भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर होने से करीब 10 दिन पहले नई दिल्ली को लंदन के प्रस्तावित कार्बन कर के बारे में सावधान रहने की जरूरत है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि उसके प्रभाव से निपटने के लिए भारत को मुक्त व्यापार समझौते में उपयुक्त बातों को शामिल करना होगा।
कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) के शुरू होते ही ब्रिटेन के उत्पाद शून्य शुल्क पर भारतीय बाजार में पहुंचने लगेंगे। हालांकि, थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) द्वारा तैयार एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय उत्पादों को सीबीएएम शुल्क के बराबर 20 से 35 फीसदी शुल्क दर का भुगतान करना पड़ सकता है, जिससे भारतीय उत्पादों पर शुल्क दर प्रभावित होगी।
यूरोपीय संघ के बाद ब्रिटेन ने भी कार्बन उत्सर्जन के जोखिम से निपटने के लिए एक परामर्श कार्यक्रम शुरू किया था। उसकी योजना 2025 में उत्सर्जन रिपोर्टिंग शुरू करने और 2026 में उपायों के चरणबद्ध तरीके से लागू करने की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को श्रम, पर्यावरण, डिजिटल व्यापार आदि गैर-व्यापारिक मुद्दों पर शर्तों के बोझ से सावधानीपूर्वक बचना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एFTA का सस्टेनेबिलिटी पहलू काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि विशेष तौर पर भारत के परिधान उद्योग पर उसका प्रभाव पड़ेगा। सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुल्क की बाधाएं दूर हो सकती हैं। इसके अलावा, भारत को ब्रिटेन द्वारा सीबीएएम की संभावित शुरूआत पर विचार करना चाहिए और FTA के प्रावधानों में उसका समाधान करना चाहिए।’
भारत को गैर-व्यापारिक मुद्दों पर FTA की प्रतिबद्धताओं से पहले अपने घरेलू नियम और मानक बनाने चाहिए। इसके अलावा, भारत को सीमा पार डेटा प्रवाह को मुक्त करने के लिए भी सहमति नहीं जतानी चाहिए, क्योंकि सार्वजनिक सेवाओं के लिए राष्ट्रीय डेटा को अपने पास रखना आवश्यक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रम मानकों पर जोर देने का मतलब श्रम-प्रधान निर्यात पर प्रतिबंध हो सकता है और इसलिए भारत को सतर्क रहना चाहिए।