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Kota: हाई रैंक के दबाव में मौत को क्यों गले लगा रहे कोटा कोचिंग के छात्र?

कोटा में इस साल अब तक 23 छात्रों ने अपनी जिंदगी खत्म कर दी। यह एक साल का सर्वाधिक आंकड़ा है।

Last Updated- October 02, 2023 | 10:58 PM IST
Suicide- आत्महत्या

कोटा में छात्रों की लगातार हो रही मौत के बीच मनोवैज्ञानिकों की मांग बढ़ गई है। क्या छात्रों को मनोवैज्ञानिक दबाव से उबारने का है कोई तरीका। बता रहे हैं ऋत्विक शर्मा…

कोटा के प्रमुख कोचिंग संस्थान एलेन अकेडमी के मुख्य भवन में लगे बड़े स्क्रीन पर असहाय चार्ली चैपलिन को मशीन द्वारा खाना खिलाने की असफल कोशिश की जा रही थी। वास्तव में इस दृश्य साफ पता चल रहा था कि आधुनिक जमाने में मशीनीकरण लोगों पर कितना हावी हो गया है।

गमगीन माहौल में इस तरह की राहत उन हजारों छात्रों के चेहरे से गायब रहती हैं जो भारत की दो सबसे कठिन परीक्षाओं- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- संयुक्त प्रवेश परीक्षा (IIT-JEE) और प्री-मेडिकल राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) की तैयारी करते हैं। हर साल 2 लाख से अधिक अभ्यर्थी राजस्थान की राजधानी जयपुर से 240 किलोमीटर दूर दक्षिणी शहर कोटा आते हैं। ये छात्र मुख्यतः 11वीं और 12वीं में पढ़ाई करने वाले रहते हैं, जो हर साल इस शहर के लिए 5 हजार करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं।

शहर के साथ-साथ वे प्रेशर कूकर में भी प्रवेश करते हैं। छात्रों की दिनचर्या काफी व्यस्त है और इसलिए वे जबरदस्त दबाव झेलते हैं। इससे उबरने के लिए कुछ संस्थानों ने मनोचिकित्सकों को तैनात किया है। कुछ ने इसे आत्मसात कर लिया है और कुछ इससे पार नहीं पा रहे हैं। ऐसे में छात्रों की आत्महत्या आम बात हो गई है।

कोटा में इस साल अब तक 23 छात्रों ने किया सूसाइड

कोटा में इस साल अब तक 23 छात्रों ने अपनी जिंदगी खत्म कर दी। यह एक साल का सर्वाधिक आंकड़ा है। कोटा के सबसे बड़े कोचिंग संस्थान एलेन में 1.25 लाख से भी अधिक छात्र पढ़ाई करते हैं। यहां की कक्षाएं संकल्प और सबल जैसे नौ खंडों में बंटी हुई हैं। ऐसे में छात्रों की दिनचर्या काफी व्यस्त हो जाती है और उन्हें पढ़ाई करने के लिए काफी जल्दी उठना पड़ता है।

हजारों शिक्षक पांच-पांच घंटे से अधिक के दो बैच को पढ़ाते हैं। पहला बैच सुबह में चलता है और दूसरा बैच शाम के वक्त। कक्षाओं के बीच में एक हॉल में छात्रों को स्वाध्याय करते हुए आसानी से देखा जा सकता है।

हर कोई दिनचर्या में बंधा है

ओडिशा के ब्रह्मपुर के 12वीं कक्षा के छात्र कृष्णा प्रसाद पात्र का कहना है कि उनके अभिभावकों ने कभी उन पर किसी तरह का दबाव नहीं डाला। कंप्यूटर इंजीनियरिंग में उनकी रुचि है और वह आईआईटी में दाखिला लेने के लिए काफी उत्सुक हैं। वह कहते हैं कि उनकी मां कुछ महीनों तक उनके साथ रहीं क्योंकि वह अवसाद की दवाइयां लेते हैं। झारखंड के धनबाद के रहने वाले उनके सहपाठी रोहित राज ने चार साल पहले जब कोटा फैक्टरी देखी तो उन्होंने इस शहर में आने का सपना देखा।

