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यूक्रेन से गाजा तक भूराजनीतिक चुनौती

यूक्रेन युद्ध के एक महीने बाद यानी मार्च 2022 में तेल कीमतें 140 डॉलर प्रति बैरल के स्तर के पार चली गईं। ऐसा नहीं है कि तेल की आपूर्ति बाधित हुई थी।

Last Updated- November 17, 2023 | 10:48 PM IST

यूक्रेन संकट से लेकर गाजा में छिड़ी लड़ाई तक भूराजनीतिक जोखिमों का जिक्र बार-बार सुनने को मिलता है। अनुभव बताते हैं कि दुनिया ने इन जोखिमों के साथ रहना सीख लिया है। बता रहे हैं टी टी राम मोहन

फरवरी 2022 में यूक्रेन संकट की शुरुआत के बाद से ही ‘भूराजनीतिक जोखिम’ जैसा जुमला लगातार सुनने को मिल रहा है। इससे यह ध्वनि निकलती है कि सशस्त्र संघर्ष से विश्व अर्थव्यवस्था को क्या संभावित नुकसान पहुंच सकता है। भूराजनीतिक जोखिम ‘युद्ध’ की तुलना में कहीं अधिक तकनीकी और प्रभावी सुनाई पड़ता है। यह बात अलग है कि दोनों का इस्तेमाल एक ही उद्देश्य से किया जाता है।

सन 2022 में यूक्रेन में लड़ाई का बढ़ना एक अहम भूराजनीतिक जोखिम था जो कच्चे तेल की कीमतों को 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंचाकर विश्व अर्थव्यवस्था को बेपटरी कर सकता था। परंतु ऐसा नहीं हुआ। क्या अब गाजा में लड़ाई छिड़ने के बाद ऐसा होगा?

पहले देखते हैं कि यूक्रेन युद्ध के बाद तेल कीमतों पर किस तरह नियंत्रण कायम किया गया। यूक्रेन युद्ध के एक महीने बाद यानी मार्च 2022 में तेल कीमतें 140 डॉलर प्रति बैरल के स्तर के पार चली गईं। ऐसा नहीं है कि तेल की आपूर्ति बाधित हुई थी। बाजार तो बस संभावित उथलपुथल को लेकर संभावना प्रकट कर रहे थे। उन्हें भय था कि अगर लड़ाई बढ़ी तो तेल कीमतें 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएंगी।

लड़ाई बढ़ी। उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने शुरुआती इनकार के बाद धीरे-धीरे यूक्रेन को टैंक, लंबी दूरी की मिसाइल और लड़ाकू विमानों की आपूर्ति आरंभ की। परंतु लड़ाई में ऐसा इजाफा नहीं हुआ जहां नाटो और रूस के बीच सीधी लड़ाई छिड़ सके। तेल कीमतें मार्च 2022 के उच्चतम स्तर से नीचे आईं और 2022 में औसतन 100 डॉलर प्रति बैरल रहीं। 2023 में तेल कीमतों में और गिरावट
आई तथा वे 72 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं।

तेल कीमतों को नियंत्रित रखने में एक कारक की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही और वह है जी7 तथा यूरोपीय संघ द्वारा कच्चे तेल की कीमतों की सीमा तय करना। ये दोनों चाहते थे कि रूस तक तेल राजस्व न पहुंचे ताकि उसे यूक्रेन में कार्रवाई के लिए आवश्यक फंड न मिल सके।

जी7 देशों ने तेल आयात को चरणबद्ध तरीके से कम करते हुए उस पर पूरी रोक लगाने का निर्णय लिया। उसके बाद उन्होंने अन्य अर्थव्यवस्थाओं को प्रतिबंध की धमकी के साथ तेल खरीद से रोकने पर विचार किया। बहरहाल, उन्हें अहसास हुआ कि अगर रूसी तेल आपूर्ति को तेल बाजार से हटाया गया तो तेल कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं।

यदि ऐसा होता तो भारत समेत कई अर्थव्यवस्थाओं पर असर पड़ता और विश्व अर्थव्यवस्था गिर जाती। रूसी राजस्व को नुकसान पहुंचाते हुए जी7 ने विश्व बाजार में रूसी तेल का प्रवाह कैसे बनाए रखा?

