इनका इस्तेमाल ईएसजी मानकों में सुधार तथा संवेदनशील स्थितियों के विश्लेषण में किया जाना चाहिए तथा पर्यवेक्षण और नियमन के लिए उपाय तैयार किए जाने चाहिए। बता रहे हैं अजय त्यागी और रचना वैद
मौजूदा वर्ष बाजार पूंजीकरण के आधार पर देश की 1,000 सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा बिजनेस रिस्पॉन्सिबिलिटी ऐंड सस्टेनबिलिटी रिपोर्ट (बीआरएसआर) के तहत अनिवार्य रिपोर्टिंग का पहला वर्ष है। यह भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा 2021 में लिया गया एक अहम निर्णय है जो कंपनियों द्वारा सतत रिपोर्टिंग के अंतरराष्ट्रीय विचार के अनुरूप ही था।
बीआरएसआर ढांचा जवाबदेह कारोबारी आचरण पर राष्ट्रीय दिशानिर्देश (एनजीआरबीसी) के नौ सिद्धांतों पर आधारित है। यह एक व्यापक अवधारणा है जिसमें विभिन्न पर्यावरण संबंधी, सामाजिक और शासन संबंधी (ईएसजी) विशेषताएं शामिल होती हैं और इन्हें विस्तृत रिपोर्टिंग फॉर्मेट में पेश किया जाता है।
अहम टिकाऊ मानकों पर ध्यान केंद्रित तथा तमाम क्षेत्रों में तुलनाओं के नजरिये से सेबी ने इस वर्ष ‘बीआरएसआर कोर’ की अवधारणा पेश की। इसके तहत वित्त वर्ष 2023-24 के आरंभ से 150 सूचीबद्ध कंपनियों को बीआरएसआर कोर रिपोर्ट फाइल करनी होगी जिसमें नौ ईएसजी विशेषताओं से संबंधित प्रमुख प्रदर्शन संकेतक शामिल होंगे। एक स्वतंत्र आश्वासन प्रदाता द्वारा अपेक्षाकृत सटीक आंकड़ा मुहैया कराया जाएगा।
चूंकि यह अनिवार्य बीआरएसआर फाइलिंग का पहला वर्ष है और एक तथ्य यह भी है कि वैश्विक स्थिरता रिपोर्टिंग अवधारणाएं अभी भी विकसित हो रही हैं, तथा कई सबक सीखे जाने बाकी हैं, ऐसे में सेबी के लिए बेहतर यही होगा कि वह कंपनियों द्वारा की गई फाइलिंग की गुणवत्ता का एक व्यापक और वस्तुनिष्ठ अध्ययन कराए। अध्ययन में इस बात का आकलन किया जाना चाहिए कि क्या कंपनियों द्वारा किए गए खुलासे वस्तुनिष्ठ, परिमाण आकलन योग्य और यथासंभव तुलनायोग्य हैं। उसे खुद को इस बात से भी संतुष्ट करना होगा कि ऐसी रिपोर्टिंग केवल खानापूर्ति बनकर न रह जाए।
इस विषय पर सेबी ने जो निर्देशन पत्र तैयार किया है वह वैश्विक रिपोर्टिंग पहल (जीआरआई), जलवायु संबंधित वित्तीय प्रकटीकरण (टीसीएफडी) और स्थिरता लेखा मानक बोर्ड (एसएएसबी) मानकों जैसे प्रचलित अंतरराष्ट्रीय ढांचे के साथ बीआरएसआर रिपोर्टिंग ढांचे की पारस्परिकता मुहैया कराती है। यह कारोबारी सुगमता को बढ़ावा देने के लिए अहम है। कुछ सूचीबद्ध भारतीय कंपनियां भी अलग-अलग वजहों से इन प्रारूपों को अपनाती हैं, इसमें विदेशी
निवेशकों की आवश्यकता संबंधी अनुपालन शामिल है। अध्ययन में यह विश्लेषण किया जाना चाहए कि व्यवहार में परस्पर संचालन कारगर है या नहीं।
इस वर्ष जून में अंतरराष्ट्रीय स्थिरता मानक बोर्ड (आईएसएसबी) ने प्रकटीकरण मानक जारी किए। सामान्य स्थिरता के लिए आईएफआरएस एस1 और जलवायु परिवर्तन पर आईएफआरएस एस2 मानक जारी किए गए। इन्हें वैश्विक फ्रेमवर्क होना था। उद्योग जगत तथा अन्य अंशधारकों के साथ मशविरा करके सेबी को यह देखना चाहिए कि भारतीय परिदृश्य में इन्हें किस हद तक अपनाया जा सकता है।
बीआरएसआर नीति में कुछ चीजों की कमी है। एक कमी तो यही है कि यह क्षेत्र विशेष के लिए नहीं है। जबकि सेक्टर को लेकर संशयवादी नजरिया प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सुविधाजनक था परंतु केंद्रित प्रकटीकरण और सार्थक तुलनाओं के नजरिये से देखा जाए तो बीआरएसआर रिपोर्टिंग आवश्यकताओं और प्रारूपों को सेक्टर विशिष्ट बनाने की आवश्यकता है।
उदाहरण के लिए स्टील, सीमेंट और रसायन जैसे प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के लिए बीआरएसआर फाइलिंग में एकदम अलग मानकों की आवश्यकता की जरूरत होगी और बैंक और आईटी सॉफ्टवेयर के लिए एकदम अलग। सेबी को अभी तीसरे पक्ष के आश्वस्ति प्रदाताओं के लिए दिशानिर्देश तैयार करने हैं।
