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दुनिया और चुनाव के बारे में युवाओं की सोच

इस स्तंभ में हाल में देश के युवाओं पर कराए गए शोध के कुछ निष्कर्षों को साझा किया जाएगा जो इस तथ्य पर अधिक प्रकाश डाल सकते हैं।

Last Updated- May 02, 2024 | 10:52 PM IST
Assembly Elections 2024

पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं के कम पंजीकरण को लेकर चिंता जताई जा रही है और इस पर काफी टिप्पणियां भी की जा रही हैं। इसकी वजह इनमें छाई उदासीनता, निराशावाद की भावना और लॉजिस्टिक कठिनाइयां जैसे संभावित कारण हैं।

इस स्तंभ में हाल में देश के युवाओं पर कराए गए शोध के कुछ निष्कर्षों को साझा किया जाएगा जो इस तथ्य पर अधिक प्रकाश डाल सकते हैं।

‘ड्राइवर्स ऑफ डेस्टिनी’ नाम का यह अध्ययन 18-21 साल के युवाओं पर आधारित था जो अभी हाल में कार्यबल में प्रवेश कर चुके हैं या जल्द ही प्रवेश करेंगे और साथ ही यह अध्ययन उन 22-30 वर्ष के युवाओं पर भी किया गया जो जल्द ही निर्णायक उम्र वर्ग में प्रवेश करेंगे।

इस सर्वेक्षण में अहमदाबाद, औरंगाबाद, मुंबई, बेंगलूरु, चेन्नई, कोयंबत्तूर, हैदराबाद, कोलकाता, गुवाहाटी, जमशेदपुर, लखनऊ और दिल्ली के बड़े और छोटे शहरों के युवा शामिल हुए। इस सर्वेक्षण के ज्यादातर उत्तरदाताओं ने कुछ वर्षों तक कॉलेज की शिक्षा पाई है(इनमें पढ़ाई छोड़ने वाले और सभी ग्रेड वाले कॉलेज के छात्र भी शामिल हैं)।

इनमें से कई अपने परिवार में पहली बार कॉलेज गए और इसमें कोई हैरानी की बात भी नहीं है, खासतौर पर अगर भारत में शिक्षित आबादी का आंकड़ा देखा जाए। इनके बारे में विचार करते हुए (जो नमूना डिजाइन का आधार था) यह कहना उपयुक्त होगा कि वे सामूहिक या मध्यवर्गीय युवा भारत के अग्रणी पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं और वे भविष्य के भारत के केंद्र में रहने वाले हैं।

यह अध्ययन वास्तव में मतदान व्यवहार के बारे में नहीं बल्कि यह शोध उन युवकों और युवतियों की समग्र और जन-स्तरीय समझ के बारे में जानने से जुड़ा था जो कम से कम अगली आधी शताब्दी तक भारत को ताकत देंगे। ऐसे में उनकी आंतरिक दुनिया को समझना और उनके नजरिये से यह देखना जरूरी था कि वे अपने नजरिये से बाहर की जटिल दुनिया को कैसे समझते हैं।

मात्रात्मक सर्वेक्षणों ने इतने जटिल और बहुस्तरीय विषय पर सीमित जानकारी दी है। ऐसे में इस समूह की बात को सुनने-समझने के लिए शोध के एक तरीके एथनोग्राफी दृष्टिकोण को अपनाया गया जिसके तहत उनके माहौल में रहते हुए ही उनके विचार, समझ को समझने की कोशिश की जाती है।

मैंने इस शोध के लिए हामी भरी जिसका नेतृत्व आईआईटी मद्रास में मानव विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मातंगी कृष्णामूर्ति ने किया था और उनके साथ युवा शोधकर्ताओं की एक टीम थी।

सबसे पहले, इस समूह से जुड़ी जनसांख्यिकीय वास्तविकता पर नजर डालते हैं। उम्मीद के मुताबिक ही इनमें से अधिकांश युवाओं का संबंध मामूली आय वाले घरों से हैं और इनकी शिक्षा की गुणवत्ता भी बहुत अच्छी नहीं है, हालांकि इस बात को अक्सर स्वीकार भी नहीं किया जाता है।

इस सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले और उत्तर देने वाले 70 प्रतिशत शहरी और 58 फीसदी ग्रामीण क्षेत्र के युवा अभी छात्र हैं और केवल 5-8 प्रतिशत शहरी/ग्रामीण लोगों का कहना है कि वे बेरोजगार हैं (कैंटर के 2023 के टीजीआई डेटा के मुताबिक)। रोजगार की कमी से सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों में 22-30 साल के लोग हैं और इनमें से 53 फीसदी शहरी और 73 फीसदी ग्रामीण लोग विवाहित हैं और केवल 8-13 फीसदी अब भी छात्र हैं।

एथनोग्राफी अध्ययन के निष्कर्ष से यह अंदाजा मिलता है कि 18-21 साल के भारतीयों के लिए राजनीति कोई खास मायने नहीं रखती। इनमें से अधिकांश लोग राजनीति के बारे में नहीं पढ़ते हैं और न ही खुद को एक राजनीतिक आवाज के रूप में देखते हैं। वे ‘अपने वोट’ और ‘सरकार’ के बीच संबंध जोड़ने में भी सक्षम नहीं हैं।

दरअसल इसे वे एक ऐसी संस्था के रूप में देखते हैं जो काम करती है और उपयोगी है। इनमें से कई लोग एक सरकारी नौकरी चाहते हैं। वे राजनीतिक आंदोलनों में ज्यादा दांव नहीं लगाना चाहते हैं और इनकी मतदान में भी दिलचस्पी नहीं है। जाहिर है आज के कॉलेज अब राजनीति का शुरुआती अखाड़ा भी नहीं रह पाए हैं जहां पहले छात्र नेता उभरते थे और भविष्य के नेता के तौर पर अपने कौशल की आजमाइश करते थे।

