ऐसे अवसर रहे हैं जब मुझे विफलता का मुंह देखना पड़ा है। इनमें एक डिजिटल समाचार मीडिया स्टार्टअप में मेरा अनुभव अब भी कहीं न कहीं मस्तिष्क के किसी कोने में घूमता रहता है। यह लगभग आठ वर्ष पूर्व की बात है जब ‘फंडिंग विंटर’ मुहावरे का इस्तेमाल भी शुरू नहीं हुआ था।
निवेशक भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में रकम झोंके जा रहे थे। समाचार प्रबंधक के रूप में मैं उस समय 2.5 करोड़ डॉलर से कम रकम जुटाने की घोषणाओं को अधिक तवज्जो नहीं दिया करता था। हमने कई रातें बिना सोए गुजारीं और पूरी तल्लीनता से एक निवेशक के लिए आकर्षक प्रस्तावों की सूची तैयार की और गंभीर सलाहकारों के साथ कई सत्र आयोजित किए थे। इसके बाद निवेशकों के समक्ष कई प्रस्तुतियां भी पेश की गईं।
मगर अंत में ‘नटग्राफ’ (हमारी पहल का नाम) बिना कोई छाप छोड़े गुमनाम हो गया। तब हमें वेंचर कैपिटलिस्ट (वीसी) के दो प्रश्नों से होकर गुजरना पड़ा था। पहला प्रश्न था कि कारोबार कैसे बढ़ेगा और अगले पांच वर्षों में मूल्यांकन बढ़कर किस स्तर पर पहुंच जाएगा?
इनके प्रश्नों के उत्तर में मैंने उनसे कहा कि नटग्राफ गंभीर रिपोर्टिंग एवं शोध को प्रमुखता देगी और डिजिटल तकनीक का लाभ ऐसे समय में उठाएगी जब स्थापित मीडिया कंपनियां डिजिटल माध्यम अपनाने से कतरा रही हैं।
एक बात तो निश्चित है कि विश्वसनीय एवं निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले संस्थानों के साथ पाठक धीरे-धीरे जरूर जुड़ते जाएंगे। वीसी को इस बात पर तनिक संदेह नहीं था और वे केवल यह समझना चाह रहे थे कि यह संभव कैसे होगा। वे अपना काम कर रहे थे मगर मैं अपना काम नहीं कर पा रहा था। मैंने यह बात डिजिटल स्टॉक ब्रोकरेज कंपनी जीरोधा के संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी नितिन कामत के साक्षात्कार, पॉडकास्ट एवं पोस्ट पढ़ कर महसूस की।
कामत ने 28 सितंबर को एक्स पर एक पोस्ट में कुछ ऐसा करने का संकेत दिया जो किसी स्टार्टअप संस्थापक के लिए अकल्पनीय था। वह जीरोधा के मूल्यांकन से जुड़े सवाल को गंभीरता से नहीं लेते दिखे। उन्होंने कहा कि मूल्यांकन को लेकर जितनी बातें हो रही हैं उनमें अधिकांश ‘वास्तविकता से बहुत दूर हैं’।
उन्होंने कहा, ‘जो भी लोग हमारी प्रमुख टीम का हिस्सा हैं उनमें किसी ने भी शुरू से सांकेतिक मूल्यांकन पर ध्यान नहीं दिया और न ही इसके बारे में सोचा क्योंकि मूल्यांकन बाजार के हालात के अनुसार ऊपर नीचे जा सकते हैं। हमेशा बदलते रहने वाले मूल्यांकन पर ध्यान एक तरह से मुख्य लक्ष्य से ध्यान हटाने जैसा है।’
उसके बाद जो उन्होंने बात कही वह आंखें खोलने वाली थीं। उन्होंने कहा, ‘हमारा ध्यान सदैव एक लचीला एवं टिकाऊ कारोबार खड़ा करने पर रहा है। इसका मतलब है कि हमें बाहरी पूंजी पर कभी निर्भर नहीं रहना पड़े।’
उस समय की अलग परिस्थितियों को देखते हुए यह बात मेरे दिमाग में नहीं आई कि नटग्राफ बिना बाहरी पूंजी के भी शुरुआत कर सकती थी। बात सच थी कि मगर इसके लिए मुझे अपने परिवार के साथ समझौता करना होता। मगर यह तो स्वीकार किया जा सकता है कि कम पूंजी के साथ भी शुरुआत की जा सकती है।
इस शुरुआती अवधि को स्टार्टअप की दुनिया में ‘वैली ऑफ डेथ ’ (संघर्ष के दिन) कहा जाता है। यानी बिना बाहरी पूंजी के अपने स्रोतों से कारोबार खड़ा करना।
अब जरा जीरोधा की कहानी पर विचार करते हैं। एक वीसी कंपनी ब्लूम वेंचर्स की वेबसाइट पर कामत एक पॉडकास्ट में कहते हैं कि वह 1990 के दशक से शेयरों में कारोबार कर रहे हैं। वर्ष 2007-08 तक वह इंटरनेट पर सक्रिय हो गए और शेयर बाजार पर बड़े याहू मेसेंजर समूह और ऑर्कुट समूह संचालित करने लगे थे।