इसका उत्तर था तेल कीमतों की सीमा तय करना। जी7 ने जोर दिया कि किसी को किसी को रूस से 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक मूल्य पर तेल नहीं खरीदना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने एक व्यवस्था बनाई। इसके लिए जी7 और यूरोपीय संघ गठबंधन के देशों की कंपनियों से कहा गया कि वे ऐसा होना सुनिश्चित करें अथवा दंड भुगतें।

चूंकि तेल से जुड़ी समुद्री सेवाओं में 90 फीसदी इन्हीं देशों द्वारा दी जाती थीं इसलिए कीमतों की सीमा तय करना प्रभावी साबित हुआ। रूस ने इस गठबंधन से बाहर के देशों को तेल बेचना जारी रखा। चीन और भारत ने रूस से तेल आयात बढ़ा दिया।

बहरहाल पश्चिमी समुद्री सेवाओं का अर्थ यह भी था कि रूस को तेल करीब 60 डॉलर प्रति बैरल की दर पर बेचना था। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्य देश अपने तेल आयात का करीब एक तिहाई हिस्सा खरीद रहे थे। वे अन्य स्रोतों से तेल ले सकते थे। ऐसे में यूक्रेन से उत्पन्न भूराजनीतिक जोखिम बहुत प्रभावी नहीं रहा।

अब गाजा में घट रहे घटनाक्रम का विश्व अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा? पहली बात जो ध्यान देने लायक है वह यह है कि तेल निर्यातक देशों के समूह (ओपेक) तथा अन्य तेल उत्पादक देशों ने अक्टूबर 2022 में उत्पादन में कटौती की घोषणा की थी। 2023 में उत्पादन में और कटौती की गई। उसके परिणामस्वरूप तेल कीमतों में इजाफा हुआ।

दूसरा, रूस ने तेल कीमतों की तय सीमा की काट निकालने का प्रयास किया। उसने तेल टैंकरों का अपना बेड़ा तैयार किया जो बिना पश्चिमी समुद्री सेवाओं के काम कर सकता है। फाइनैंशियल टाइम्स ने 25 सितंबर 2023 के अंक में अनुमान लगाया कि गत अगस्त में रूसी तेल का तीन चौथाई हिस्सा बिना पश्चिमी बीमे के गंतव्य को गया।

इन दो घटनाओं की बदौलत इस समय तेल कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास हैं। फाइनैंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक गत अक्टूबर में रूसी तेल 60 डॉलर प्रति बैरल के नीचे नहीं बिका।

क्या गाजा की लड़ाई से हालात और बिगड़ेंगे? विश्व बैंक इन संभावनाओं को लेकर आश्चर्यजनक रूप से आशावादी नजर आ रहा है। गाजा में छिड़ी लड़ाई को ध्यान में रखते हुए बैंक का कमोडिटीज मार्केट आउटलुक (अक्टूबर 2023) तेल कीमतों को 2023 में 2022 के स्तर से 16 फीसदी नीचे 84 डॉलर प्रति बैरल पर देखता है। तेल कीमतों का यह स्तर विश्व अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाएगा लेकिन यह एकदम अशक्त करने वाला नहीं है।

अगर गाजा की लड़ाई अन्य क्षेत्रीय लड़ाइयों को जन्म देता है तो क्या विश्व बैंक तेल कीमतों को 150 डॉलर प्रति बैरल के पार देखता है? सैन्य विश्लेषकों का मानना है कि उस स्थिति में लेबनान का हिजबुल्ला समूह तथा ईरान और शायद सीरिया तथा तुर्की भी लड़ाई में शामिल होंगे। उस स्थिति में अमेरिका इजरायल के साथ आएगा। फिलहाल ऐसा होता नहीं दिखता।

कई टिप्पणीकार कह चुके हैं कि अगर इजरायल के पड़ोस में भड़काने वाली कार्रवाई होती है तो वह भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। अमेरिका भी इजरायल का साथ देगा और एक खास कीमत वसूल किए जाने के बाद इजरायल से हमला रोकने को कहा जाएगा। इस तरह दोनों पक्ष जीत का दावा करेंगे।

इस बात के पूरे संकेत हैं कि इस बार भी उसी पटकथा पर काम हो रहा है। व्हाइट हाउस और अमेरिकी विदेश मंत्री के ताजा बयान बताते हैं कि वक्त इजरायल के हाथ से निकल रहा है। अन्य कारक भी इसी पटकथा का पालन कर रहे हैं। तमाम आक्रामकता के बावजूद ईरान ने लेबनान के हिजबुल्ला मिलीशिया को थाम रखा है। मिस्र, जॉर्डन, तुर्की और सऊदी अरब जैसे प्रमुख मुस्लिम देश निंदा से ज्यादा कुछ नहीं करेंगे।

यूक्रेन युद्ध में भी हमने ऐसा ही होते देखा। दूसरे विश्व युद्ध के बाद शीतयुद्ध के दिनों में भी ऐसा ही हुआ। परमाणु प्रतिरोध की एक अहम उपलब्धि यह रही कि दुनिया की दो शीर्ष सैन्य शक्तियों अमेरिका और रूस ने लड़ाइयों को स्थानीय रखना सीख लिया। वे कभी सीधी लड़ाई में नहीं उलझे।

तीसरे विश्वयुद्ध का अनुमान हमेशा जताया गया लेकिन दुनिया ने भूराजनीतिक जोखिमों के साथ जीना सीख लिया है। अब विश्व अर्थव्यवस्था के सामने वित्तीय संकट और महामारी कहीं अधिक बड़ी चुनौती हैं।

First Published - November 17, 2023 | 10:48 PM IST

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