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बढ़ेगी श्रम लागत परियोजनाएं पूरी करने में होगी देर: उद्योग

विशेषज्ञों का कहना है कि बदलाव थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन जब सब ठीक हो जाएगा तब 29 अलग-अलग कानूनों की जगह एक ही कानून होने से नियमों का पालन करना आसान हो जाएगा।

Last Updated- November 24, 2025 | 8:56 AM IST
labour laws

नए श्रम कानूनों के लागू होने के साथ ही रियल एस्टेट उद्योग अगले एक साल में लगभग 5 से 10 प्रतिशत तक श्रम लागत में वृद्धि के लिए तैयार है क्योंकि श्रम, कुल परियोजना लागत का लगभग एक-चौथाई हिस्सा होता है।

उद्योग के अधिकारियों के अनुसार, कुल परियोजना लागत में पहले से ही श्रम की हिस्सेदारी लगभग 25 से 30 प्रतिशत है, ऐसे में कोई भी संरचनात्मक बदलाव स्वाभाविक रूप से डेवलपरों के अनुमानों को प्रभावित करता है।

मुंबई की कंपनी एमडी टीआरयू रियल्टी के संस्थापक सुजय कालेल ने कहा, ‘नई अनुपालन आवश्यकताओं के लागू होने से हम इसके क्रियान्वयन के अगले 12 से 18 महीनों में आधारभूत श्रम लागत में लगभग 5 से 10 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगा रहे हैं।’

लॉ फर्म शार्दुल अमरचंद मंगलदास (एसएएम) के अधिकारी सुरुचि कुमार ने कहा कि शुरुआत में कुछ वृद्धि अपरिहार्य है क्योंकि कानून के तहत वेतन कटौतियों को 50 प्रतिशत से अधिक रखने पर रोक लगा दी गई है। इसके चलते पीएफ, ग्रेच्युटी और ओवरटाइम गणना जैसे वैधानिक योगदान कुछ श्रेणियों के कर्मचारियों के लिए बढ़ेंगे, जैसे कि निश्चित अवधि के अनुबंधों के लिए ग्रेच्युटी। कुमार ने कहा, ‘इसी तरह, सामाजिक सुरक्षा संहिता का चैप्टर 3 लाभ के लिए पात्र श्रमिकों के दायरे का विस्तार करता है, जिससे योगदान का अतिरिक्त भार बढ़ता है।’

विशेषज्ञों का कहना है कि बदलाव थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन जब सब ठीक हो जाएगा तब 29 अलग-अलग कानूनों की जगह एक ही कानून होने से नियमों का पालन करना आसान हो जाएगा। कुमार ने बताया कि उनकी योजना है कि कर्मचारियों के वेतन के ढांचे को फिर से बनाया जाए, ठेकेदारों को नए नियमों के हिसाब से ढाला जाए और कर्मचारियों से जुड़े सारे रिकॉर्ड और जानकारी को डिजिटल तरीके से व्यवस्थित किया जाए।

देश भर में मजदूरों की मजदूरी को एक समान करने और नए सुरक्षा नियमों के आने से, कंपनियों को न सिर्फ दिखावे के लिए बल्कि पूरी तरह अपने अंदरूनी कामकाज के तरीके को बदलना पड़ रहा है।

अधिकारियों का कहना है कि इन संरचनात्मक बदलावों से उनके अनुमानों और समय पर काम पूरा करने की योजना पर असर पड़ेगा। ऐसे में कंपनियों को अपनी योजनाओं का फिर से मूल्यांकन करने की जरूरत होगी, ठेकेदारों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना होगा और काम करने के नए तरीकों को अपनाना होगा जो ज्यादा अनुकूल हों।

हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि शुरुआत में होने वाली परेशानियां बाद में कम हो जाएंगी क्योंकि विवाद कम होंगे, कर्मचारी ज्यादा समय तक टिकेंगे और काम आसानी से होगा।

कालेल ने कहा, ‘काम करने के नियमों में बदलाव जैसे कि कर्मचारियों को काम पर रखने और निकालने में आसानी और 8 से 12 घंटे तक की शिफ्ट का विकल्प लेकिन हफ्ते में 48 घंटे की सीमा तय किए जाने से उत्पादकता बढ़ेगी और लागत में होने वाली वृद्धि कम की जा सकती है।’

उद्योग का समर्थन पर कानून पर स्पष्टता की दरकार

नारेडको के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी ने इन कानूनों को ऐसे क्षेत्र के लिए एक अच्छा कदम बताया जहां ज्यादातर मजदूर एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं और अक्सर असुरक्षित होते हैं।

उन्होंने कहा कि वेतन की परिभाषा बदलने और ज्यादा लोगों को फायदे मिलने से भले ही थोड़े समय के लिए मजदूरों की लागत बढ़ जाए, लेकिन इसे बोझ नहीं बल्कि एक निवेश के तौर पर देखना चाहिए। हालांकि, उद्योग यह भी जानना चाहता है कि ये कानून कैसे लागू होंगे और क्या सभी राज्यों में इन्हें समान तरह से लागू किया जाएगा।

First Published - November 24, 2025 | 8:56 AM IST

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