कोटा में पढ़ाई के अनुभव के बारे में पूछे जाने पर पात्र ने कोचिंग संस्थानों के ‘रैंकर्स’ के बारे में बताया जो लगातार अच्छे अंक हासिल करते हैं और ‘बैंकर्स’ के बारे में बताया जो हमेशा संघर्षरत रहते हैं। सर्वश्रेष्ठ शिक्षक भी स्टार बैचों पर ज्यादा ध्यान देते हैं मगर छात्रों को परामर्शदाताओं के पास जाने की और प्रशिक्षक बदलने की मांग करने की अनुमति है। वह कहते हैं कि मेरे लिए यह प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा करता है मगर कई लोगों का मानना है कि रैंकरों को कई
विशेषाधिकार मिले हैं।

ऐसी स्थिति में छात्रों के बीच आमतौर पर दोस्ती से ज्यादा दुश्मनी हो जाती है क्योंकि सभी एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में लगे रहते हैं।

वे आत्महत्याओं को कैसे देखते हैं?

कैंपस में मनोचिकित्सक से परामर्श लेने वाले राज का कहना है, ‘यह मुख्य रूप से अभिभावकों (माता-पिता) द्वारा दिए जाने वाले दबाव का परिणाम है, लेकिन कभी-कभी बच्चे भी विफल हो जाने पर खुद को अपराधी मानने लगते हैं। हालांकि, राज का कहना है कि उनके माता-पिता ने उन पर कभी किसी तरह का दबाव नहीं डाला है। मनोचिकित्सक ने उन्हें पर्याप्त नींद लेने के बारे में बताया, जो पहले साल में वह नहीं ले पा रहे थे।’

हरियाणा के फरीदाबाद की प्राची राजपूत का कहना है कि वह हर दिन चार से छह घंटे ही सो पाती हैं। वह सप्ताह में एक बार नृत्य भी करती हैं। छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं के बाद बीते दो महीनों से संस्थानों ने हफ्ते में एक बार कक्षाओं के बाद फन जोन की शुरुआत की है।

छात्र विफलता के डर से पंगु हो गए हैं?

राजपूत कहती हैं, ‘आंतरिक परीक्षाओं में जब हमारे नंबर कम आते हैं तो माता-पिता चिंतित हो जाते हैं। लेकिन, अब मुझमें रेलवे या पुलिस की नौकरियों वाली परीक्षा पास करने का पूरा आत्मविश्वास आ गया है।’

आत्महत्याओं ने राज्य सरकार और अन्य को झकझोर कर रख दिया है। छात्रावासों में स्प्रिंग वाले पंखे लगाए जा रहे हैं ताकि उसके जरिये कोई आत्महत्या की कोशिश न करने पाए। अगस्त महीने में जिला प्रशासन ने कोचिंग संस्थानों द्वारा किसी तरह की परीक्षा लेने पर दो महीने की रोक लगा दी थी। स्थानीय छात्रावास संगठनों ने छात्रों का तनाव कम करने के लिए हाल में रॉक बैंड के जरिये एक मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन किया।

एलेन के एक प्रवक्ता ने कहा कि अकेडमी छात्रों की मनोचिकित्सा के लिए अपनी टीम के पेशेवरों की संख्या बढ़ाकर 62 करने जा रही है। इसमें 32 मनोचिकित्सक एवं काउंसलर शामिल होंगे, जिसे बढ़ाकर इस महीने के अंत तक 150 करने की योजना है। इसकी स्टूडेंट हेल्पलाइन पर रोजाना कम से कम 100 कॉल प्राप्त होती हैं। प्रवक्ता ने कहा, ‘हमारे अनुभव के आधार पर छात्रों का आत्महत्या की मुख्य वजह संबंधों की समस्या, पारिवारिक विवाद, पढ़ाई का तनाव या मानसिक विकार हो सकती है।’

कोटा के कोचिंग परिवेश में वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद से बड़ी-बड़ी एडटेक कंपनियों ने भी दस्तक दी है।

फिजिक्स वाला (पीडब्ल्यू) का कहना है कि पेशेवर काउंसिलिंग और साथियों के सहायता कार्यक्रम के अलावा हम अपने शिक्षकों को भी सतर्क रहने और ऐसे किसी विकार के संकेत दिखने पर सूचित करने के लिए आगाह करते हैं। पीडब्ल्यू ऑफलाइन के मुख्य कार्याधिकारी अंकित गुप्ता ने कहा, ‘हम यह सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाते हैं कि छात्रों को परीक्षा के दौरान आसान व्यवस्था मिले। इनमें स्पष्ट निर्देश, आसान प्रश्न पत्र और अवसाद वाले किसी भी कारक को कम करना शामिल है।’