उनके भाई निखिल भी उसी समय तक उनका साथ देने लगे थे। उन्होंने सोचा कि उन सक्रिय कारोबारियों के लिए ब्रोकर बनना एक अच्छी शुरुआत होगी जो काफी ऊंची फीस तो दे रहे हैं मगर उन्हें पारदर्शी सेवाएं नहीं मिल रही हैं। इस तरह 2010 में जीरोधा की शुरुआत हुई।
शुरू में इसका उद्देश्य ऑनलाइन समूहों में सक्रिय कारोबारियों के लिए बुटीक कंपनी के रूप में काम करना था। बाद में यह देश की सबसे बड़ी ऑनलाइन ब्रोकरेज कंपनी बन गई।
हालांकि, अब यह सक्रिय उपयोक्ताओं के लिहाज से सबसे बड़ी कंपनी नहीं रह गई है। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के आंकड़ों के अनुसार ‘ग्रो’ सितंबर के अंत तक 66.3 लाख सक्रिय उपयोगकर्ताओं के साथ इसे पीछे छोड़ चुकी थी। ग्रो की तुलना में जीरोधा के मात्र 64.8 लाख उपयोगकर्ता ही थे।
हालांकि, इस समाचार में 12 अक्टूबर को प्रकाशित खबर के अनुसार जीरोधा देश की सबसे अधिक मुनाफे में चलने वाली ब्रोकरेज कंपनी है। वित्त वर्ष 2022-23 में इसका शुद्ध मुनाफा 2,900 करोड़ रुपये से अधिक रहा था। ग्रो का शुद्ध मुनाफा वित्त वर्ष 2023 में 73 करोड़ रुपये था।
वीसी से पूंजी प्राप्त कंपनियां तेज गति से अपना कारोबार बढ़ाने में काफी आगे रही हैं। यह बात काफी महत्त्वपूर्ण है मगर इसे उपयुक्त तरीके से अंजाम दिया जाना चाहिए। कुछ वर्ष पहले ई-कॉमर्स क्षेत्र की स्टार्टअप कंपनियां ‘ग्रॉस मर्केंडाइज वैल्यू’ (जीएमवी) को लेकर बड़े गर्व से बात किया करती थीं।
किसी खास अवधि में जितने मूल्य के सामान बेचे जाते हैं उसे जीएमवी कहा जाता है। इसका राजस्व या मुनाफे से प्रत्यक्ष रूप से कोई लेना-देना नहीं है। इनमें कई कंपनियां गायब या कमजोर हो गई हैं। अब काफी कम कंपनियां जीएमवी के बारे में बात किया करती हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स में जुलाई 2021 में प्रकाशित एक खबर में इस बात का विश्लेषण किया गया था कि अमेरिका की सिलिकन वैली की कंपनी रॉबिनहुड ने किसी तरह शेयरों में कारोबार करना सरल बना दिया और यह 8.3 अरब डॉलर मूल्यांकन हासिल करने में सफल रही।
इसने निवेशकों से करोड़ों रुपये जुटाए और टाइम्स के अनुसार उसने एक सोची-समझी रणनीति के तहत सैकड़ों अनुभवहीन निवेशकों को जोखिम भरे कारोबार में आकर्षित करने में कामयाब रही।
दूसरी तरफ, कामत बंधु वही कर रहे हैं जो लक्ष्य उन्होंने तय कर रखा था, यानी किसी कारोबार को नए रूप में पेश करना। जीरोधा काफी पहले ‘डेथ वैली’ पार कर चुकी थी और नियामक से केवाईसी और आधार के इस्तेमाल से ऑनलाइन ग्राहकों को जोड़ने अनुमति मिल गई थी। इससे कंपनी को कोई शाखा स्थापित करने की जरूरत नहीं महसूस हुई। वीसी की रकम के बिना कंपनी के लिए शाखाएं स्थापित करना मुमकिन नहीं होता।
कामत का कहना है कि जीरोधा देश की एकमात्र ऐसी ब्रोकरेज कंपनी है जो खाते खोलने के लिए 200 रुपये शुल्क लेती है। इसके पीछे कामत का तर्क है कि खाता खोलने पर वाजिब खर्च आता है। अगर शुल्क नहीं लिया जाता तो जीरोधा पर ग्राहकों से लेनदेन कराकर अपनी लागत वसूलने का दबाव होता।
कामत ने अपनी कंपनी की वेबसाइट पर लिखे ब्लॉक पोस्ट में कहा, ‘अगर यह खर्च वसूल करने के लिए किसी दूसरे अस्पष्ट माध्यम का सहारा लिया जाता तो जीरोधा के मुख्य सिद्धांतों जैसे नो स्पैम पॉलिसी, टीम के लिए राजस्व लक्ष्य निर्धारित नहीं करना आदि के साथ समझौता करना पड़ता।’
इससे जीरोधा को विज्ञापन पर भी कोई रकम खर्च करने की जरूरत पेश नहीं आती है। ये ऐसी बातें हैं जिनसे कामत को मूल्यांकन पर किसी तरह की चर्चा को गंभीरता से नहीं लेने का ताकत देती हैं।