प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
चालू वित्त वर्ष के पहले 4 महीनों में ऋण के माध्यम से रिकॉर्ड 4.07 लाख करोड़ रुपये जुटाने के बाद अगस्त में भारतीय कंपनियों की रफ्तार धीमी पड़ गई। बढ़े यील्ड के कारण अगस्त में अब तक कोई बड़ा कॉर्पोरेट बॉन्ड जारी नहीं हुआ है।
बाजार से जुड़े हिस्सेदारों ने कहा कि बॉन्ड बाजार इस समय देखो और इंतजार करो की स्थिति में है। इसकी वजह राज्य बॉन्डों व केंद्र सरकार के बॉन्डों की आपूर्ति के दबाव के बीच कई तरह की अनिश्तितताएं है। प्रमुख चिंताओं में जीएसटी दर में कटौती के कारण राजकोषीय घाटे के प्रबंधन के लिए अतिरिक्त उधारी की उम्मीद तथा अमेरिकी शुल्क और व्यापार तनाव जैसे वैश्विक जोखिम शामिल हैं।
निजी और सरकारी दोनों तरह की बड़ी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां अगस्त में बाजार से दूर रहीं जिनकी हिस्सेदारी 60 प्रतिशत है। आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती के कारण कर्ज की मांग घटना इसकी प्रमुख वजह है।
कैप्री ग्लोबल कैपिटल लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक अजय मंगलुनिया ने कहा, ‘पिछले महीने यील्ड लगभग 6.30 प्रतिशत से बढ़कर 6.55 प्रतिशत हो गया है, और कंपनियां ज्यादा कूपन दर देने को तैयार नहीं हैं। व्यवस्था में पर्याप्त नकदी के बावजूद ब्याज दरें बढ़ रही हैं क्योंकि नीतिगत दरों में कटौती की उम्मीद कम है। जब तक अमेरिकी शुल्क युद्ध जैसी वैश्विक अनिश्चितताओं पर स्पष्टता नहीं आ जाती, तब तक जारीकर्ता उधार लेने की जल्दी में नहीं हैं। यही कारण है कि अगस्त में कोई बड़ा कॉर्पोरेट बॉन्ड जारी नहीं हुआ है।’सालाना आधार पर एएए रेटेड कॉर्पोरेट बॉन्डों का यील्ड अगस्त में अब तक 13 आधार अंक बढ़ा है। चालू वित्त वर्ष के पहले 4 महीनों में कॉर्पोरेट बॉन्डों की आपूर्ति अधिक होने के बाद अगस्त में बॉन्ड यील्ड बढ़ा है, क्योंकि नीतिगत दर तय करने वाली समिति के आक्रामक रुख के कारण दर में कटौती की उम्मीद धूमिल पड़ गई है।
रॉकफोर्ट फिनकैप एलएलपी के संस्थापक और मैनेजिंग पार्टनर वेंकटकृष्णन श्रीनिवासन ने कहा, ‘बाजार सतर्क है और सरकार से स्पष्टता का इंतजार कर रहा है कि क्या वह जीएसटी सुधारों, शुल्क और राजकोषीय घाटे के प्रबंधन के मद्देनजर राजकोषीय जरूरतों को पूरा करने के लिए और अधिक उधार लेगी? धन जुटाने के लिए सरकार के पास लघु बचत, विनिवेश और लाभांश जैसे वैकल्पिक रास्ते हैं, जो नई बाजार उधारी की जरूरत कम कर सकते हैं।’