भारत के विमानन बाजार की सेहत फिलहाल अच्छी नहीं है और कंपनियां दिवालिया हो रही हैं। मगर एयर इंडिया (Air India) के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक कैंपबेल विल्सन ने उम्मीद जताई कि बाजार के परिपक्व होने पर स्थिति सुधर जाएगी।
कैंपबेल ने निवेदिता मुखर्जी और दीपक पटेल के साथ बातचीत में स्थानीय रखरखाव इकाइयों की जरूरत, हवाई किराये में कमी की संभावना और पायलटों की किल्लत दूर करने के लिए कंपनी की योजना समेत तमाम मसलों पर चर्चा की। मुख्य अंश:
-एयर इंडिया के आर्थिक रूप से कब तक सुदृढ़ होने की उम्मीद है?
यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। अभी हम अधिक कुशल बनाने, अपना राजस्व बढ़ाने और लागत कम करने पर ध्यान दे रहे हैं। इन दोनों के बीच का अंतर तय करता है कि मुनाफा कितना रहेगा। दोनों मोर्चे पर कदम उठाए जा रहे हैं और परिणाम हासिल करने में वक्त लगेगा। एयर इंडिया लंबे समय से मुनाफा नहीं कमा रही थी। इसे रातोरात नहीं बदला जा सकता।
-दुनिया में सबसे अच्छी विमानन कंपनी कौन सी है? क्या सिंगापुर एयरलाइंस सबसे अच्छी कंपनियों में है?
मुझे ऐसा लगता है। मैंने इसे यहां तक पहुंचाने में 26 साल लगाए और जाहिर तौर पर कई अन्य लोगों ने भी इसमें मदद की है। कई अच्छी विमानन कंपनियां हैं और कई कंपनियां अलग-अलग क्षेत्रों में श्रेष्ठ हैं। निरंतरता मेरे लिए अहम है। आप कोई वादा करें और लोग उस पर भरोसा करें तथा आप उस पर खरे उतरते हैं, यही सबसे अच्छी बात होती है।
-विमानन कंपनी के संचालन में टाटा की कितनी भागीदारी है?
रोजमर्रा का कामकाज प्रबंधन देखता है। लेकिन वह बोर्ड के कहने पर चलता है, जिसमें चंद्रा (टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन) भी शामिल हैं। हम टाटा की अन्य कंपनियों के साथ तकरीबन रोजाना संपर्क में रहते हैं चाहे चालक दल के रहने के लिए आईएचसीएल हो, खानपान के लिए ताजसैट्स हो या ग्राहक इंटरफेस डिजाइन के लिए टाटा एलेक्सी हो। कुछ कलपुर्जों के लिए टाटा टेक्नोलॉजी के साथ ही टीसीएस और टाटा संस के साथ भी हमारा गहरा नाता है।
-क्या अपनी एमआरओ इकाई शुरू करने की कोई योजना है?
फिलहाल हम ज्यादातर रखरखाव एआईईएसएल से कराते हैं। यह हमारे विनिवेश समझौते का हिस्सा है, जिसमें कुछ वर्षों तक इस संबंध को औपचारिक तौर पर बनाए रखने की बात कही गई है। लाइन मेंटेनेंस के लिए हम अपनी चारों विमानन कंपनियों के लिए अपनी क्षमता बढ़ा रहे हैं। व्यापक रखरखाव के लिए विकल्प तलाशे जा रहे हैं। हम यह भारत में ही करना चाहते हैं क्योंकि यह किफायती भी रहेगा।
-देश में कई विमानन कंपनियां दिवालिया हो रही हैं। क्या आपको लगता है कि भारतीय विमानन बाजार में दो कंपनियों का वर्चस्व हो जाएगा?
