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बिहार विधानसभा चुनाव का असर: श्रमिकों की कमी से ठिठका उद्योग-जगत का पहिया

चुनाव बिहार में हो रहे हैं मगर तमिलनाडु के कपड़ा कारखानों से लेकर पंजाब के तमाम कारखानों तक कई राज्यों में उद्योग सुस्त पड़ रहे हैं

Last Updated- November 04, 2025 | 10:53 PM IST
Labour

बिहार में होने जा रहे विधान सभा चुनावों की गूंज सैकड़ों किलोमीटर दूर दूसरे राज्यों में भी साफ-साफ सुनाई दे रही है। बिहार में 6 नवंबर और 11 नवंबर को चुनाव होने वाले हैं, जिनमें 7.40 करोड़ से अधिक पात्र मतदाता हैं। चुनाव बिहार में हो रहे हैं मगर तमिलनाडु के कपड़ा कारखानों से लेकर पंजाब के तमाम कारखानों तक कई राज्यों में उद्योग सुस्त पड़ रहे हैं। वजह बिहारी कामगार हैं, जिनके बल पर कई राज्यों में उद्योग और दूसरे धंधे चलते हैं। इन राज्यों में काम करने वाले 30 से 60 प्रतिशत बिहारी कामगार 25 अक्टूबर से शुरू हुए छठ पर्व के लिए अपने राज्य लौटे थे और 11 नवंबर को मतदान करने के बाद ही लौटेंगे।

उद्योग जगत के कई सूत्रों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि लोक सभा चुनावों या स्थानीय निकाय चुनावों में तो ऐसा नहीं होता था। लेकिन विधान सभा चुनावों के लिए बिहारी कामगारों के जत्थे के जत्थे लौट गए हैं, जिससे सभी प्रमुख औद्योगिक राज्यों में निर्माण, उत्पादन एवं परिवहन क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं।

उदाहरण के लिए तमिलनाडु के तिरुपुर में बिहार के 2.5 लाख लोग काम करते हैं। तिरुपुर एक्सपोर्टर्स ऐंड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (टेमा) के अध्यक्ष एम मुत्तुरत्नम ने कहा, ‘हमारे काम पर असर पड़ा है क्योंकि 2.5 लाख लोगों में 50-60 प्रतिशत इस बार वापस चले गए हैं। इस बार वहां राजनीतिक पार्टियों के लिए करो या मरो वाले चुनाव हैं, इसलिए लोग वापस गए हैं। कई लोगों को तो उनके रिश्तेदार और दूसरे लोगों ने टिकट भेजकर बुला लिया है।’

ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत प्रवासी श्रमिकों सहित असंगठित श्रमिकों के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उनके मुताबिक काम की तलाश में दूसरे राज्यों का सबसे अधिक रुख उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोग ही करते हैं। इनमें बिहारी मजदूर करीब 3 करोड़ हो चुके हैं। तिरुपुर अकेला नहीं है, जहां औद्योगिक गतिविधियां थम गई हैं।

दक्षिण भारत की एक बड़ी सीमेंट कंपनी के एक आला अधिकारी ने कहा, ‘बिहार में चुनाव के कारण आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों में निर्माण और दूसरी बुनियादी गतिविधियां पहले ही सुस्त हो चुकी हैं। सीमेंट की मांग में भारी गिरावट दिख रही है।’उद्योग जगत के दूसरे लोगों के मुताबिक इसकी वजह बिहार चुनाव के इस बार के मुद्दे हैं, जिनमें बेरोजगारी, गरीबी और पलायन की सबसे ज्यादा बात हो रही है।

प्रवासियों के बीच काम करने वाले गैर सरकारी ,संगठन सेंटर फॉर माइग्रेशन ऐंड इन्क्लूसिव डेवलपमेंट (सीएमआईडी) के कार्यकारी निदेशक विनय पीटर ने कहा, ‘इससे पहले कभी बिहारी कामगार चुनाव के दौरान इतनी बड़ी तादाद में नहीं गए थे। उनके जाने से निर्माण गतिविधियों और केरल में फुटवियर जैसे प्रमुख उद्योगों पर भी असर पड़ा है।’

पीटर के मुताबिक इस बार बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार और प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच करो या मरो की लड़ाई है, जिसे देखते हुए उनका जाना सही भी लगता है। उन्होंने कहा, ‘यह वजूद की लड़ाई है, इसलिए पार्टियां प्रवासियों को वापस आने और वोट देने के लिए कह रही हैं। चूंकि चुनाव छठ के ठीक बाद हैं, इसलिए कामगारों ने महीने भर की छुट्टी ले डाली।’

