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आर्टिफिशल इंटेलिजेंस सामाजिक दृष्टि से सही

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) के कारण रोजगार बाजार में निराशा या उछाल की खबरें हाल के दिनों में काफी सुर्खियों में रही हैं।

Last Updated- May 07, 2024 | 9:03 PM IST
Artificial Intelligence

एआई (AI) की क्षमताओं और रोजगार पर उसके असर के बारे में हो हल्ले के बीच इसे इस प्रकार विकसित करने की जरूरत है कि यह सामाजिक दृष्टि से कारगर साबित हो। बता रहे हैं अजित बालकृष्णन

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) के कारण रोजगार बाजार में निराशा या उछाल की खबरें हाल के दिनों में काफी सुर्खियों में रही हैं। ऐसी ही एक खबर में देश की एक सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर सेवा कंपनी के प्रमुख के हवाले से कहा गया है, ‘एक वर्ष के भीतर देश के कॉल सेंटरों में अधिकांश काम एआई के हवाले होगा।’

कॉल सेंटर उद्योग में करीब तीन लाख से अधिक भारतीय काम करते हैं जिनमें से अधिकांश की उम्र 30 से कम है। इनमें से अधिकांश अविवाहित और कॉलेज जाने वाले युवक-युवतियां शामिल हैं। अगर उनके रोजगार चले जाते हैं तो यह बहुत बड़ी आपदा होगी।

इसके बाद गोल्डमैन सैक्स ने एक वक्तव्य जारी करके कहा कि एआई के कारण जल्दी ही 30 करोड़ से अधिक ऐसे रोजगार खत्म हो सकते हैं जो कार्यालयीन प्रकृति के हैं। उसके पश्चात अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक ब्लॉग में आधिकारिक तौर पर कहा गया कि जल्दी ही दुनिया भर में 40 फीसदी रोजगार एआई के पास चले जाएंगे।

ऐसी निराशाजनक सुर्खियां देखकर आश्चर्य होता है कि क्या नियोक्ता केवल इसलिए एआई को अपना रहे हैं ताकि वे कर्मचारियों की संख्या कम करके अपना मुनाफा बढ़ा सकें। इस समय एआई को जिस दिशा में विकास के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, यानी कर्मचारियों की संख्या कम करने के लिए, उस पर मैं सवाल उठा रहा हूं।

ऐसा इसलिए कि सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ टेक्नॉलजी (एससीओटी) के रूप में एक नया विचार सामने आ रहा है जो कह रहा है कि तकनीकी नवाचार अपने बल पर संचालित नहीं है बल्कि वह सामाजिक शक्तियों से संचालित है।

आइए इस बात का एक उदाहरण देखते हैं कि कैसे सामाजिक शक्तियों ने साइकल के विकास को आकार दिया। साइकल का आरंभिक संस्करण 1800 के दौर में यूरोप में सामने आया जिसमें पैडल नहीं होते थे। उपयोगकर्ताओं को अपने पैरों को जमीन का सहारा देना पड़ता था जिससे पहिया चलता था।

सन 1860 के आसपास साइकिलों के अगले पहिये में पैडल और क्रैंक लगाए गए। इस डिजाइन की वजह से साइकल बहुत उपयोगी बन गई। उसकी गति में भी सुधार हुआ। यह घुड़सवारी का विकल्प बनकर सामने आई। 19वीं सदी के अंत तक पहिए बराबर आकार के कर दिए गए और पैडल को पिछले पहिये से जोड़ने वाली चैन इस्तेमाल की गई जिससे साइकल की स्थिरता बढ़ी और वह आरामदायक हुई।

इसे ‘सेफ्टी बाइसिकल’ का नाम दिया गया और यह खूब चर्चित हुई। खासतौर पर महिलाओं के लिए साइकल चलाना आधुनिकता का प्रतीक बन गया। इसके जरिये वे काम पर जा सकती थीं। इसके बाद अमेरिकी सेना ने अपनी घुड़सवार रेजिमेंट की जगह साइकल वाली रेजिमेंट तैनात कर दी। उसके बाद 20वीं सदी में न्यूमैटिक टायर, एल्युमीनियम और बेहतर ब्रेक आदि ने वह साइकल बनाई जिस पर हम आज चलते हैं।

स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता ने साइकल के इस्तेमाल को और व्यापक बनाया। आज साइकल को एक स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल साधन माना जाता है। साइकल के विकास के इस अध्ययन को देखते हुए ही कई विद्वान एससीओटी आंदोलन के अंतर्गत साथ आए और यह देखना शुरू किया कि विभिन्न तकनीकें सामाजिक शक्तियों को किस प्रकार प्रभावित करती हैं। इन प्रयासों को लेकर ‘द सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ टेक्नॉलाजिकल सिस्टम्स’ नामक एक पुस्तक भी लिखी गई है।

