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सियासी हलचल: लोकतंत्र और राजतंत्र के बीच फंसा नेपाल

मई में राजा ज्ञानेंद्र ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया था जो इस साल का दूसरा था।

Last Updated- November 24, 2023 | 10:19 PM IST
Nepal

नेपाल (Nepal) में क्या दोबारा राजशाही का दौर लौट सकता है? इस सवाल पर पोखरा के कारोबारी बुद्धिमान गुरुंग जोर देकर कहते हैं, ‘कभी नहीं। ऐसा कभी नहीं होगा।’

गैस बॉटलिंग कंपनी के प्रवर्तक गुरुंग के नेपाल में रियल एस्टेट के साथ-साथ कई अन्य तरह के कारोबार चल रहे हैं। उन्होंने कई साल तक नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर स्थानीय चुनाव लड़े हैं। नेपाली कांग्रेस वह प्रमुख पार्टी है, जो नेपाल में राजशाही का खुलकर विरोध करती रही है।

नेपाल में 2008 तक राजशाही रही। अंतिम राजा शाह वंश के ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह को संवैधानिक तरीके से गद्दी से हटाकर नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश बन गया। तब से लेकर अब तक आम लोगों में राज परिवार के प्रति यदा-कदा प्रेम उभर आता है। राज परिवार ने भी यह जाहिर किया है कि वह दोबारा सत्ता संभालने में सक्षम है।

इस साल फरवरी में राजा ज्ञानेंद्र पूर्वी नेपाल के झापा स्थित काकरभित्ता में विशाल समारोह में शामिल हुए थे। यह शानदार समारोह पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली के नेतृत्व वाली नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी- एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी से निकाले गए नेता दुर्गा परसाई ने आयोजित किया था।

परसाई कारोबारी हैं और कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हैं जो नेपाल के सरकारी बैंकों से पैसा लेकर नहीं लौटाने के मामले में कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं।

परसाई के कई रूप देखने को मिलेंगे और शायद अपने राजनीतिक करियर को उड़ान देने के लिए उन्होंने पूर्व राजा की आड़ में व्यापक अभियान शुरू किया है। लोगों को इस अभियान से जोड़ने के लिए उन्होंने धर्म, राष्ट्र, राष्ट्रीयता, संस्कृति और नागरिक बचाओ का नारा बुलंद किया है। कई बड़ी-बड़ी हस्तियां इस समारोह में आई थीं।

राजा ने भी अपने पूरे परिवार के साथ इसमें शिरकत की, लेकिन उन्होंने कोई भाषण नहीं दिया। इस मौके पर परसाई ने कहा कि हम कभी लोकतंत्र के हिमायती नहीं थे और ऐसा लोकतंत्र तो बिल्कुल नहीं चाहते, जो एक करोड़ युवा नेपालियों को खाड़ी देशों में भेजता है।

मई में राजा ज्ञानेंद्र ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया था जो इस साल का दूसरा था। योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ पीठ के प्रमुख हैं और इस पीठ के नेपाल की राजशाही से ऐतिहासिक संबंध रहे हैं।

मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ कई बार राजा से मिल चुके हैं। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (नैशनल लोकतांत्रिक पार्टी अथवा आरपीपी) को राज परिवार समर्थक दल माना जाता है। वर्ष 2013 से इस दल का प्रमुख राजनीतिक एजेंडा नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाना और यहां राजशाही की वापसी रहा है।

नेपाल में किसी को भी इसमें कोई शक नहीं है कि नैशनल लोकतांत्रिक पार्टी का मुख्य उद्देश्य राजशाही को पुन: स्थापित करना है। इस पार्टी के अध्यक्ष राजेंद्र लिंगडेन को एक संतुलित नेता माना जाता है। वह कहते हैं कि नैतिक मूल्यों, स्थायित्व और बेहतर व्यवस्था के लिए धार्मिक मूल्यों पर आधारित समाज के प्रति जनता का सहज समर्थन है।

स्थायित्व बहुत ही प्रभावशाली शब्द है। नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने कुछ सप्ताह पहले बिराटनगर की एक रैली में पूरे पांच साल तक देश के प्रधानमंत्री बने रहने की बात करते हुए चर्चाओं को हवा दे दी थी।