फिलहाल बाजार में दो कंपनियों का साफ वर्चस्व नहीं है। मगर कई कंपनियों के बंद होने से कहा जा सकता है कि बाजार की स्थिति बेहतर नहीं है। इससे निवेशकों और ग्राहकों को नुकसान होता है और मुझे लगता है कि यह बुनियादी ढांचे के लिए भी अच्छा नहीं है क्योंकि विमानन कंपनियों को देखते हुए हवाई अड्डे बनना शुरू होते हैं और फिर कंपनियां गायब हो जाती हैं। ऐसा दुनिया के कई इलाकों में देखा गया है। समय के साथ छोटी कंपनियां अधिक पूंजी वाली विमानन कंपनियों में मिल जाती हैं। यह विमानन तंत्र के लिए अच्छा भी है।
एयर इंडिया का निजीकरण इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि यह कंपनी मुनाफा नहीं कमा रही थी। जब बड़ी कंपनियां मुनाफा नहीं कमाती हैं तो बाजार में कई छोटी विमानन कंपनियां आ जाती हैं, जिनके पास ज्यादा पूंजी नहीं होती है।
-तो आप भारतीय विमानन बाजार में दो कंपनियों का वर्चस्व होता देख रहे हैं?
नहीं, भारत मुझे उत्तर अमेरिका और यूरोप के बाजारों की तरह लगता है, जहां दो कंपनियों का वर्चस्व नहीं है।
-क्या आपको लगता है कि बंद पड़ी कुछ विमानन कंपनियां फिर से शुरू हो जाएंगी?
यह मैं नहीं कह सकता। फिलहाल ऐसा नहीं दिखता। समय के साथ अगर विमानन बाजार लाभप्रद बनता है तो इसमें और लोग शामिल होंगे।
-विस्तारा के एयर इंडिया के साथ विलय के बाद सिंगापुर एयरलाइंस की इसमें हिस्सेदारी कम हो जाएगी। एकीकृत इकाई में सिंगापुर एयरलाइंस की भूमिका क्या होगी?
उसकी भूमिका इक्विटी निवेशक यानी रणनीतिक भागीदार की होगी। हम उनसे कुछ सीखना चाहेंगे और मुझे यकीन है कि समय के साथ वे भी हमसे कुछ सीखेंगे। एयर इंडिया-विस्तारा विलय के लिए हमें अभी प्रतिस्पर्धा आयोग से मंजूरी, एनसीएलटी से मंजूरी की जरूरत है। पहले सिंगापुर एयरलाइंस से कई लोग प्रतिनियुक्ति पर विस्तारा में आए थे लेकिन अब उनकी जगह धीरे-धीरे स्थानीय प्रतिभा या संगठन से जुड़े लोग ले रहे हैं। यह किसी कारोबार का सामान्य विकास है जो स्थापित और परिपक्व होने पर लोगों को आकर्षित कर सकता है।
-एयर इंडिया हाल में कई मुद्दों पर विमानन नियामक डीजीसीए के निशाने पर रही है। इस तरह के नियामकीय मुद्दे कब तक सुलझ जाएंगे?
मैं कोई समयसीमा नहीं बता सकता क्योंकि इसका दायरा काफी व्यापक है। कंपनी की संस्कृति, तकनीक, लोग, प्रशिक्षण, अनुशासन सभी समाधान का हिस्सा हैं क्योंकि समस्या में भी ये शामिल हैं। इस तरह की समस्या बहुत पहले से चली आ रही है और हम हर दिन इसे ठीक करने का प्रयास कर रहे हैं।
-पायलटों की कमी की समस्या से कब तक उबरने की उम्मीद है?
कुल मिलाकर हमारे पास पर्याप्त पायलट हैं। लेकिन जब आप एयर इंडिया के बेड़े को देखेंगे तो हमने कई बी777 विमान शामिल किए हैं और देश में इस तरह के विमान केवल एयर इंडिया उड़ाती है। हम ए350 विमान भी अपने बेड़े में शामिल कर रहे हैं। हर छठे दिन हमारे बेड़े में एक नया विमान जुड़ रहा है। नए विमानों के लिए पायलटों में बदलाव हो रहा है। पायलटों की कमी व्यापक स्तर पर नहीं बल्कि बेड़े या ग्रेड स्तर पर है।