कोटा की कहानी तब शुरू हुई जब मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसी बीमारी से जूझ रहे एक केमिकल इंजीनियर वीके बंसल ने चार दशक पहले कुछ छात्रों को ट्यूशन देना शुरू किया। साल 1991 में उन्होंने बंसल क्लासेज की शुरुआत की।

बंसल 2021 में गुजर गए मगर उन्होंने जिसकी शुरुआत की थी वह एक उद्योग के रूप में विकसित होने लगा और उससे कोटा की पहचान बन गई। हालांकि, विडंबना है कि बड़े संस्थानों के आने के बाद बंसल क्लासेज का वह प्रभाव नहीं रहा। इसके अधिकारियों का कहना है कि अन्य संस्थानों की जगह बंसल क्लासेज में योग्य उम्मीदवारों को ही प्रवेश मिलता है।

बंसल के प्रवक्ता का कहना है, ‘पहले कोचिंग संस्थान प्रवेश परीक्षाओं के आधार पर ही छात्रों का दाखिला लेते थे मगर अब वे व्यावसायिक और व्यवसाय केंद्रित हो गए हैं।’ उन्होंने कहा कि आत्महत्या और मानसिक तनाव के कारणों में सहपाठियों के साथ तुलना, व्यस्त दिनचर्या के अलावा पारिवारिक और सामाजिक दबाव शामिल हैं।

बंसल क्लासेज ने इसके उपाय के तौर पर सुझाव दिया है कि जेईई और नीट के पाठ्यक्रम से कम महत्त्वपूर्ण चीजों को अलग कर दिया जाए, छात्रों को साप्ताहिक अवकाश दिया जाए, छात्रावसों में उपस्थिति बेहतर निगरानी की जाए, छात्रों के मनोभाव का विश्लेषण किया जाए और ऐसे पूर्व छात्रों के बारे में बताया जाए जो जेईई / नीट तो नहीं निकाल पाए मगर जीवन में बहुत सफल रहे।

कोटा पुलिस ने 11 कर्मियों की एक टीम बनाई है, जो हैंगआउट में छात्रों के साथ जुड़ती है और उन्हें जागरूक करती है। इस टीम के प्रमुख अपर पुलिस अधीक्षक चंद्रशील कुमार कहते हैं कि वे नियमित रूप से छात्रों और उनके अभिभावकों के साथ बातचीत करते हैं। अधिकतर छात्र मध्यम आय वर्ग से ताल्लुक रखते हैं जबकि कुछ छात्र निम्न आय वर्ग से आते हैं। पिछले दो महीनों में कुमार की टीम को 315 शिकायतें मिली हैं। कुमार कहते हैं, ‘महज 25 से 30 शिकायतें तनाव या अवसाद से जुड़ी थीं और 5-6 शिकायतें गंभीर थीं।’

आत्महत्या करने वालों में जेईई से अधिक नीट के अभ्यर्थी हैं। यह करो या मरो की स्थिति है। छात्रों के माता-पिता उन पर दबाव डालते हैं कि या तो आप सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लें जहां की फीस निजी संस्थानों की तुलना में काफी कम है या फिर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं। कुछ माता-पिता अपने बच्चों पर दबाव कम करने के लिए उनके साथ रहना पसंद करते हैं।

मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम की कंप्यूटर शिक्षिका रीना तोमर एक साल पहले अपने बेटे के साथ कोटा चली गईं। तब से दोनों मां-बेटा दो कमरे के एक फ्लैट में रहते हैं। तोमर कहती हैं, ‘मेरा बेटा जब स्कूल नहीं जाता है तो घर में ही रहता है। यहां तक कि अगर उसे एक कलम की भी जरूरत होती है तो मैं बाहर जाकर लाती हूं। बच्चों को तैयारी के लिए पूरा समय चाहिए।’

ऐसे में यह देखना चाहिए कि इससे उनके बेटे पर पढ़ने का कहीं अधिक दबाव तो नहीं बन रहा है।

First Published - October 2, 2023 | 10:58 PM IST

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