बैंकों में जमा प्रमाणपत्र (सीडी) बाजार से ऋण बढ़ा है। बैंकों ने यह कदम जमा वृद्धि के सुस्त रहने और वाणिज्यक बैंकों के ऋण-जमा अनुपात के 80 प्रतिशत के पार जाने के दौर में उठाया है। इस क्रम में 14 नवंबर को समाप्त पखवाड़े में बीते दो पखवा़ड़ों की तुलना में दोगुनी बढ़कर 55,000 करोड़ रुपये हो गई। यह 19 सितंबर के पखवाड़े के बाद सर्वाधिक है।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े के अनुसार 14 नवंबर को समाप्त पखवाड़े में कुल बकाया सीडी रिकॉर्ड उच्च स्तर 5.34 लाख करोड़ रुपये थी। इससे पहला उच्च स्तर मार्च 21 के पखवाड़े में 5.32 लाख करोड़ रुपये था और इस अवधि में बैंकों व वित्तीय संस्थानों ने 1.17 लाख करोड़ रुपये सीडी से जुटाए थे।
इस अवधि में इंडसइंड बैंक ने अपने डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में विसंगतियों का खुलासा करने के बाद अपनी तरलता कवरेज अनुपात में गिरावट के साथ सीडी बाजार में आक्रामक रूप से प्रवेश किया था।
आंकड़ों से पता चलता है कि बैंकों ने 14 नवंबर को समाप्त पखवाड़े में 5.5 प्रतिशत से 6.63 प्रतिशत की ब्याज दरों पर 54,949 करोड़ रुपये के जमा प्रमाणपत्र जारी किए। बैंकों ने 31 अक्टूबर को समाप्त पूर्ववर्ती पखवाड़े में 5.76 प्रतिशत और 6.46 प्रतिशत के बीच की दरों पर 24,530 करोड़ रुपये के सीडी जारी किए थे। इस क्रम में 17 अक्टूबर को समाप्त पखवाड़े में 5.5 से 6.4 प्रतिशत की दर पर 24,608 करोड़ रुपये की सीडी जारी की गई थी।
बैंकों के लिए सीडी नेगोशिएबल मुद्रा बाजार के इंस्ट्रूमेंट हैं। इनकी परिपक्वता अवधि न्यूनतम सात दिन से लेकर अधिकतम एक वर्ष होती है। सीडी थोक सावधि जमा के लिए लागत प्रभावी विकल्प के रूप में काम करते हैं, जो बैंकों के समग्र जमा पूल में योगदान करते हैं। इसके अतिरिक्त वे बैंकों को परिपक्व जमाओं में मदद करते हैं। इससे बैंक बेहतर नकदी प्रबंधन तय करते हैं। लिहाजा ऐसे धन जुटाने के तरीकों पर बैंको की निर्भरता बढ़ी है।
सीडी को स्वीकृत रेटिंग एजेंसियां रेटिंग देती हैं। इससे द्वितीयक बाजार में मांग के आधार पर उनकी व्यापार क्षमता बढ़ जाती है। बैंक मुख्य रूप से सीडी पर निर्भर रहते हैं क्योंकि वे वित्तीय प्रणाली में कई लाभ प्रदान करते हैं। इसमें व्यापार के अवसर, नकदी प्रबंधन व परिपक्वता अंतराल हैं।