हालांकि, वे सामाजिक मुद्दों से बहुत वाकिफ हैं और उन्हें चंद्रयान और इससे जुड़े अभियान, स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया, सामाजिक और सांप्रदायिक झड़पों, दुनिया के देशों के बीच संघर्षों आदि के बारे में जानकारी है और ऐसी ज्यादातर जानकारी उन्हें सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से मिली है।

वे राजनीति को सामाजिक मुद्दों और सामाजिक परिवर्तन के साधन के तौर पर देखते हैं लेकिन सामाजिक मुद्दों के साथ उनका गहरा जुड़ाव उनके व्यक्तिगत नजरिये और उनके अपने तात्कालिक संदर्भ के माध्यम से होता है जैसे कि ‘मैं दुनिया को बदलना चाहता हूं / मैं चाहता हूं कि दुनिया मेरे लिए एक बेहतर जगह बनने के लिए बदले।

‘राष्ट्र’ के बारे में उनका विचार अस्पष्ट रूप से वैचारिक और संस्थागत है जिसे मजबूत करने के लिए काम करने की आवश्यकता है। मुख्य रूप से यह एक सामाजिक, व्यक्तिगत, सांस्कृतिक इकाई है जो उनका घर के माफिक है और उनका मानना है कि यह निश्चित रूप से पूर्ण नहीं है। वे बाहर की दुनिया देखना चाहते हैं लेकिन उनका यह घर और धीरे-धीरे बेहतर होगा। वे दुनिया में भारत के बढ़ते महत्व से वाकिफ हैं और इसे एक बड़े सकारात्मक बदलाव के रूप में देखते हैं।

उनके कई सपने हैं और वे सभी विशिष्ट भौतिक चीजों से जुड़ी हैं जिसे वे अपने और अपने समुदाय के साथ ही जिन्हें वे अपना मानते हैं, उनके लिए भी चाहते हैं। लेकिन इसके अलावा वे अपनी जिंदगी में खुशी, आनंद, समूह का साथ, शांति-सुकून और पारिवारिक समर्थन भी चाहते हैं।

उनका मानना है कि माता-पिता सहायक होते हैं, लेकिन समर्थन देने की उनकी एक सीमित क्षमता है ऐसे में एक विश्वसनीय सहकर्मी समुदाय का समर्थन काफी महत्त्वपूर्ण होता है। हालांकि वे इसे हासिल करने में काफी संघर्ष करते हैं क्योंकि यह आसानी से उपलब्ध नहीं है। वे अपनी महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए स्वतंत्रता चाहते हैं लेकिन वे इसके साथ ही जीवन की स्थिरता और उसकी जड़ें जमीनी स्तर पर जोड़े रखना भी चाहते हैं।

उन्हें महानगर की स्वच्छंदता और गुमनामी से भी कोई गुरेज नहीं है लेकिन वे इसके साथ ही छोटे शहर वाले समुदाय की भावना भी चाहते हैं।

इसके दूसरे पहलू की तरफ देखें तो इस युवा वर्ग के समूह को अव्यवस्था, अनिश्चितता और अति उत्साहित होने के साथ ही चिंतित होने जैसे शब्दों के माध्यम से बेहतर तरीके से दर्शाया जा सकता है और वे दूर की सोचने के बजाय आज में जीने को तरजीह देते हैं।

कई तरह की जानकारी, सोशल मीडिया और तेजी से बदल रही दुनिया को देखकर वे काफी उत्साहित भी हैं और उन पर उनके आसपास के बदलावों का असर भी है और वे इन बदलावों का सामना करने को लेकर चिंतित भी हैं। उनका ध्यान किसी भी चीज पर बहुत कम समय के लिए केंद्रित होता है और वे लगातार मानसिक उथलपुथल से गुजर रहे होते हैं।

शायद इसकी वजह बड़े संस्थानों और उनके अनुमान के हिसाब से चलने वाले जीवन का अभाव हो सकता है। भारत की यह पीढ़ी पहले की किसी भी पीढ़ी की तुलना में इन चीजों से काफी वंचित है।

समाजशास्त्री वास्तव में साधन और संरचना की अवधारणाओं के संदर्भ में सोचते हैं जिन्हें क्रमशः अपने आसपास के माहौल को बदलने या अपने हिसाब से फैसले लेने की क्षमता के तौर पर परिभाषित किया जाता है और संरचना की अवधारणा का संबंध ऐसी स्थितियों और उन चीजों से है जो हमारे आसपास विकल्पों और मौके को सीमित करती हैं या उपलब्ध कार्यों की सीमा परिभाषित करती हैं।

युवा भारत माहौल में बदलाव लाने के लिहाज से उत्साहजनक रूप से मजबूत है और यह लगातार यह सोच रहा है कि अब आगे और क्या करना है। इनके पास कई योजनाएं हैं लेकिन दुर्भाग्य से इनका सामना कठिन संरचना से होता है।

कुछ इस विपरीत परिस्थिति में भी बने रहते हैं और जबकि कई अन्य हार मान लेते हैं और निराश हो जाते हैं वहीं कुछ इस संरचना को बेहतर बनाने के लिए काम करने का फैसला लेते हैं।

(लेखिका ग्राहकों से जुड़ी व्यापार रणनीति के क्षेत्र में कारोबार सलाहकार हैं)

First Published - May 2, 2024 | 10:42 PM IST

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