम नहीं करते। उस समय सऊदी अरब दोबारा 60-70  डॉलर प्रति बैरल के मौजूदा स्तर से 100 डॉलर प्रति बैरल के दायरे पर ध्यान केंद्रित करने लगेगा। परंतु कुछ अन्य बातों पर भी ध्यान देना होगा। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को इस महीने के आखिर में सऊदी अरब की यात्रा करनी है और उन्होंने उत्पादन बढ़ाने की मांग की है ताकि अमेरिका में पेट्रोल पंपों पर कीमत कम हो सके।

वह ओपेक प्लस के उत्पादन को लेकर क्या रुख अपनाते हैं यह बात मायने रखेगी। सऊदी अरब को यह चिंता भी होगी कि ईरान और वेनेजुएला समेत अन्य बड़े उत्पादक जल्दी ही उत्पादन करने लगेंगे। हालांकि इस बात के समुचित प्रमाण हैं कि यह अनुपालन लागू करने के लिए अनुशासन का एक और उदाहरण भर है। परंतु इस बात की समुचित वजह मौजूद है कि 100 डॉलर प्रति बैरल की दर आगे चलकर सऊदी अरब के हित में नहीं होगी। कम तेल कीमतें भारत जैसे बड़े आयातक को फायदा पहुंचाती हैं। इससे भारी वैश्विक अनिश्चितता के दौर में चालू खाते का घाटा कम करने में मदद मिलेगी। अगर कीमतों में कमी का लाभ ग्राहकों को दिया गया तो मुद्रास्फीति की दर भी कम होगी।

First Published - May 5, 2025 | 10:14 PM IST

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