अमेरिका में डेलावेयर की एक अदालत ने बैजू रवींद्रन के खिलाफ 1.07 अरब डॉलर का एकतरफा फैसला सुनाया है। लेकिन कानून के जानकारों का कहना है कि इस फैसले को भारत में लागू करना आसान नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि दो देशों के बीच कर्ज वसूली के नियम बेहद पेचीदा होते हैं और अमेरिकी अदालतें दूसरे देशों के नागरिकों के मामलों में ज्यादा दखल नहीं दे सकतीं।
यह फैसला 20 नवंबर को तब आया जब शिक्षा प्रौद्योगिकी (एडटेक) कंपनी बैजूस ने अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया। हालांकि, ये निजी देनदारी से जुड़ा फैसला एक भारतीय स्टार्टअप के मालिक के खिलाफ सबसे बड़े फैसलों में से एक है, लेकिन भारत में इसका असर शायद तुरंत न हो। ये फैसला बैजूस की मूल कंपनी, थिंक ऐंड लर्न प्राइवेट लिमिटेड (टीएलपीएल) के मालिक रवींद्रन के खिलाफ आया है।
बैजूस अल्फा और अमेरिकी ऋणदाता जीएलएएस ट्रस्ट कंपनी एलएलसी ने आरोप लगाया था कि कंपनी के पैसे गलत तरीके से निकाले गए, जिसके बाद फंड के दोबारा भुगतान की मांग की गई। अदालत ने पाया कि रवींद्रन कई मौकों पर टाल-मटोल कर रहे थे इसलिए उन पर एक मामले में 53.3 करोड़ डॉलर और तीन अन्य मामलों में 54 करोड़ डॉलर का जुर्माना लगाया। साथ ही, अदालत ने विवादास्पद अल्फा फंड का पूरा हिसाब-किताब देने का भी आदेश दिया।
बैजूस अल्फा को 2021 में डेलावेयर में 1.2 अरब डॉलर के टर्म लोन के लिए गठित किया गया था। बाद में ऋणदाता ने अपना पूरा नियंत्रण कर लिया और कथित तौर पर आरोप लगाया कि 53.3 करोड़ डॉलर रवींद्रन और उनके सहयोगियों को वापस भेज दिए गए। कंपनी के संस्थापकों ने इस दावे को खारिज कर दिया।
भारत में संस्थापकों के करीबी कानूनी सूत्रों ने कहा कि एकतरफा आदेश के रूप में इसकी प्रकृति से फैसले की कमजोरियां बढ़ जाती हैं। सूत्र ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘रवींद्रन के खिलाफ आया फैसला बिना मुकदमे के दिया गया है जिसकी अपील की जा रही है। यह स्वतः तरीके से भारत में लागू करने योग्य नहीं है। भारतीय कानूनी प्रणाली, हर व्यक्ति को पूर्ण बचाव और निष्पक्ष मुकदमे का अधिकार देती है और यहां इस फैसले को लागू करने के किसी भी प्रयास को गंभीर कानूनी और संवैधानिक जांच का सामना करना पड़ेगा।’