अमेरिका ने रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और ल्यूकोइल पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। ये प्रतिबंध 21 नवंबर से पूरी तरह लागू हो चुके हैं। इसके चलते भारत का रूसी कच्चा तेल आयात आने वाले दिनों में तेजी से गिरने वाला है। पहले जहां भारत रोजाना औसतन 17-18 लाख बैरल रूसी तेल ले रहा था, अब दिसंबर-जनवरी में यह आंकड़ा घटकर करीब 4 लाख बैरल रोज तक रह सकता है। यानी आयात में 75 फीसदी तक की भारी कटौती हो सकती है।
इस साल नवंबर तक रूस भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल सप्लायर बना हुआ है। कुल आयात का करीब एक-तिहाई हिस्सा रूस से ही आ रहा है। 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यूरोप ने रूसी तेल खरीदना लगभग बंद कर दिया था, जिससे रूस ने अपना तेल भारी डिस्काउंट पर भारत, चीन जैसे देशों को बेचना शुरू किया। दो साल में ही भारत का रूसी तेल आयात 1% से बढ़कर लगभग 40% तक पहुंच गया था।
भारत की बड़ी रिफाइनरियां रिलायंस इंडस्ट्रीज, HPCL-मित्तल एनर्जी और मंगलोर रिफाइनरी ने रोसनेफ्ट और ल्यूकोइल से तेल लेना फिलहाल रोक दिया है। सिर्फ नयारा एनर्जी ही अभी भी रोसनेफ्ट से तेल ले रही है, क्योंकि उसकी वडीनर रिफाइनरी पहले से ही यूरोपीय यूनियन के प्रतिबंधों के दायरे में है और उसका ज्यादातर तेल रूस से ही आता है। बाकी कंपनियां अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन करने का जोखिम नहीं उठाना चाहतीं।
रिलायंस ने 20 नवंबर से अपनी SEZ रिफाइनरी (7.04 लाख बैरल प्रतिदिन क्षमता वाली) में रूसी तेल लोड करना पूरी तरह बंद कर दिया है, क्योंकि 1 दिसंबर से यूरोपीय यूनियन रूसी तेल से बने ईंधन के आयात पर भी रोक लगा रहा है। पहले से बुक किए गए जहाजों को कंपनी अपनी दूसरी घरेलू रिफाइनरी में भेजेगी, लेकिन नए ऑर्डर नहीं ले रही।
अमेरिका ने सारा रूसी तेल प्रतिबंधित नहीं किया है, सिर्फ रोसनेफ्ट, ल्यूकोइल और इनसे जुड़ी कंपनियों को निशाना बनाया है। रूस की दूसरी कंपनियां, जैसे सर्गुटनेफ्टेगाज, गजप्रोम नेफ्ट या कोई स्वतंत्र व्यापारी, अगर प्रतिबंधित जहाज, बैंक या सर्विस प्रोवाइडर का इस्तेमाल न करें, तो उनका तेल भारत अभी भी खरीद सकता है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि रूस अब बीच में नए-नए व्यापारियों, शैडो फ्लीट जहाजों, शिप-टू-शिप ट्रांसफर और अलग-अलग पेमेंट तरीकों का इस्तेमाल करके तेल भेजना शुरू कर देगा। यानी तेल तो आएगा, लेकिन पहले जैसा सीधा और पारदर्शी तरीके से नहीं। सप्लाई चेन ज्यादा जटिल और कम दिखने वाली हो जाएगी।
पिछले दो सालों में रूसी तेल सस्ता मिलने की वजह से रिलायंस, इंडियन ऑयल, BPCL, HPCL जैसी कंपनियों ने मोटा मुनाफा कमाया। पेट्रोल-डीजल के दाम भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में उतार-चढ़ाव के बावजूद स्थिर रखे जा सके। अब जब सस्ता रूसी तेल कम आएगा, तो रिफाइनरियां सऊदी अरब, इराक, UAE, ब्राजील, अमेरिका, कनाडा और पश्चिम अफ्रीका से ज्यादा तेल खरीदेंगी। तकनीकी रूप से भारत की रिफाइनरियां इन सबको प्रोसेस कर सकती हैं, लेकिन मार्जिन कुछ कम हो सकता है। फिलहाल दिसंबर और जनवरी में रूसी तेल की आवक में भारी गिरावट दिखेगी। उसके बाद यह देखना होगा कि अमेरिका कितनी सख्ती से इन प्रतिबंधों को लागू करता है और रूस कितनी जल्दी नए रास्ते बना लेता है। दोनों तरफ से खेल अभी बाकी है।
(PTI के इनपुट के साथ)