पंजाब में खेल-खिलौना उद्योग अमेरिकी शुल्कों की मार से पहले ही परेशान था और अब बिहार के प्रवासी कामगारों के लौटने से परेशानी बढ़ गई है। खेलकूद का सामान बनाने वाली कंपनी सावी इंटरनैशनल के निदेशक मुकुल वर्मा के मुताबिक उनका उत्पादन 35-40 प्रतिशत घट गया है। उन्होंने कहा, ‘हमारे ज्यादातर मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं। अधिकतर दीवाली से पहले ही घर चले गए। उत्तर प्रदेश के मजदूर दीवाली के बाद लौट आए मगर ज्यादातर बिहारी मजदूर नहीं लौटे। अब 6 तारीख को पहले चरण का मतदान हो जाने के बाद उनके लौटने की उम्मीद है।’

स्पोर्ट्स ऐंड टॉयज एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके सुमित शर्मा का कहना है कि जालंधर और लुधियाना तीन मुख्य उद्योगों – खेल और खिलौने, हैंड टूल्स और चमड़े पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा कि इन सभी क्षेत्रों में बहुत मजदूर लगाने पड़ते हैं। छठ से पहले ज्यादातर लोगों के बिहार जाने के कारण करीब एक महीने के लिए उत्पादन ठप हो गया है। इससे तीनों उद्योगों का 700 से 1,000 करोड़ रुपये का काम बिगड़ा है। वह कहते हैं, इन दिक्कतों की वजह से ही हम पाकिस्तान और चीन से होड़ में पिछड़ रहे हैं। सर्दी आ रही है। अगर चमड़ा उद्योग इस समय माल नहीं बनाएगा तो सीजन शुरू होने से पहले हम कारोबारियों तक माल पहुंचाएंगे कैसे? ऐसे में लोग चीन और पाकिस्तान से ही माल मंगाएंगे।’

मजदूरों की किल्लत लुधियाना और जालंधर के उद्योगों को ही नहीं साल रही है। अमृतसर में पर्यटन उद्योग पर भी असर पड़ा है। गुरु नानक जयंती पर शहर में पर्यटकों की भारी भीड़ आ जाती है, जो स्वर्ण मंदिर पहुंचते हैं। मगर इस बार शहर के होटल परेशानियों से जूझ रहे हैं। एक होटल कारोबारी ने कहा, ‘साल भर की मुश्किलों के बाद आखिरकार होटलों में रौनक आई है। सीमा पर तनाव के कारण तीन महीने से कोई नहीं आ रहा था। अब सब ठीक हुआ है तो मदद करने वाले कामगार ही नहीं हैं।

रेस्तरां और होटल भरे पड़े हैं मगर कामगार नहीं होने से हम मेहमानों की खिदमत ठीक से नहीं कर पा रहे। पर्यटक बड़े होटलों में भी खामियों की शिकायत कर रहे हैं।’जम्मू कश्मीर में भी पर्यटन व्यवसाय पर असर हुआ है। यहां बिहार के लोग पर्यटन व्यवसाय में काम करते हैं।

डल झील में नाव चलाने वाले असद कहते हैं, ‘खास तरह के पर्यटकों को यही सीजन पसंद आता है। आम तौर पर बिहारी कामगार छठ मनाकर हफ्ते भर में लौट आते हैं मगर इस बार चुनावों के कारण वे वहीं रुक गए हैं। इस समय हर किसी को रोजाना औसतन 10 फेरे मिल रहे हैं। लेकिन काम करने वाले ही नहीं हैं, इसलिए हम आठ फेरे ही लगा पा रहे हैं। फर्क ज्यादा नहीं है मगर सारे फेरे जोड़ लें तो अंतर अच्छा खासा हो जाता है और वैसे भी दिसंबर से हमारे पास कोई काम नहीं होगा।’

इधर दिल्ली में भी बिल्डर निर्माण गतिविधियों पर असर पड़ने की शिकायत कर रहे हैं। दिल्ली के एक बिल्डर ने कहा, ‘मजदूरों की किल्लत से काम धीमा पड़ गया है। प्रदूषण भी बढ़ रहा है, इसलिए निर्माण कुछ दिनों के लिए रोक ही दिया जाएगा। इससे लोगों को उनके मकान देर से मिल पाएंगे और हमें अपनी जेब से पैसा देना पड़ेगा।’

कारोबारियों के संगठन कैट के संस्थापक प्रवीन खंडेलवाल कहते हैं, ‘चुनाव और छठ पूजा से पहले बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कामगार-मजदूर बड़ी तादाद में लौटे हैं। ऐसा हर साल होता है मगर इस बार रिटेल, लॉजिस्टिक्स और निर्माण जैसे क्षेत्रों में काम करने वालों की ज्यादा कमी हो गई है। मगर दिल्ली में ज्यादातर कारोबारियों ने इसका अंदाजा लगा लिया था और पहले से इंतजाम कर लिया था। इसलिए यहां ज्यादा असर नहीं पड़ा है।’

First Published - November 4, 2025 | 10:47 PM IST

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