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बाजार में कितनी प्रबल ‘मोदी प्रीमियम’ की अवधारणा

भारत में, कुल मिलाकर अब 13 करोड़ से अधिक डीमैट अकाउंट हैं और इसमें हर महीने 20-30 लाख नए खाते जुड़ जाते हैं।

Last Updated- December 13, 2023 | 10:10 PM IST

हाल ही में मैं एक सेवानिवृत बैंककर्मी के साथ बात कर रहा था जिन्होंने अपनी बचत का एक बड़ा हिस्सा शेयरों में निवेश किया है। वह भी देश में एक न्यायसंगत और समानता वाला समाज देखने की उम्मीद करने वाले कई विचारशील लोगों की तरह इस बात को लेकर चिंतित थे कि ‘देश में इस वक्त क्या चल रहा है’। वह समाज में बेहतरी के लिए बदलाव भी चाहते हैं। लेकिन वह थोड़ी सतर्कता बरतते हुए कहते हैं, ‘अगर नरेंद्र मोदी सत्ता में वापस नहीं आते हैं तब संभव है कि मेरे पोर्टफोलियो का 20 फीसदी हिस्सा खत्म हो जाएगा।’

भारत के शेयर बाजार में ‘मोदी प्रीमियम’ का रुझान है, यानी लोगों का ऐसा मानना है कि बाजार की तेजी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक प्रमुख कारक हैं।
पिछले दिनों सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उच्च वृद्धि दर और मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सत्ता में फिर से वापसी और राजस्थान में भी कांटे की टक्कर से जुड़े कई जनमत सर्वेक्षणों की खबरों से बाजार अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।

मोदी प्रीमियम की बात को स्वीकार करने वाले हमारे सेवानिवृत्त बैंकर अकेले नहीं हैं। देश में एक स्पष्ट वैकल्पिक नेता की अनुपस्थिति में लोगों के दिमाग पर इस तरह के विचार का हावी होना सामान्य है, भले ही वे मौजूदा शासन का समर्थन करते हों या नहीं।

पिछले कुछ वर्षों में पूंजी बाजार में लाखों नए निवेशकों ने दांव लगाया है। सितंबर महीने में ही 30 लाख से अधिक नए डीमैट खाते खोले गए जो संख्या अगस्त महीने के लगभग बराबर है। भारत में, कुल मिलाकर अब 13 करोड़ से अधिक डीमैट अकाउंट हैं और इसमें हर महीने 20-30 लाख नए खाते जुड़ जाते हैं।

यह तेज वृद्धि दरअसल डीमैट खाता खोलने में आसानी, रिकॉर्ड स्तर पर प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ), ब्रोकिंग फर्मों द्वारा आक्रामक तरीके से अकाउंट को अपने साथ जोड़ने, सोशल मीडिया के प्रभाव और पिछले तीन वर्षों के दौरान छोटे और मिड-कैप शेयरों के बेहतर प्रदर्शन जैसे कारकों का परिणाम है।

नतीजतन, भारत में कुल डीमैट खातों की संख्या वित्त वर्ष 2020 के अंत के 4 करोड़ से बढ़कर वर्तमान में 13 करोड़ हो गई है। आखिर इन संख्या के निहितार्थ क्या हैं? वर्ष 1996 में अनिवार्य तौर पर डीमैट खातों को खोलने की शुरुआत हुई थी। अगले 24 वर्षों में डीमैट खातों की संख्या चार करोड़ हो गई।

फिर, केवल साढ़े तीन वर्षों में यह 3.25 गुना से अधिक बढ़कर 13 करोड़ हो गई। इसका अर्थ यह है कि नौ करोड़ नए निवेशकों ने पिछले तीन वर्षों में बाजार में प्रवेश किया है जो 24 वर्षों में डीमैट खाते वाली कुल आबादी का 2.25 गुना है।

वास्तव में इन निवेशकों ने केवल बाजार में तेजी वाले दौर को देखा जो महामारी, उच्च मुद्रास्फीति, तेल की ऊंची कीमतों, रूस-यूक्रेन युद्ध, अमेरिकी ब्याज दरों में तेजी, इजरायल-हमास युद्ध और व्यापार में वैश्विक मंदी जैसी चिंताओं के बावजूद तेजी से बढ़ता रहा।