हाल के दिनों में चैटजीपीटी और उसके जैसी अन्य एआई तकनीक को लेकर काफी उत्साह है कि उनमें जादुई गुणधर्म हैं। हालांकि चैटजीपीटी के जवाब बेहतर विनम्रता से भरे हुए हैं। उदाहरण के लिए मैंने गत सप्ताह उससे प्रश्न किया, ‘पाइथन का नवीनतम संस्करण कौन सा है?’ इसके जवाब में चैटजीपीटी ने कहा, ‘जनवरी 2022 के मेरे ताजा अपडेट के मुताबिक पाइथन का नवीनतम स्थिर संस्करण था 3.10।

बहरहाल तब से शायद नए संस्करण भी जारी किए गए हों। आप पाइथन की आधिकारिक वेबसाइट पर या पाइथन पैकेज इंडेक्स पर ताजा संस्करण की जानकारी पा सकते हैं।’

हम जानते हैं कि चैटजीपीटी की जानकारियां उसके नवीनतम अपडेट पर निर्भर करती है और यह भी यह एक खोज इंजन है। चैट जीपीटी और उसके जैसे अन्य उपायों मसलन गूगल के जेमिनी आदि को तैयार करने वालों ने इंसानी बातचीत से इनपुट लेकर बहुत महत्त्वपूर्ण काम किया है। वे मित्रतापूर्ण बातचीत के लहजे में ही जवाब भी देते हैं।

जाहिर सी बात है कि बातचीत का यही दोस्ताना तरीका इनके जवाबों को ‘आर्टिफिशल इंटेलिजेंस’ के रूप में स्वीकार करने देता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इन्हें तैयार करने वाले प्रोग्रामर जानबूझकर अपनी सॉफ्टवेयर सेवा को ‘सामाजिक रूप से तैयार’ करते हैं ताकि बातचीत की शैली उन्हें मानवीय स्वरूप प्रदान करे। यह 1970 के दशक के ‘पंच्ड कार्ड’ और फिर भारी-भरकम ‘की बोर्ड’ और माउस से होता हुआ टच स्क्रीन तक का सफर है।

इसके बाद कीबोर्ड और माउस की जगह वॉइस इनपुट और वाइस आउटपुट लेने लगे। अब हमारे सामने यह विषय आता है कि हमें एआई को किस दिशा में विकसित करना चाहिए: लिपिकीय या अफसरशाही श्रम को प्रतिस्थापित करने के लिए जैसा कि पिछले दशकों में कंप्यूटर ने किया था या फिर कारोबार के लिए वास्तविक मूल्यवर्द्धन किया जाना चाहिए?‌

जब एमेजॉन के संस्थापक और प्रमुख जेफ बेजोस से हाल ही में यह सवाल पूछा गया (वह एआई के लिए मशीन लर्निंग शब्द इस्तेमाल करते हैं) तो उनका जवाब था, ‘मैं कहूंगा कि हम मशीन लर्निंग से जो कुछ हासिल कर रहे हैं उसका बड़ा हिस्सा सतह के नीचे है। इसमें खोज परिणामों में सुधार, उपभोक्ताओं को उत्पादों की बेहतर अनुशंसा, इन्वेंटरी प्रबंधन के लिए बेहतर पूर्वानुमान आदि शामिल हैं।’ इसके कारण ही एमेजॉन लगातार तरक्की कर रहा है और उसके कर्मचारियों की संख्या भी घटी नहीं बल्कि बढ़ी है।

शायद हमारे सरकारी अधिकारियों को सामाजिक दृष्टि से सही एआई या मशीन लर्निंग उपकरण तैयार करने के लिए कारोबारों को उसी तरह की चेतावनी जारी करनी चाहिए जैसी अमेरिका के फेडरल ट्रेड कमीशन ने हाल ही में किया। उसने पूछा, ‘क्या आप अपने एआई उत्पादों की क्षमता को बढ़ाचढ़ाकर पेश कर रहे हैं?’

आयोग ने कारोबारों को चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसे दावे भ्रामक साबित होंगे अगर उनके साथ वैज्ञानिक प्रमाण न हों। कंपनियों को भी इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे एआई को उच्च उत्पाद लागत या श्रम संबंधी निर्णयों के लिए उचित ठहराया जाए। यह भी कहा जा रहा है कि उत्पादों को जनता के लिए पेश करने के पहले समुचित जोखिम आकलन की सावधानी बरती जाए।

(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं)

First Published - May 7, 2024 | 9:02 PM IST

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