कुल 275 सदस्यों वाले सदन में सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस और कुछ अन्य छोटे दलों के साथ किसी तरह संतुलन बनाकर सरकार चला रहे प्रचंड की पार्टी के 32 सांसद हैं। इन दलों के बीच बहुत ही जटिल किस्म का समझौता है। इसके तहत नेपाली कांग्रेस के प्रमुख शेर बहादुर देउबा उम्मीद कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री के पांच साल के कार्यकाल में से ढाई साल वह भी इस पद पर रहेंगे।

सरकार में बने रहने के प्रति अनिश्चितता के बीच मंत्री अतिरिक्त समय देकर काम में जुटे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आने वाले चुनाव के लिए उनके पास पर्याप्त फंड है। यही वजह है कि नेपाल में घोटालों की इतनी भरमार हो गई है जो पहले कभी नहीं देखी गई।

यही नहीं, चीन से सोना तस्करी, अमेरिका में शरण पाने के लिए अफसरशाहों और मंत्रियों की मिलीभगत से भूटानी शरणार्थियों के रूप में नेपाली लोगों की तस्करी, हार और कुंठा का भाव जैसी स्थितियां उभर रही हैं, जो नेपाल में पहले कभी नहीं रहीं।

प्रधानमंत्री बनने के बाद दहल ने इस साल जून में भारत की यात्रा की थी। उस दौरान उन्होंने साथ के पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने के वादे के बजाय भारत से ठोस निवेश प्रस्ताव ले जाना उनकी प्राथमिकता है। उस समय भारत को 679 मेगावॉट लोअर अरुण और 480 मेगावॉट फुकत करनाली पनबिजली जैसी परियोजनाओं के विकास का ठेका मिला था।

लेकिन, चीन द्वारा निर्मित पोखरा और भैरहवा एयरपोर्ट को अभी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के रूप में मान्यता मिलना बाकी है, क्योंकि वहां भारतीय उड़ानों के संचालन के लिए भारत और नेपाल के बीच 2009 में हुए द्विपक्षीय विमानन समझौते पर फिर से काम करने की जरूरत है।

चीन से पैसे उधार लेकर आधुनिक सुविधाओं से लैस किए गए पोखरा हवाईअड्डे पर अभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का संचालन नहीं हो रहा है। इस साल के शुरू में जब से यह हवाईअड्डा चालू हुआ है, केवल चीन से चार उड़ानें यहां उतरी हैं। इनमें दो पर्यटकों की चार्टर्ड फ्लाइट थीं और दो भूकंप प्रभावितों के लिए राहत सामग्री लेकर आए विमान।

इस हवाईअड्डे के विकास के बदले नेपाल हर महीने अरबों रुपये ब्याज के रूप में चुका रहा है, लेकिन राजस्व की संभावना अभी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। हालांकि वह स्थिति अभी नहीं आई है जब रनवे पर बकरियां चरने लगेंगी।

इन तमाम विषमताओं के बीच नेपाल कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। जजारकोट भूकंप ने लोगों को बेघर और बेसहारा कर दिया, नेपाल के कई ग्रामीण इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है। यही नहीं, लोग रोजमर्रा रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

तमाम चुनौतियों और संकटों के बावजूद लोगों में जीवन जीने की अदम्य भावना कायम है। सामाजिक सद्भाव को खतरा बताते हुए जब सरकार ने हाल में टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाया तो देशभर में विरोध प्रदर्शनों की गूंज सुनाई दी।

देश में इंटरनेट ट्रैफिक पहले के मुकाबले बढ़ गया है, क्योंकि लोग सरकारी प्रतिबंध से पार पाने और संचार के माध्यमों का इस्तेमाल करने के लिए वीपीएन की तरफ मुड़ गए। ऐसा हो भी क्यों नहीं, देश में सोशल मीडिया ने नई प्रतिभाओं को सामने लाने और कई सेलेब्रेटी बनाने में बहुत मदद की है।

समझा जाता है कि नेपाल में लगभग 22 लाख लोग टिकटॉक का इस्तेमाल करते हैं। इनमें 18 से 35 साल की उम्र के बीच के लोगों की संख्या 80 फीसदी है। देश में इसी आयु वर्ग की जनसंख्या में गुस्सा और अजीब बेचैनी का भाव है। राजनीतिक दलों की निगाहें इसी वर्ग पर है। उनकी भी, जो राजशाही समर्थक हैं।

First Published - November 24, 2023 | 10:19 PM IST

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