किसी आदर्श बाजार में वस्तुओं या सेवाओं की कीमतें मांग और आपूर्ति द्वारा निर्धारित की जाती हैं। मांग और आपूर्ति दोनों में बदलाव आता रहता है और इसके साथ ही कीमतें भी बदलती हैं। उपभोक्ताओं का वास्ता अक्सर इन बदलती परिस्थितियों से पड़ता रहता है।
उदाहरण के तौर पर छुट्टियों के मौसम में मांग बढ़ने से विमानों के किराये में हुई बढ़ोतरी को ही ले लीजिए। ठीक इसी तरह सप्ताह के दिनों की तुलना में सप्ताहांत में फिल्म देखने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं। इसी तरह आप बिजली की उपलब्धता और उसकी कीमतों के लिए भी ऐसी परिस्थितियों की कल्पना कर सकते हैं।
विशेषज्ञ इसे परिवर्तनशील खुदरा मूल्य निर्धारण या ‘टाइम-ऑफ-डे’ (टीओडी) शुल्क कहते हैं। टीओडी शुल्क को वैश्विक स्तर पर मांग के प्रबंधन उपकरण के रूप में मान्यता दी जाती है जिसके तहत उपभोक्ताओं को प्रोत्साहन दिया जाता है ताकि उनकी मांग को अधिक मांग वाले सीजन के समय से कम मांग वाले सीजन के दौरान स्थानांतरित किया जा सके और इससे तंत्र पर अधिक मांग के भार कारक में भी सुधार होता है।
दुनिया भर के कई देशों ने टीओडी शुल्क लागू किए हैं। इनमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन और स्वीडन जैसे देश शामिल हैं। जापान ने इसी तरह सीजन के अंतर के आधार पर ‘कूल बिज’ नाम की योजना की पेशकश की है।
गर्मियों के महीने के दौरान इस योजना के जरिये कारोबारों को एयर ज्यादा मांग वाले घंटे के दौरान कंडीशनिंग सेटिंग में कुछ बदलाव कर बिजली उपयोग को कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
भारत सरकार ने हाल ही में दो महत्त्वपूर्ण बदलाव करते हुए बिजली (उपभोक्ताओं के अधिकार) नियम, 2020 में संशोधन पारित कराया है। यह टीओडी शुल्क प्रणाली की शुरूआत करने और स्मार्ट मीटरिंग प्रावधानों को तर्कसंगत बनाने से संबंधित हैं।
टीओडी शुल्क, 1 अप्रैल, 2024 से 10 किलोवॉट और उससे अधिक की अधिकतम मांग वाले वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं पर लागू होगा और 1 अप्रैल, 2025 से कृषि उपभोक्ताओं को छोड़कर अन्य सभी उपभोक्ताओं पर लागू होगा।
राज्य विद्युत नियामक आयोगों द्वारा तय किए गए ‘सौर घंटे’ (एक दिन में आठ घंटे की अवधि) के दौरान शुल्क सामान्य से 10 से 20 प्रतिशत कम होगा, जबकि अधिक मांग के घंटों के दौरान शुल्क सामान्य से 10 से 20 प्रतिशत अधिक होगा। कई राज्य विद्युत नियामक आयोगों ने पहले ही बड़ी वाणिज्यिक और औद्योगिक श्रेणियों के लिए टीओडी व्यवस्था लागू कर दी है।
स्मार्ट मीटर लगाने के तुरंत बाद ही टीओडी टैरिफ को प्रभावी बनाया जाना है। ऐसे में उनकी सफलता, विशेष रूप से उपभोक्ता स्तर पर, स्मार्ट मीटरिंग को आक्रामक तरीके से लागू करने पर निर्भर है और उपयोगकर्ताओं को इस योजना का लाभ उठाने के लिए अपने उपभोग रुझान को इस योजना के अनुकूल बनाए जाने को लेकर जागरूक किया जा रहा है। स्मार्ट मीटर हर 15 मिनट में बिजली वितरण कंपनियों को खपत की जानकारी भेजता है जो टीओडी शुल्क की गणना के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।
वर्तमान में, सरकार की नई वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) के तहत 2026 तक 25 करोड़ के स्तर तक पहुंचने के लक्ष्य के साथ देश में 65 लाख से अधिक स्मार्ट मीटर लगाए गए हैं। सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-2026 तक पांच वर्षों के लिए 3.03 लाख करोड़ रुपये के खर्च के साथ आरडीएसएस की शुरुआत की थी।
इस खर्च का एक बड़ा हिस्सा स्मार्ट मीटरिंग के लिए निर्धारित किया गया है। टीओडी शुल्क की शुरुआत भारत में ऐसे समय में हो रही है जब अक्षय ऊर्जा में बदलाव चर्चा का विषय नहीं है। इस साल के मध्य तक अक्षय ऊर्जा की क्षमता 127 गीगावॉट तक पहुंच चुकी होगी।
वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2023 तक सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन लगभग तीन गुना बढ़कर 5.5 प्रतिशत से 14.3 प्रतिशत हो गया है। अच्छी खबर यह है कि इससे भारत को अपने जलवायु लक्ष्यों में मदद मिलती है। लेकिन बुरी खबर यह है कि हवा हर समय नहीं बहती है और रोजाना दिन के आखिर में सूरज डूबता है।