तीसरे पक्ष के विश्वसनीय आश्वासन के साथ सेक्टर विशिष्ट बीआरएसआर कोर रिपोर्टिंग एक महत्त्वपूर्ण और विश्वसनीय तथा आसानी से उपलब्ध डेटा स्रोत मुहैया कराएगी। इसका उपयोग उद्योग, शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और सरकारी अधिकारियों द्वारा विश्लेषण के लिए सार्थक रूप से किया जा सकता है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियों के बीच ईएसजी प्रदर्शन की तुलना करना भी शामिल है।
अलग-अलग एनजआरबीसी सिद्धांतों के अधीन क्षेत्र विशेष के बीआरएसआर आंकड़ों की तुलना उन क्षेत्रों के मौजूदा वैश्विक मानकों से की जा सकती है। इससे घरेलू उद्योग को बेहतरीन वैश्विक व्यवहार को अपनाने की प्रेरणा मिलेगी। यह आंकड़ा विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और दायित्वों को निभाने में देश की प्रगति को भी दर्शाएगा।
उदाहरण के लिए यूएनएफसीसी के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान प्रतिबद्धता के तहत भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 2030 तक 2005 के स्तर से 45 फीसदी कम करने पर सहमत हुआ। उसने 2070 तक विशुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया है।
इन आंकड़ों को क्षेत्रवार ढंग से अलग-अलग करना होगा। साथ ही इन्हें हासिल करने के लिए एक खाका तैयार करना होगा। यह भी देखना होगा कि यह प्रगति समय पर पूरी होती है या नहीं। इस्पात क्षेत्र का ही उदाहरण लें तो वह काफी कार्बन उत्सर्जन करता है और देश के कुल कार्बन उत्सर्जन में उसका योगदान 12 फीसदी है। स्टील क्षेत्र के लिए एनडीसी की प्रतिबद्धता देखें तो देश के स्टील उद्योग का औसत कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन घनत्व 2005 के 3.1 टन कार्बन डॉइऑक्साइड प्रति टन से घटकर 2030 तक 2.4 टन रह जाने का अनुमान था।
सेल, टाटा स्टील, जेएसडब्ल्यू और जेएसपीएल की कार्बन डाइऑक्साइड गहनता 2022-23 में क्रमश: 2.5, 2.38, 2.36 और 2.60 थी। औसतन भारतीय स्टील उद्योग की कार्बन डाइऑक्साइड घनत्व 2.55 टन कार्बन डाइऑक्साइड प्रति टन रहा जबकि वैश्विक औसत 1.85 टन है। हालांकि भारतीय औसत व्यापक तौर पर एनडीसी के खाके से मेल खाता है परंतु यह वैश्विक औसत से 38 फीसदी अधिक है।
कार्बन फुटप्रिंट की निगरानी केवल एक उदाहरण है। कंपनी द्वारा किसी एक स्रोत से जल निकासी की मात्रा का खुलासा एक और महत्त्वपूर्ण जानकारी है जिसकी बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए क्योंकि हमारे देश में तेजी से पानी की कमी हो रही है।
उपरोक्त जहां बीआरएसआर के ‘पर्यावरण’ स्तंभ के अंतर्गत कुछ उदाहरण हैं वहीं कुछ अन्य ऐसे क्षेत्र हैं जो सामाजिक और शासन संबंधी स्तंभ के अधीन हैं। एनजीआरबीसी के सिद्धांतों में से एक मानवाधिकार से संबंधित है।
दूसरा, व्यवसाय में ईमानदारी, पारदर्शिता, नैतिकता और जवाबदेही से ताल्लुक रखता है जिसमें कंपनी की भ्रष्टाचार विरोधी नीति का प्रकटीकरण शामिल है। भारत भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र समझौते का सदस्य है और उसके प्रावधानों को लागू करने के लिए बाध्य है। फिर कंपनी द्वारा आरंभ की गई परियोजनाओं के सामाजिक प्रभाव आकलन और पुनर्वास एवं पुन: स्थापन विवरण के बारे में जानकारी का प्रकटीकरण करने का भी एक सिद्धांत है।
लब्बोलुआब यह है कि सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा बीआरएसआर फाइलिंग केवल प्रकटीकरण नहीं है। वे इन कंपनियों की अहम जानकारी सार्वजनिक करते हैं जिससे विभिन्न ईएसजी मानकों में लाभदायक सुधार होना चाहिए, बेहतरीन वैश्विक व्यवहार अपनाया जाना चाहिए, संवेदनशीलता का विश्लेषण किया जाना चाहिए। इसके साथ ही पर्यवेक्षण और निगरानी के लिए अहम उपाय विकसित करें और देश को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और दायित्वों के अनुपालन की निगरानी में मदद करें।
(लेखक ओआरएफ के विशिष्ट फेलो और सेबी के पूर्व चेयरमैन और लेखिका एनआईएसएम में प्रोफेसर हैं)
First Published - September 27, 2023 | 9:14 PM IST
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