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संपादकीय: मसाला ब्रांडों में कैंसर कारक पाए जाने का मामला…देश में कमजोर मानकों की समस्या

इस सप्ताह के आरंभ में अच्छी खासी भारतीय आबादी वाले हॉन्गकॉन्ग और सिंगापुर में एमडीएच और एवरेस्ट ब्रांड के मसालों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

Last Updated- April 25, 2024 | 11:32 PM IST
स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया का आदेश, कहा- MDH और Everest शेयर करे क्वालिटी चेक डिटेल्स, Spice Board of India tells Everest, MDH to give details of quality checks

भारत के दो लोकप्रिय मसाला ब्रांडों में कैंसर कारक कीटनाशक पाए जाने को लेकर इन दिनों विदेशों में जो बवाल मचा है वह देश में खाद्य एवं औषधि नियमन के कमजोर मानकों की समस्या को एक बार फिर सामने लाता है।

इस सप्ताह के आरंभ में अच्छी खासी भारतीय आबादी वाले हॉन्गकॉन्ग और सिंगापुर में एमडीएच और एवरेस्ट ब्रांड के मसालों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

यह प्रतिबंध तब लगा जब हॉन्गकॉन्ग के सेंटर फॉर फूड सेफ्टी ने एक रिपोर्ट में कहा कि एमडीएच (MDH) के तीन और एवरेस्ट (Everest) के एक मसाले में एथिलीन ऑक्साइड की मौजूदगी पाई गई है। यह तथ्य एक सामान्य जांच में सामने आया।

यह पहला अवसर नहीं है जब खानेपीने के भारतीय ब्रांड पर अन्य देशों के नियामकीय प्राधिकरण ने सवाल उठाए। गत वर्ष अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने साल्मोनेला बैक्टीरिया पाए जाने के बाद एमडीएच के खाद्य उत्पादों को वापस लेने को कहा था।

भारत दुनिया में मसालों का सबसे बड़ा निर्यातक है और ऐसे में वाणिज्य मंत्रालय ने सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग से विस्तृत रिपोर्ट मंगवाई है और एक निर्यातक केंद्र में जांच शुरू की है। इसके साथ ही मसाला बोर्ड ने सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग को भेजे जाने वाले मसालों में एथिलीन ऑक्साइड के अवशेषों की अनिवार्य जांच की व्यवस्था की है।

यह आम चलन होता जा रहा है। स्वतंत्र संस्थानों मसलन गैर सरकारी संगठनों और इन्फ्लुएंसरों या अन्य देशों के नियामकीय और जांच प्राधिकरणों को भारतीय खाद्य एवं औषधीय उत्पादों में समस्या मिलती है जबकि भारतीय नियामक उन्हें पास कर चुके होते हैं।

उदाहरण के लिए भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) उस समय हरकत में आया जब एक स्विस जांच संस्था पब्लिक आई ने खुलासा किया कि खाद्य पदार्थ बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी नेस्ले एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका में बेचे जाने वाले बेबी फूड में अतिरिक्त चीनी मिलाती है।

अत्यधिक सतर्कता के एक दुर्लभ उदाहरण में उसने 2015 में इसी कंपनी को लोकप्रिय इंस्टैंड नूडल्स ब्रांड मैगी में लेड होने की स्थिति में आड़े हाथों लिया था। हाल ही में एक इन्फ्लुएंसर के खुलासे के बाद एफएसएसएआई ने ई-कॉमर्स वेबसाइटों को चेतावनी दी कि वे बॉर्नविटा जैसे उत्पादों को स्वास्थ्यवर्द्धक और ऊर्जादायक पेय पदार्थों की श्रेणी में रखकर न बेचें।

यह आदेश राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक जांच के बाद आया जिसमें पाया गया था कि वर्षों से बच्चों को ध्यान में रखकर बेचे जा रहे बॉर्नविटा में चीनी का स्तर स्वीकार्य स्तर से काफी अधिक था। गत वर्ष भारत में बने कफ सिरप के कारण गांबिया, कैमरून और उज्बेकिस्तान में कथित तौर पर 140 बच्चों की मौत हो गई थी।

ऐसे में आश्चर्य नहीं कि पतंजलि समूह की ओर से भ्रामक विज्ञापनों के मामले की सुनवाई कर रहे सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह दैनिक उपभोग की उपभोक्ता वस्तुएं बनाने वाली अन्य कंपनियों, खासकर बच्चों के उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को गलत विज्ञापन करने से रोके।

घरेलू नियमन की नाकामी का संबंध जन स्वास्थ्य के मुद्दों और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की संभावनाओं से है। अब जबकि भारत आय श्रृंखला में ऊपर निकल गया है तो प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का बाजार भी विकसित हो रहा है। 2018 से यह क्षेत्र दो अंकों में वृद्धि हासिल कर रहा है। ऐसे में इसके लिए मजबूत मानकों और नियमन की आवश्यकता है।

भारत में बच्चों में मधुमेह के मामले बढ़ रहे हैं और इस वजह से भी एफएसएसएआई को प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में चीनी की मात्रा पर नजर रखनी चाहिए। इसके साथ ही भारत में कृषि उपज की प्रचुरता के कारण निर्यात की बहुत अधिक संभावना है।

ऐसे में भारत के खाद्य निर्यात में कैंसरकारक तथा अन्य नुकसानदेह तत्त्वों की मौजूदगी से विदेश में बिक्री की संभावनाओं पर बुरा असर होगा। खासकर ऐसे समय में जबकि प्रमुख बाजार गैर शुल्क अवरोध बढ़ा रहे हैं। प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात अच्छी गति से बढ़ रहा है लेकिन इसमें और इजाफे की संभावना है। वैश्विक मानकों के समकक्ष मानक बनाकर ही ऐसा सुनिश्चित किया जा सकता है।

First Published - April 25, 2024 | 10:46 PM IST

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