राष्ट्रीय राजमार्ग 16 पर राजमंड्री (राजामहेंद्रवरम) से गुंटूर तक की यात्रा में भारी यातायात के बावजूद साढ़े तीन घंटे से अधिक समय नहीं लगता है। लेकिन 31 अक्टूबर को इस यात्रा को तय करने में एन चंद्रबाबू नायडू को साढ़े ग्यारह घंटे लग गए। वह ‘कौशल विकास घोटाले’ से जुड़े मामले में जमानत मिलने के बाद अपने घर गुंटूर जिले के उंडावल्ली लौट रहे थे।
जिस तेलुगू देशम पार्टी (TDP) का उन्होंने चार दशकों तक नेतृत्व किया है, उस पार्टी ने उनकी ‘रिहाई’ के मौके पर उनके ‘निर्दोष होने के साथ-साथ इसे सच्चाई की जीत’ बताया है।
हालांकि, तथ्य यह है कि नायडू को अभी जमानत इसलिए मिली है कि उनके वकीलों ने आग्रह किया था कि उन्हें तत्काल अपनी पसंद के अस्पताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराना जरूरी है। अदालत ने उन्हें 28 नवंबर को ऑपरेशन के बाद सरेंडर करने का निर्देश दिया है।
बुधवार की सुबह 4 बजे से ही लोग उनके स्वागत में सड़क के दोनों किनारों पर कतार में खड़े थे। राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव ने कहा, ‘यह समर्थन का एक सहज प्रदर्शन था।’
हालांकि आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ दल, युवजन श्रमिक रैयतु कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) की प्रतिक्रिया में कोई घबराहट नहीं दिखती है।
पार्टी की महासचिव सज्जला रामकृष्ण रेड्डी ने कहा, ‘कौशल घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री की भूमिका बहुत स्पष्ट है। नायडू के एक प्रमुख सहयोगी पी श्रीनिवास राव से पूछताछ के बाद घोटाले के बारे में और जानकारी सामने आएगी। सच्चाई अब कैसे सामने आए जब पूर्व मुख्यमंत्री को अंतरिम जमानत दी गई है? अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत से ही नायडू ने अपने फायदे के लिए कई संस्थाओं से छेड़छाड़ की।’
जेल में रहने के दौरान नायडू ने मिलने आने वाले पार्टी एक समूह को एक फैसले की जानकारी दी जिससे सभी हैरान हो गए। नायडू ने घोषणा की कि तेदेपा, तेलंगाना के आगामी विधानसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी।
इस पर राज्य के पार्टी नेतृत्व ने गुस्से में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अविश्वास जताया। तेदेपा से इस्तीफे की घोषणा करते हुए प्रदेश अध्यक्ष कासानी ज्ञानेश्वर मुदिराज ने संवाददाताओं से कहा, ‘मैं पार्टी के फैसले से बहुत दुखी हूं। यह किसी भी राजनीतिक दल के लिए अच्छा संकेत नहीं है। तेलंगाना में तेदेपा कुछ सीटों पर बेहद मजबूत है और तेदेपा प्रमुख नायडू के जेल जाने के बाद काफी सहानुभूति की लहर भी है। मैंने चुनाव लड़ने पर सकारात्मक जवाब पाने के लिए पार्टी कार्यालय में इंतजार किया। हालांकि, मुझे इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि नायडू के फैसले के पीछे का सटीक कारण क्या है।’
हालांकि इन कारणों को बताना इतना भी कठिन नहीं है। वैसे जेल से लौटने पर उनका स्वागत करने के लिए आंध्र प्रदेश में उमड़ी भीड़ कहानी के एक हिस्से को बयां करती है जबकि आंकड़े बाकी हिस्से की जानकारी देते हैं।
पिछले तेलंगाना विधानसभा चुनाव (2018) में तेदेपा ने कांग्रेस और वाम दलों के साथ महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था। तेदेपा को अपने दम पर केवल 3.5 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी मिली। उसने 13 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन केवल दो सीटें जीतने में सफल रही।
तेदेपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘लाभ के संतुलन (तेलंगाना में चुनाव लड़ने में) को देखें तो यहां चुनाव लड़ना हमारे लिए अनुकूल नहीं है।’
जिस राज्य के चुनावी मैदान में इसे अपेक्षाकृत जीत मिलने की संभावना बनती दिख रही है, तेदेपा ने उसी राज्य के विधानसभा चुनाव से बाहर रहने का फैसला कर लिया है जहां कभी उसका शासन हुआ करता था। पार्टी ने इसके बजाय अब उस राज्य में अपना ध्यान केंद्रित करने का फैसला कर लिया है जहां इसका जन्म हुआ था।