बात केवल यहीं तक नहीं है बल्कि नौ करोड़ नए निवेशकों को कभी भी भीषण मंदी वाले बाजार का सामना नहीं करना पड़ा बल्कि उन्हें आर्थिक और बाजार चक्र की समझ के साथ-साथ इसकी कोई याद हो, इसका अंदाजा नहीं है। ज्यादातर निवेशक युवा हैं जो बाजार में आई गिरावट को खरीदारी के उपयुक्त अवसर के रूप में देखते हैं। उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि कभी-कभी कई वर्षों तक शेयर बाजार सूचकांक आपको कोई रिटर्न नहीं देते हैं।

ऐसे समय में बाजार की तेजी का लाभ उठाने वाले, स्मॉलकैप शेयर धराशायी हो सकते हैं। याद रखें कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ही जनवरी 2018 से अगस्त 2019 तक निफ्टी स्मॉलकैप सूचकांक में 40 फीसदी की गिरावट थी। ऐसा फिर से संभव हो सकता है। पहले भी इस तरह की गिरावट और उतार-चढ़ाव नियमित रूप से देखे गए लेकिन आज यह आम धारणा है कि भारत मौलिक रूप से बदल गया है।

हम एक ऐसी वृद्धि की राह में हैं जिसमें कोई बाधा नहीं दिख रही है। इसमें सरकारी राजस्व में तेजी का भी योगदान है जो वास्तव में शहरी बुनियादी ढांचे और रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए फंडिंग निवेश है। रक्षा क्षेत्र से जुड़े बड़े बजट की फंडिंग से रक्षा उत्पादन और स्वदेशीकरण के लिए स्थानीय कंपनियों की मदद की जा रही है।

इसका दूसरा पहलू यह भी है कि युवाओं के पास निवेश करने के लिए अधिक पैसा है और उनका आकर्षण शेयर बाजार की तरफ है। आर्थिक वृद्धि, बड़े पैमाने पर घरेलू और कॉरपोरेट अधिशेष और निवेशकों द्वारा जोखिम लेने के नए नजरिये से भी बाजार में दीर्घकालिक तेजी का रुझान दिखता है।

दिलचस्प बात यह है कि दूसरी तिमाही में 7.6 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि का जश्न मनाया जा रहा है जबकि निफ्टी 500 कंपनियों के लिए बिक्री वृद्धि महज 3.5 प्रतिशत थी। हमारे शोध के अनुसार, स्मॉलकैप शेयरों और आईपीओ की मौजूदा तेजी को देखते हुए त्रुटि की कोई गुंजाइश नहीं बचती है लेकिन अधिकांश छोटी कंपनियों को अब उनके ऐतिहासिक रूप से शीर्ष मूल्यांकन स्तर पर बताया जा रहा है।

भविष्य के प्रतिफल के लिए मूल्यांकन मायने रखता है और मूल्यांकन ज्यादा होने पर प्रतिफल कम होता है। हालांकि यह प्रश्न भी उठता है कि क्या नई शासन व्यवस्था क्या उच्च आर्थिक वृद्धि देने में सक्षम होगी? ऐसे कोई संकेत नहीं मिलते हैं क्योंकि अधिकांश विपक्षी नेता कभी भी आर्थिक पहलू या नीति के बारे में बात नहीं करते हैं बल्कि उनका ध्यान केवल सब्सिडी देने पर होता है।

हम भूल गए हैं कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को नीतिगत पंगुता और भ्रष्टाचार के कारण सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया गया था। हम यह नहीं जानते कि जिन सामान्य मतदाताओं का वास्ता निवेशकों के समान लाभ से नहीं पड़ा है वे हमारे बैंकर मित्र की तरह सोचेंगे या नहीं।

एक संभावना यह भी है कि जिस आर्थिक वृद्धि को हम हल्के में ले रहे हैं वह स्थानीय या वैश्विक कारकों के कारण पूरी तरह धीमी हो जाए और मोदी प्रीमियम गायब हो जाए। वैसे वर्ष 2014 और 2020 के बीच चर्चा करने लायक कोई वृद्धि नहीं थी। अब कई प्रमुख राज्यों के मतदाताओं की सोच का अंदाजा मिल गया है, ऐसे में यह निवेशकों के लिए अपनी उम्मीदों को फिर से बढ़ाने या सूचकांकों में और अधिक तेजी लाने की दिशा दे सकता है।

*(लेखक मनीलाइफ डॉट इन के संपादक और मनीलाइफ फाउंडेशन के ट्रस्टी हैं)

First Published - December 13, 2023 | 9:50 PM IST

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