इसमें भंडारण मददगार हो सकता है, लेकिन इस समय बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण के लिए तकनीकी सुविधाओं के साथ-साथ वाणिज्यिक चुनौतियां हैं। इस प्रकार यह टीओडी मूल्य निर्धारण की प्रस्तावित शुरुआत को समयानुकूल और प्रासंगिक बनाता है।
ग्रिड संचालन का मूल नियम यह है कि बिजली की आपूर्ति हर समय मांग से मेल खानी चाहिए। कोई भी असंतुलन, तंत्र को विफलताओं की ओर ले जाता है, जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। लेकिन मौसम और समय पर निर्भर संसाधनों, जैसे पवन और सौर ऊर्जा, ग्रिड परिचालकों की आवश्यकता के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं।
यही वह जगह है जहां मांग पक्ष का समीकरण कारगर होता दिखता है। आपूर्ति पक्ष में बदलाव करने के बजाय, यदि उपभोक्ताओं को मूल्य आधारित सिग्नल दिए जा सकते हैं तब उन्हें आवश्यकताओं के अनुरूप अपनी मांग में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है और ग्रिड में संभावित बाधाएं कम की जा सकती हैं।
टीओडी से स्पष्ट रूप से उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव आने की उम्मीद है क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग, वॉशिंग मशीन और कूलिंग जैसे ऐप्लिकेशन के उपयोग को कम मांग वाले घंटे में स्थानांतरित किया जा सकता है। भारत में, अधिकांश उपभोक्ता इस बात को जानते हैं कि घरेलू उपकरणों में अधिकतम बिजली की खपत करने वालों में एयरकंडीशनर ही है।
उपभोक्ताओं के लिए कुछ चीजें नकारात्मक भी हो सकती हैं। इनका संबंध निम्नलिखित चीजों से हो सकता है:
बढ़ी जटिलता: टाइम ऑफ डे यानी बिजली की अधिक मांग वाले समय में मूल्य निर्धारण की अलग प्रक्रिया बिलिंग प्रणाली में अधिक जटिलता लाती है। उपभोक्ताओं को अलग-अलग समय अवधि के दौरान अपने बिजली के उपयोग पर निगाह रखने के साथ ही अपने उपयोग का प्रबंधन करने की आवश्यकता हो सकती है, जो अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो सकता है और इसमें काफी समय लग सकता है।
व्यवहार परिवर्तन: इसके लिए उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है, जैसे कि किसी विशेष समय में उपकरणों को चलाना या इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करना। सभी उपभोक्ता इस तरह के बदलावों के अनुरूप खुद को ढालने के लिए तैयार या सक्षम नहीं हो सकते हैं।
अधिक मांग वाले घंटे के दौरान बढ़ी लागत: यदि उपभोक्ता अपने उपयोग को कम मांग वाले समय में स्थानांतरित करने में असमर्थ हैं, तो उन्हें अधिक मांग वाले समय के दौरान अधिक कीमतों का भुगतान करना पड़ सकता है।
केंद्रीय बिजली मंत्री आर के सिंह ने कहा, ‘टीओडी शुल्क से अक्षय उर्जा के उत्पादन में दिख रहे उतार-चढ़ाव के प्रबंधन में सुधार होगा और इससे अक्षय उर्जा के अधिक उत्पादन वाले घंटे की अवधि के दौरान मांग में वृद्धि प्रोत्साहित की जा सकेगी और इस तरह बड़ी मात्रा में अक्षय ऊर्जा ग्रिड में बढ़ेगी।’
इस कदम से भारत को 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से अपनी ऊर्जा क्षमता का 65 प्रतिशत और 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने के लक्ष्य की दिशा में काम करने में मदद मिलने की उम्मीद है।
इन सबसे ऊपर, यह योजना प्रभावी तरीके से उन उपभोक्ताओं को पुरस्कृत करती है जो अलग-अलग समय की दरों के हिसाब से अपनी ऊर्जा खपत में बदलाव लाने के इच्छुक हैं। बहुत लंबे समय से ऐसे उपभोक्ता ऊर्जा से जुड़े आंदोलन में मूक भागीदार रहे हैं। अब वे अपनी इच्छा से इसमें भागीदार बन रहे हैं।
(लेखक बुनियादी ढांचा से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ हैं। वह द इन्फ्राविजन फाउंडेशन (टीआईएफ) के संस्थापक और प्रबंध न्यासी भी हैं। लेख में टीआईएफ में प्रतिष्ठित फेलो रसिका आठवले का भी योगदान)