अफसरशाहों का कहना है कि आंध्र प्रदेश में जिस तरह से शासन चल रहा है उसमें काफी गड़बड़ियां हैं और यह येदुगुरी संदिंती जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली सरकार में बड़े पैमाने पर सत्ता विरोधी लहर का संकेत देते हैं।
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने जुलाई में लोकसभा को सूचित किया था कि 26 जुलाई, 2023 तक आंध्र प्रदेश का कुल विदेशी ऋण 11,817.17 करोड़ रुपये था। इस ऋण में एशियाई विकास बैंक, विश्व बैंक और न्यू डेवलपमेंट बैंक जैसी बहुपक्षीय एजेंसियों से उधार ली गई राशि शामिल है। कुछ ऋण से स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए फंडिंग की जानी है लेकिन यह वह राशि है जिसका भुगतान जरूर करना होगा।
आंध्र प्रदेश के मंत्री बुग्गना राजेंद्रनाथ रेड्डी इस तरह की चिंताओं को तवज्जो नहीं देते हुए कहते हैं, ‘महामारी से पैदा हुई चुनौतियों के बावजूद राज्य में कल्याणकारी योजनाओं को रोका नहीं गया है।’
हालांकि, राज्य के अफसरशाहों का तर्क है कि 12,000 करोड़ रुपये का राज्य ऋण चिंता का विषय होना चाहिए जैसा कि आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव एल वी सुब्रमण्यम ने भी इस बात पर जोर दिया है।
जगन मोहन रेड्डी सरकार के लिए प्रमुख आकर्षण, कम आय वाले समूहों के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण और कल्याणकारी योजनाओं से जुड़ा खर्च रहा है। फिर भी, हर कोई संतुष्ट नहीं है।
एक थिंक टैंक का संचालन करने वाले कांग्रेस के एक समर्थक ने कहा, ‘सरकारी कर्मचारियों, शिक्षकों, डॉक्टरों और शहरी वेतनभोगी मध्यम वर्ग को सरकार से बहुत कम राहत मिली है। इसके अलावा बुनियादी ढांचे और संचार जैसे अन्य क्षेत्रों में सुधार नहीं हुआ है। ये समूह बेहद असंतुष्ट हैं। जब आप ब्राह्मणों और वैश्यों जैसे इन जाति समूहों को जोड़ते हैं, जो संख्या के लिहाज से छोटे लेकिन प्रभावशाली हैं तब आपको और अधिक असंतोष का पता चलेगा।’
दूसरी तरफ, तेदेपा को प्राथमिक समर्थन कम्मा समुदाय के बीच मिला है जो एक धनी जमींदार जाति है और जिसने चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में तब प्रौद्योगिकी क्रांति का लाभ उठाया जब प्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था। यह समुदाय अब संभवतः विदेश में भारतीय प्रवासियों में सबसे बड़ा जाति समूह है।
वर्ष 1980 के दशक में तेदेपा के उभार के साथ ही कम्मा जाति ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले रेड्डी-ब्राह्मण वर्चस्व को चुनौती देने और खुद को एक राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करने का अवसर देखा।
हालांकि विश्लेषक नायडू का समर्थन करने में कम्मा समुदाय की एकता की सीमा को लेकर अनिश्चित हैं। लेकिन वे इस बात से सहमत जरूर हैं कि उनकी गिरफ्तारी ने उनके समर्थन आधार को मजबूत किया है।
आंध्र प्रदेश की 175 सदस्यीय विधानसभा के लिए छह महीने में चुनाव होने हैं। लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के एक सर्वेक्षण में 2019 के विधानसभा चुनाव का विश्लेषण किया जिसके मुताबिक वाईएसआरसीपी 151 सीटों और 49.9 प्रतिशत वोट के साथ निर्विवाद रूप से चुनावी लहर को पूरी तरह अपने नियंत्रण में करने में कामयाब रही। हालांकि तेदेपा भी सम्मानजनक तरीके से 39 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी हासिल करने में सफल रही जबकि उसे केवल 23 सीटें ही मिलीं।
भारतीय जनता पार्टी अब भी राज्य में एक छोटी भूमिका निभा रही है (2019 में, इसे महज 0.84 प्रतिशत वोट मिले और एक भी सीट पर जीत नहीं मिली) और कांग्रेस राज्य के वोटों के विभाजन में अपनी भूमिका के लिए बदनाम रही है। ऐसे में पूरी लड़ाई वाईएसआरसीपी बनाम तेदेपा है। इस बार तेदेपा ने राज्य की सत्ता में वापसी करने का निश्चय किया है।