कारोबारी सत्र के दौरान करीब दो महीने के उच्चस्तर तक पहुंचने और डॉलर के मुकाबले 81 के मनोवैज्ञानिक स्तर को तोड़ने के बाद सोमवार को रुपये ने अपनी बढ़त गंवा दी और डॉलर के मुकाबले कमजोर बंद हुआ। अपेक्षाकृत आकर्षक स्तर पर अमेरिकी मुद्रा के पहुंचने से आयातकों ने डॉलर की खरीद की, जिसका असर रुपये पर पड़ा। डीलरों ने यह जानकारी दी।
आरबीआई की तरफ से डॉलर की संभावित खरीद से भी रुपये ने बढ़त गंवा दी क्योंकि आरबीआई अपना विदेशी मुद्रा भंडार को पूरा करना चाहता है। करेंसी ट्रेडरों ने ये बातें कही।
सोमवार को देसी मुद्रा डॉलर के मुकाबले 81.39 पर बंद हुआ, जो शुक्रवार को 81.13 के स्तर पर रही थी। कारोबारी सत्र के दौरान रुपया 80.88 प्रति डॉलर तक मजबूत हुआ था और 1 दिसंबर के बाद पहली बार उसने 81 प्रति डॉलर के स्तर के पार निकलने में कामयाबी पाई थी। ब्लूबर्ग के आंकड़ों से यह जानकारी मिली।
शुरुआती कारोबार में देसी मुद्रा में डॉलर के मुकाबले काफी तेजी आई थी क्योंकि यूरो में तेजी के बाद अमेरिकी डॉलर इंडेक्स में काफी कमजोरी आई थी। यूरो में इस अनुमान में बढ़ोतरी हुई कि यूरोजोन में महंगाई से लड़ने की खातिर ब्याज दरों में तीव्र बढ़ोतरी होगी।
महंगाई में कमी, खुदरा बिक्री में नरमी और औद्योगिक उत्पादन में सुस्ती आदि समेत अमेरिका के कमजोर आर्थिक आंकड़ों ने इस राय को मजबूती दी है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में बढ़ोतरी की रफ्तार आगे घटाएगा। इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी डॉलर इंडेक्स घटकर सात महीने के निचले स्तर पर आ गया। सोमवार को 3.30 बजे यह इंडेक्स 101.69 पर था, जो इससे पहले 102 के स्तर पर रहा था।
अमेरिकी डॉलर की वैश्विक कमजोरी से हालांकि शुरुआती घंटों में रुपये को मजबूती मिली, लेकिन यह बढ़त कायम नहीं रह पाई क्योंकि आयातकों (खास तौर से तेल कंपनियां) ने डॉलर की खरीदारी की। डॉलर-रुपये के अपेक्षाकृत कमजोर प्रीमियम ने भी डॉलर की मांग बढ़ाई। यह प्रीमियम आयातकों के लिए हेजिंग लागत का प्रतिनिधित्व करता है।